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जनाक्रोश से भी भयभीत नहीं हैं,नीरो बने सत्ताधीश!

chandravilla
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इतिहास के अनुसार वर्ष ६४ ईस्वीं में रोम में भयंकर आग लगी थी जो लगभग छह दिन तक जलती रही और इस आग में रोम के अधिकांश शहर बर्बाद हो गए थे , कुछ इतिहासकार इस विनाश के लिए  के लिए रोम के सम्राट नीरो को उत्तरदायी  मानते  है .इतिहासकारों के अनुसार   जब रोम जल रहा था सम्राट नीरो सब कुछ जानते हुए भी अपने में मगन होकर बांसुरी बजा रहा था. नीरो वास्तव में एक क्रूर और खूंखार शासक था , स्वार्थ के सामने   माँ-,बहिन,  पत्नी या किसी भी अन्य को मौत के घाट उतरवाने में उसको कोई संकोच नहीं होता था,ऐसे व्यक्तियों पर प्रजा के कष्टों का क्या प्रभाव पड़ता, आज देश के समक्ष यही स्थिति है,देश के समक्ष एक के बाद एक बड़ी समस्याएं सुरसा के मुख की भांति अपना विकराल मुख बाए खड़ी हैं.और हमारे शासक हैं कि  जो नीरो का अद्यतन संस्करण बन  अपने आमोद-प्रमोद,अपनी गद्दी संभालने में  ही  खोये हैं,उनको चिंता है,शिमला में मुख्यमंत्री को शपथ दिलाने की ,न कि  मौत से टक्कर लेती एक पीड़ित बेटी की.यहाँ तक कि उनके पास उस जनता की समस्याएं सुनने की भी फुर्सत नहीं जिनके कारण वो ये शाही ठाठ बाट भोग रहे हैं.वास्तव में देखा जाय तो वर्तमान व्यवस्था तो नीरो के युग  से भी गई गुजरी है,क्योंकि नीरो  तो वंश परम्परा से शासक बना था और यहाँ तो जनता के आगे अपनी झोली फैलाकर वोट मांगकर गद्दी पर सवार हुए हैं.और जनता की आर्त करुण  पुकार सुनने को भी तैयार नहीं ,जबकि जिस राजधानी में ये गेंगरेप की कलंकित  घटना घटित हुई उस दिल्ली की मुख्यमंत्री एक महिला है.सतारूढ़ दल की अध्यक्षा महिला हैं,नेता विपक्षी दल महिला हैं,और  लोकसभा के स्पीकर पद पर भी  महिला ही आसीन है.

सम्पूर्ण घटनाक्रम समस्त स्तरों पर  अत्याधिक गंभीर,लज्जास्पद है,परन्तु दोषी आखिर कौन है. अपने जीवन को भी परिवार के लिए न्यौछावर करने वाली नारी को सम्मान सैद्धांतिक स्तर पर अधिक और व्यवहारिक स्तर पर अपेक्षाकृत कम ही मिला है.इसके लिए दोषी सामाजिक  ताना -बाना है.परन्तु  ऐसे अपमान की घटनाएँ आटे में नमक जितनी थीं परन्तु आज नमक अधिक और आटा लुप्तप्राय है.यही कारण है कि राजधानी दिल्ली में बलात्कार की घटनाओं का आंकडा चिंताजनक है.प्रधान कारण पतनोन्मुख मानसिकता है वो मानसिकता  पुरुष,नारी समाज के हर वर्ग की है. अतः आगामी पीढ़ी पर ये संस्कारों का  रिक्त  कोष पता नहीं क्या कहर ढाएगा ये तो घोर  चिंता का विषय है..सम्पूर्ण परिवेश उसकी पृष्ठभूमि में है.आज सभी विज्ञापनों ,टी वी कार्यक्रमों ,फिल्मों  के सस्ते  अश्लील मनोरंजन और  पाश्चात्य अंधानुकरण  में खोया समाज तथाकथित आधुनिक  अपितु(माड)बनने के लिए व्याकुल है.फैशन के नाम पर युवक युवतियां यहाँ तक कि बच्चे भी शराब,नशे ,डिस्को,पब संस्कृति की गिरफ्त में है,और अपेक्षाकृत कम साधन सम्पन्न भी बर्बादी की कगार पर हैं.संस्कार  तो उपहास का विषय बन चुके हैं.

नारी जाति पर बढते अत्याचार देश के माथे पर कलंक की कालिमा को गहरा कर रहे हैं.दिन-रात,सुबह शाम,घर-बाहर ,यात्रा में ,अकेले,मातापिता  या किसी अन्य परिचित के  साथ होने पर भी अपमान सहने को विवश हैं.दिल्ली की गेंगरेप की घटना अभूतपूर्व नहीं,,श्रृखला की एक कड़ी है. श्रृंखला की कड़ियों की तो गणना भी करना असंभव है.क्योंकि कहीं नारी विवशतावश बलात्कार की पीड़ा को सहती है,तो कहीं सहकर उसको मौन रहने के लिए मजबूर होना पड़ता है,कहीं वह पिता,भाई और सगे सम्बन्धियों से पीड़ित है तो कहीं उसके विलासी शौक उसको स्वयम ही देहव्यापार के लिए आदि बना चुके हैं.गाँव में भी दबंगों की दबंगई का शिकार वो होती रही है, उनको वस्त्रविहीन कर गाँव में घुमाने की घटनाएँ प्राय सुनी जाती हैं. सब कुछ जानते हुए ,देखते हुए सब मूक दर्शक बने रहते हैं.सर्वप्रथम तो घटना गाँव से बाहर भी नहीं आ पाती और प्रत्यक्ष गवाह यहाँ तक कि पीडिता और उसके परिजन भी अपना मुख सिल लेते हैं.

मीडिया का योगदान प्राय निष्पक्ष नहीं होता परन्तु इस घटना को सुर्खी बनाकर एक जोश जागृत करने के लिए श्रेय मीडिया को ही जाता है.जिसके कारण देश के कई भागों में प्रदर्शन हुए, राजधानी में विशाल जनसमुदाय  इंडिया गेट पर पहुंचा.  राजपथ पर प्रदर्शनकारियों की भीड़  उमड़ पड़ी  और ‘वी वॉन्ट जस्टिस’ (हमें इंसाफ चाहिए) से वातावरण गूँज उठा.”विनाशकाले विपरीत बुद्धि” जनसमुदाय की  समस्या सुनकर सांत्वना के दो बोल बोलने के स्थान पर  शांतिपूर्वक प्रदर्शन कर रहे जन समुदाय को  सत्ता के इशारे पर पुलिस ने कोहरे और शीत लहर के मौसम में अपनी असंवेदनहीनता,अहंकार और तानाशाही का परिचय देते हुए ठंडे  पानी की बौछार करनी शुरू कर दी। अश्रु गैस  के गोले भी छोड़े गये परन्तु आक्रोशित जनसमुदाय नहीं डिगा , तो उन्होंने बल प्रयोग करते हुए निहत्थे लोगों पर लाठियों का प्रहार करते हुए अंग्रेजों से भी क्रूर प्रमाणित किया स्वयं को.अंग्रेज तो विदेशी थे ,परन्तु ये काले अंग्रेज तो उनसे भी घातक और जहरीले हैं,जिनको इस कृत्य पर कोई अफ़सोस नहीं ,युवा,बच्चे महिलाएं किसी को भी नहीं बख्शा इन्होने.daman
रविवार को हुई तोड़ फोड,आगजनी  निश्चित रूप से निंदनीय है,परन्तु इसके लिए उत्तरदायी तो सरकार का गैर जिम्मेदाराना व्यवहार ही है.वैसे भी ये कोई व्यवस्थित या एक संगठन का आक्रोश नहीं था,अपितु सभी प्रकार के लोग ,महिला संगठन इसमें भाग ले रहे थे, किसी एक नेतृत्व में उनका आंदोलन नहीं था.ऐसे में अनुशासन की बहुत अधिक आशा करना बेमानी है,क्योंकि असमाजिक तत्व ऐसे अवसरों का लाभ उठाने या ऐसे आंदोलनों में फूट डालने के लिए प्राय ऐसे हथियारों का प्रयोग करते आये हैं.ये   अनुशासन हीनता पूर्व प्रायोजित भी हो तो कुछ आश्चर्य नहीं.
समस्याएं,दोषारोपण होना कोई नयी बात नहीं.जब भी कोई घटना चर्चित होती है,माहौल गर्म होता है,तो उबाल आता है और कुछ समय पश्चात न केवल जोश ठंडा पड़ जाता  है,मानव स्वभाव के अनुसार घटना का चित्र ,प्रभाव धुंधला पड़ने लगता है.अतः  आवश्यकता है गंभीरता से सोचने की ,इस सांस्कृतिक प्रदूषण से अपने देश की रक्षा करने की ,और साथ ही सत्ताधीशों रूपी नीरो  को चेताने की कि जनाक्रोश को सस्ते में न लें.जन प्रतिनिधि के रूप में चुन कर आये ये जनता के स्वामी बनने की भूल न करें .  आज जिनके कानों पर जनता की पुकार से  जू नहीं रेंगती उनको यही जनता सबक सिखाने से नहीं चूकेगी.. सकारात्मक कारणों से किया गया आंदोलन ,जनाक्रोश जो आज उनको डिगाता नहीं इसकी उपेक्षा बहुत महंगी पड़ेगी .यदि कठोर कदम नहीं उठाये गए और स्वयम को संयमित नहीं किया तो  नारी जाति का गौरव पूर्णतया विलीन हो जाएगा  द्रौपदी, अहिल्या ,दामिनी वहशियों के हाथों बर्बाद होती रहेंगी और बेटियों का जन्म तो पूरी तरह से  अभिशाप ही बनकर रह जाएगा .मत भूलिए सृष्टि के विनाश का लक्षण है ये .

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