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ऐसे क्रूर आतंकवादियों की फांसी का विरोध क्यों?(जागरण जंक्शन फोरम)

chandravilla
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बचपन में यदि अजनबी की अंतिम यात्रा जा रही हो तो अपनी माँ को सर पर पल्लू रखते देखा था ,उनसे पूछती थी कि ऐसा क्यों करती हैं आप.पता चला कि ये मृतात्मा के प्रति सम्मान होता है.मैं पूछती थी कि हम उनको जानते नहीं तो? वो कहती थीं ,यदि किसी की अंतिम यात्रा जा रही हो , तो ऐसा ही करना चाहिए.मेरा स्वयम का तो ये नियम बना ही परन्तु मैंने प्राय अधिकांश लोगों को किसी न किसी रूप में अपने सम्मान  भाव व्यक्त करते देखा.कुछ समय पश्चात कुछ नाटक ,सिनेमा या पुस्तकों में कहानियां पढते हुए देखा कि राक्षसों,असुरों,दैत्यों या ऐसे ही अन्य नराधमों (पुरुष-महिलाओं) के अंत पर प्रसन्नता व्यक्त की जाती ,उत्सव मनाये जाते.पुनः प्रश्न पूछा कि अब क्यों सब लोग खुशी मना रहे हैं ,पटाखे छोड़ रहे हैं,उत्सव मनाये जा रहे हैं,तो उन्होंने बताया कि ऐसे लोग दुष्टात्मा होते हैं,जो सको त्रास देते हैं,मानवता के शत्रु होते हैं.
यही उत्तर इस प्रश्न का है

क्या इंसानियत पर आघात है क्रूर हत्यारे की मृत्यु पर जश्न मनाना ?

मुंबई हमले के आरोपी कट्टर आतंवादी  अजमल कसाब को बुधवार की सुबह साढ़े सात बजे पुणे की यरवदा  जेल में फांसी पर लटका दिया गया. इससे पहले 2008 से मुंबई की ऑर्थर रोड जेल में बंदी  रखे गये कसाब को पुणे की यरवदा  जेल में पहुँचाया गया.

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अजमल  कसाब की क्षमा दान की अपील राष्ट्रपति  श्री प्रणव मुखर्जी द्वारा निरस्त करने पर ही उसको मिली प्राणदंड की सजा क्रियान्वित हो सकी.  दुर्दांत  अजमल कसाब उन 10 पाकिस्तानी आतंकियों में से एक था, जिन्होंने सागर मार्ग से  मुंबई में प्रविष्ट  होकर 26/11 के दुष्कृत्य को सम्पन्न किया था. 26 नवंबर 2008 की रात को अजमल कसाब और 9 अन्य आतंकवादियों ने मुंबई के  दो होटलों, छत्रपति शिवाजी रेलवे स्टेशन, कामा अस्पताल, लियोपोल्ड कैफे और कुछ अन्य स्थानों पर हमला किया था. इन हमलों में 166 से ज्यादा लोग मारे गए थ और 300 अन्य घायल हुए थे. बाद में सुरक्षाबलों की कर्मठता,सजगता  और वीरता से   9 आतंकी मारे गए थे जबकि अजमल कसाब को  जीवित ही  बंदी बना लिया गया था

मई 2010 में अजमल आमिर कसाब को मुंबई हाई कोर्ट  ने फांसी की सज़ा सुनाई थी. कसाब को भारतीय दंड संहिता की चार धाराओं के अंतर्गत फांसी की सज़ा सुनाई गई, जबकि एक धारा के अंतर्गत उम्रकैद की सज़ा सुनाई गई. विशेष अदालत के जज टहिलायनी ने निर्णय देते हुए कहा था  कि कसाब एक किलिंग मशीन है और अगर उसको  मौत की सज़ा नहीं सुनाई जाती है तो लोगों के न्याय पर से विश्वास उठ जाएगा. कसाब को हत्या, हत्या की साज़िश रचने, भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ने और आपराधिक गतिविधि निरोधक कानून के अंतर्गत मृत्युदंड दिया गया था . इससे पहले 3 मई 2010 को मुंबई की आर्थर रोड जेल में बनी विशेष अदालत ने कसाब पर लगे 86 आरोपों में से 83 आरोपों का सही पाया था.

जिस अपराधी पर इतने मामले लंबित हों क्या उसके निर्दोष होने की कल्पना की जा सकती है.एक धारा 302 पर जब मृत्युदंड सुनाया जा सकता है,तो ऐसे खूखार हत्यारे के समर्थन में खड़ा होना!

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इस संदर्भ में कोई भी आपत्ति करना मानवतावाद नहीं अपितु मानवता के प्रति घोर अन्याय है.जिस क्रूरात्मा  को इतना वीभत्स कृत्य सम्पन्न करने का कोई भी पश्चाताप नहीं उसके लिए दैत्य,राक्षस,असुर हत्यारा आदि कोई   भी संज्ञा कम है ,और ऐसे नरपिशाच की फांसी पर दुःख मनाने वाला कोई भी व्यक्ति उन निर्दोष नागरिकों ,सुरक्षा कर्मियों ,अधिकारियों के प्रति शत्रुता का निर्वाह कर ही रहा है,अपितु मेरे विचार से ऐसे समर्थकों को  देश द्रोही कहा जाना चाहिए.

कसाब के दंड को  4 वर्ष तक लटका कर  रखना भी कुछ अधिक सदाशयता या निरर्थक औदार्य का ही कार्य था और उस पर दुःख मनाना उससे भी अधिक घृणित कृत्य .मेरे विचार से एक फांसी इतने निर्दोष  लोगों के परिजनों के घाव भर नहीं सकती बस तनिक सा मरहम ही लगा सकती है.जिनकी मांग के सिन्दूर पूंछे हो,जिनके बच्चे अपने जन्म लेते ही या जन्म से  पूर्व ही अनाथ हो गए,जिन माताओं की गोद सूनी हो गई सदा के लिए ,जो बहिने अपने सहोदर भाईयों को खो चुकी हों उनको कसाब की फांसी बस यही सन्देश दे सकती है,कि ऊपर वाले के यहाँ देर है अंधेर नहीं.

कसाब का अंत हो गया,अफजल को भी देश का धन लुटाने के बाद सजा ,मिलेगी ही (यदि नेताओं की सद्बुद्धि रही तो) इसी प्रकार ओसामा ,सद्दाम ……………..आदि दस्युओं का अंत हुआ ,परन्तु इनको बढ़ावा देने वाले तथा अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए इनको पालने वालों को क्या सजा मिली.आतकवाद की जड़ें बहुत गहरी हैं,जिनके पीछे महा शक्तियों के स्वार्थ हैं ,ये तो एक मरता है और असंख्य पैदा होते हैं .रक्तबीज हैं.रक्तबीज आदि दैत्यों का संहार तो माँ दुर्गा ने किया था.आधुनिक आतंकवाद के रूप विविध और विकरालतम हैं.साइबर आतकवाद के माध्यम से आतंकवादियों की पहुँच गहरा रही है,और शेष सब असहायहैं. छोटे-बड़े,आम आदमी -खास किसी को किसी को एक पल का भरोसा नहीं कब किस रूप में कितने लोगों की सामूहिक चिताएं सज जाएँ.

आज अन्तराष्ट्रीय  स्तर पर कठोर  नीति निर्माण और उसके निष्पक्ष क्रियान्वयन की आवश्यकता है. आज आवश्यकता उन उपायों को खोजने की है जो आतंकवाद को पनपने पर रोक लगा सके. आज आवश्यकता है देश में  ख़ुफ़िया तन्त्र को मज़बूत और हाई टेक बनाने की, सुरक्षा बलों को आधुनिकतम साधनों से सुसज्जित करने की.नहीं तो एक के बाद एक ऐसे कांड होते रहेंगें,हाई अलर्ट जारी होते रहेंगें,और निर्दोष नागरिकों की बलि ली जाती रहेगी.हम इसी प्रकार कभी आतंकवादियों पर धन लुटाते रहेंगें ,प्लेन हाइजेक होते रहेंगें और आतंकवादी उनको कैद से  मुक्त कराते  रहेंगें और ये तथाकथित मानवतावादी जिनको सहानुभूति देशवासियों से नहीं इन दुष्टात्माओं से होती है इनके समर्थन में चिल्लाते रहेंगें

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