chandravilla
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नहीं मिटता तम मन का,
दीप हम प्रतिवर्ष जलाते हैं
होता नहीं है उज्जवल मन,
व्यर्थ समय हम गंवाते हैं
सजावट होती है घर अंगना,
सुविचारों से मन न सजाते हैं
होता आदान-प्रदान मीठे का,
सद्भावना की मिठाई भुलाते हैं.
दीवाली भी जोश से मनाएं,
मन का अंगना भी झिलमिलाएं
मिष्ठान्न -पकवान न भुलाएं,
दिव्य प्रेम की ज्योति जलाएं
प्यार मोहब्बत से रहे मिल के,
जियो और जीने दो गुनगुनाएं,
रहते वंछित जो इन आनंद से,
उनकी भी दीवाली शुभ बनाएँ
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