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बलिदानी गुरु तेग बहादुर (गुरु तेग बहादुर शहीदी दिवस २४ नवम्बर )

chandravilla
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GuruTeghBahadurS1नमन और स्मरण बलिदानी गुरु  तेग बहादुर जी का.

धर्म,देश और मानवता के नाम पर अपने प्राणों का उत्सर्ग करने वाले परम त्यागी महापुरुषों में सिख गुरुओं का आदर्श स्तुत्य है,इसी श्रृंखला में सिखों के नवम गुरु तेग बहादुर जी का बलिदान इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है .
गुरु हरगोबिन्द जी के पांचवें पुत्र त्यागमल वीर और साहसी तो बाल्यकाल से ही थे ,किशोरावस्था में अपने पिता के साथ मुगलों का वीरता पूर्वक सामना करने के कारण इनके पिता को इनके तेग अर्थात तलवार का धनी होने का परिचय प्राप्त हुआ तो इनका नाम तेग बहादुर रख दिया गया.
युद्ध की हिंसा और रक्तपात से क्षुब्ध होकर आप वैराग्य और साधना की ओर उन्मुख हुए तथा बाबा बकाला नामक स्थान पर साधना में 20  वर्ष तल्लीन रहे.अष्ठम सिख गुरु हरकिशन जी द्वारा आपको अपना उत्तराधिकारी घोषित करने पर उनके अनुयायिओं ने उनको खोज कर उनसे उत्तरदायित्व संभालने का अनुरोध किया और आप सिखों के नवम गुरु पद पर अभिषिक्त हुए.
आध्यात्मिक उपदेश देते हुए तथा जन कल्याण के कार्यों को सम्पन्न करते हुए आप देश में विविध स्थानों पर भ्रमण करते रहे और इन्ही के पुत्र गोविन्द सिंह( जिनका बचपन का नाम बाला प्रीतम था ) का पटना में 1666 में जन्म हुआ
गुरु तेग बहादुर के महान बलिदान का प्रसंग जो उनको विश्व में आद्वितीय बनता है इस प्रकार है,औरंगजेब के दरबार में एक काश्मीरी पंडित प्रतिदिन गीता के श्लोक सुनाते थे ,क्योंकि कट्टर धर्मांध केवल इस्लाम को ही सर्वश्रेष्ठ धर्म मानता था,अतः उन पंडित को उन श्लोकों की व्याख्या उसी रूप में करनी होती थी कि औरंगजेब का अहंकार तथा धर्मान्धता को चोट न पहुंचे.कुछ दिन पंडितजी के अस्वस्थ होने के कारण उनके पुत्र को इस दायित्व का निर्वाह करना था .उन्होंने गीता के बहुत सारे श्लोक बादशाह को उनके मौलिक अर्थ सहित सुनाये ,तो औरंगजेब को ज्ञात हुआ कि हिन्दू धर्म ग्रन्थ श्रेष्ठ हैं .धर्मांध औरंगजेब ये सहन न कर सका और उसकी कट्टरता और भी बढ़ गयी. उसने आदेश दिया कि सभी लोग इस्लाम स्वीकार करें और राजादेश का पालन न करने पर अमानवीय अत्याचारों का तांडव प्रारम्भ हुआ.
काश्मीरी पंडितों ने गुरु के पास जाकर अपनी व्यथा सुनायी और अपनी रक्षा करने के लिए अनुरोध किया.गुरु चिंतातुर हो समाधान पर विचार कर रहे थे तो उनके नौ वर्षीय पुत्र बाला प्रीतम(गोविन्द सिंह ) ने उनकी चिंता का कारण पूछा ,पिता ने उनको समस्त परिस्थिति से अवगत कराया और कहा इनको बचने का उपाय एक ही है कि मुझको प्राणघातक अत्याचार सहते हुए प्राणों का बलिदान करना होगा .वीर पिता की वीर संतान के मुख पर कोई भय नहीं था कि मेरे पिता को अपना जीवन गंवाना होगा.
उपस्थित लोगों द्वारा उनको बताने पर कि आपके पिता के बलिदान से आप अनाथ हो जायेंगें और आपकी माँ विधवा. ,बाला प्रीतम ने उत्तर दिया ‘यदि मेरे अकेले के यतीम होने से लाखों बच्चे यतीम होने से बच सकते हैं या अकेले मेरी माता के विधवा होने जाने से लाखों माताएँ विधवा होने से बच सकती है तो मुझे यह स्वीकार है”
अबोध बालक का ऐसा उत्तर सुनकर सब आश्चर्य चकित रह गये और गुरु तेग बहादुर ने निश्चिन्त होकर उन काश्मीरी पंडितों से कहा ,कि आप जाकर औरंगज़ेब से कह ‍दें कि यदि गुरु तेग़ बहादुर ने इस्लाम धर्म ग्रहण कर लिया तो उनके बाद हम भी इस्लाम धर्म ग्रहण कर लेंगे और यदि आप गुरु तेग़ बहादुर जी से इस्लाम धारण नहीं करवा पाए तो हम भी इस्लाम धर्म धारण नहीं करेंगे’. औरंगज़ेब के लिए  यह  चुनौती
उसकी धर्मान्धता पर कडा प्रहार था .

गुरु तेग़ बहादुर दिल्ली में औरंगज़ेब के दरबार में स्वयं गए. औरंगज़ेब ने उन्हें बहुत से लालच दिए, पर गुरु तेग़ बहादुर जी नहीं माने तो उन पर अमानवीय अत्याचार किये गए. किए गये, उन्हें कैद कर लिया गया,उनके दो शिष्यों का उनके समक्ष ही वध कर दिया गया. गुरु तेग़ बहादुर जी को ड़राने की कोशिश की गयी, परन्तु उन्होंने पराजय नहीं मानी. औरंगजेब से कहा- ‘यदि तुम ज़बर्दस्ती लोगों से इस्लाम धर्म ग्रहण करवाओगे तो तुम सच्चे मुसलमान नहीं हो क्योंकि इस्लाम धर्म यह शिक्षा नहीं देता कि किसी पर जुल्म करके मुस्लिम बनाया जाए.”
कट्टर ,धर्मांध औरंगजेब क्रोध से आग बबूला हो गया और उसने तेग बहादुर जी का चांदनी चौक में सार्वजनिक रूप से शीश काटने का आदेश दिया और गुरु तेग बहादुर 24  नवम्बर 1675  को शहीद हो गये.ऐसे आदर्श  नगण्य  हैं.उनके बलिदान स्थल पर ही गुरुद्वारा बना है जिसका नाम गुरुद्वारा शीश गंज साहब है.
गुरु तेग बहादुर जी ने सरल हिंदी में सर्वधर्म समभाव का उपदेश देते हुए कुछ पदों और साखी की भी रचना की जो गुरु ग्रन्थ साहब में संग्रहित हैं.
आज ऐसे बलिदानियों का मिलना दुर्लभ है. काश्मीरी पंडित और सम्पूर्ण मानवता उनके बलिदान को कैसे विस्मृत कर सकती है.परन्तु दुर्भाग्य आज काश्मीरी विस्थापित,हमारी  व्यवस्था के पंगु ,भीरु और अकर्मण्य होने के कारण अपने घर से दूर और लाचार है

(उपरोक्त जानकारी पुस्तकों और नेट पर आधारित है )

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