Menu
blogid : 2711 postid : 2395

भारत हो चाहे इंडिया बेटियां तो हमारी ही हैं. जागरण जंक्शन फोरम

chandravilla
chandravilla
  • 307 Posts
  • 13083 Comments

भारत में जन्म लेकर,यहीं के अन्नजल से बड़े हुए आधुनिकता का चश्मा पहने लोगों से यदि लोगों से उनके देश का नाम पूछा जाय तो वो इंडिया कहकर स्वयं को गौरवान्वित अनुभव करते हैं,जो निश्चित रूप से एक अपमानजनक सत्य है,परन्तु इसके लिए उनको दोषी ठहराना न्यायसंगत कैसे माना जाय जबकि हमारे संविधान में लिखा गया है इण्डिया दैट इज  भारत .अर्थात संवैधानिक रूप से जिस तथ्य को हम स्वीकार कर रहे हैं,आज तक भी हमारी सरकारें स्वयम  को गवर्नमेंट ऑफ इंडिया लिखती हैं तो ये प्रश्न उठाने का क्या औचित्य शेष रह जाता है …………. हमारे से श्रेष्ठ तो श्रीलंका और म्यांमार है,जिनको उनकी स्वाधीनता से पूर्व सीलोन और बर्मा के नाम प्रदान किये गए थे परन्तु अपनी राष्ट्रीयता का सम्मान करते हुए उन्होंने अपनी मौलिकता को अपनाया .जबकि हमारा देश, जो सभी क्षेत्रों में अपनी  समृद्ध धरोहर के लिए सम्पूर्ण विश्व के लिए आकर्षण का केन्द्र था आज भी उसी नाम  को ,अपमान को गले से लगाये हुए है.निश्चित  रूप से इसके लिए दोषी मान जाता है,ब्रिटिश शासन को ,परन्तु क्या कोई भी स्वदेश प्रेमी या विचारक मन से इस तथ्य को स्वीकार कर सकता है कि अंग्रेजों को भारत छोड़े हुए साढे छह दशक से अधिक समय हो गया और संविधान में अद्यतन 117 संशोधन हो चुके हैं परन्तु यह महत्वपूर्ण संशोधन नहीं हुआ. तो दोषी कौन हैं ?आखिर किसको विरोध है भारत को भारत कहने में ?
हमारी सभ्यता – संस्कृति और मानसिकता के आमूल चूल परिवर्तन के लिए निश्चित रूप से दोषी शिक्षा पद्धति है जिसके जनक लार्ड मैकाले ने  इस तथ्य को पहिचाना  किया  कि भारतीय संस्कारों पर प्रहार करके  ही हम अपना राज्य स्थायी कर सकते हैं,जिसका प्रमाण उसका ये प्रस्ताव  जो उसने ब्रिटिश संसद के समक्ष 1835 में प्रस्तुत किया ,

मैंने भारत के कोने-कोने की यात्रा की है और मुझे एक भी ऐसा व्यक्ति नहीं दिखाई दिया, जो भिखारी हो या चोर हो। मैंने इस देश में ऐसी संपन्नता देखी, ऐसे ऊंचे नैतिक मूल्य देखे कि मुझे नहीं लगता कि जब तक हम इस देश की रीढ़ की हड्डी न तोड़ दें, तब तक इस देश को जीत पायेंगे और ये रीढ़ की हड्डी है, इसकी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत, इसके लिए मेरा सुझाव है कि इस देश की प्राचीन शिक्षा व्यवस्था को इसकी संस्कृति को बदल देना चाहिए. यदि भारतीय यह सोचने लग जाए कि हर वो वस्तु जो विदेशी और अंग्रेजी, उनकी अपनी वस्तु से अधिक श्रेष्ठ और महान है, तो उनका आत्म गौरव और मूल संस्कार नष्ट हो जाएंगे और तब वो वैसे बन जाएंगे जैसा हम उन्हें बनाना चाहते है – एक सच्चा गुलाम राष्ट्र . लार्ड मैकाले ने इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये अपनी शिक्षा नीति बनाई, जिसे आधुनिक भारतीय शिक्षा प्रणाली का आधार बनाया गया ताकि एक मानसिक रूप से गुलाम कौम तैयार किया जा सके, क्योंकि मानसिक गुलामी, शारीरिक गुलामी से बढ़कर होती है.
उसका ये स्वप्न पूर्ण हुआ और आज वो हम प्रत्यक्ष देख रहे हैं,भले ही अंग्रेज शासक नहीं परन्तु पाश्चात्य जीवन शैली ,भाषा अपनाने के लिए एक होड है,जिसके परिणाम स्वरूप सब भाग रहे हैं कि कहीं हम पीछे न रह जाएँ.

वास्तव में देखा जाय तो वर्ग विहीन समाज दुनिया के किसी भी कोने में नहीं यहाँ तक कि ऐसा दिखावा करने वालों के लिए भी यह एक स्वप्न ही बनकर रह गया.अतः समाज में किसी न किसी रूप में वर्ग सदा विद्यमान रहे हैं.चाहे वह  वर्ग आर्थिक आधार पर बने हों,शासक-शासित ,शिक्षित-अशिक्षित ……………..परन्तु आज  हमारे देश में  वैचारिक ,आर्थिक सभी स्तरों पर भारत और इंडिया के रूप में विभाजन दिखता है.समय के साथ परिवर्तन अवश्यम्भावी और अपरिहार्य है,परन्तु आज स्थिति पूर्णतया भिन्न है.आज इंडिया का स्वरूप किसी विचारक के शब्दों में .“इंडिया वो है जो महानगरों की अट्टालिकाओं में बसा करता था और अब तेजी से छोटे शहरों में भी दिखने लगा है. इंडिया विकसित है. इसमें देश की जनसंख्या का इतना प्रतिशत है जिसे अँगुलियों पर गिना जा सके. उच्च आय वर्ग वाला तमाम सुख सुविधाओं से लैस. इनके शहर योजनाओं के अनुसार बसते हैं और अगर बिना योजनाओं के बदलते हैं तो उसे योजना में शामिल कर लिया जाता है .”इतना ही नहीं नित नूतन ब्रांड की गाडियां,विलासिता के साधन ,बच्चों को साहबी बनाने वाले इंटरनेशनल पद्धति का अनुसरण करने वाले शिक्षण संस्थान,पिता-पुत्री ,बहिन- भाई के रिश्तों को तिलांजली देते हुए,पब ,अश्लील नृत्यों और गानों पर शराब और अन्य नशीली वस्तुओं की गिरफ्त में फंसे युवा………………पडौसी का पडौसी को  जानना – पहिचानना केवल स्वार्थ वश .
भारत की यदि बात करें …………..
भारत, यह विकाससील है. इसमें आबादी का वो हिस्सा रहता है जो  ऊपर वर्णित इंडिया की रोजमर्रा की जरूरतों की आपूर्ति करता है. मसलन घरेलू काम करने वाली बाई, कार की सफाई करने वाला, दूध वाला, धोबी, महाअट्टालिकाओं के गार्ड, इलेट्रिशियन और प्लंबर आदि-आदि. भारत में रहने वाले के पास न अपना कहने को जमीं होती है और न कोई छत. वो झुग्गियों में रहता है, अवैध बस्तियों में या फिर शहर के कोने में बच गये पुराने किसी शहरी से गांव में.”   इसके अतिरिक्त  सक्षेप में  प्रतिदिन  कुआँ  खोदना और पानी पीना  इनकी नियती है. अवसर आने पर एक दूसरे के  काम आना ,सुख-दुःख को अपना मानना.
उपरोक्त वर्णित इंडिया और भारत के मध्य एक चिर परिचित  मध्यम वर्ग है जो उस शिखर को तो छूने में समर्थ नहीं और न ही भारतीय संस्कारों से स्वयम को पृथक रख पा रहा है,और न ही केवल भारतीय बन कर रहना चाहता है
.
बलात्कार का जहाँ तक संबंध है कि वो इंडिया में होते हैं भारत में नहीं ,पर विचार करने के लिए मेरे  विचार से ये अंतर,इसके पीछे मानसिकता को  समझना आवश्यक है.बलात्कार,अपहरण लड़कियों को विवाह मंडप से उठा लेना आदि प्रचलन में तो भारत इंडिया  सर्वत्र हैं, बस स्वरूप में अंतर है.अंतर है उस मानसिकता का  जो  भारत की जनता पर स्पष्ट है और वहाँ लड़की के साथ ऐसा होने पर शेष समाज उसको पचा नहीं पाता अतः उस लड़की या महिला का जीना दूभर हो जाता है,यहाँ तक कि इस पीड़ा को सहन करने के साथ,उसके परिजन ही उसको दोषी मान बैठते हैं .यहाँ तक कि वो कभी नींद की गोलियाँ खाकर चिर निंद्रा में सो जाती है,तो कभी चुन्नी  या साड़ी बांधकर पंखे से लटककर अपनी जान दे देती है और कई बार तो उसको उसके परिजन ही उसको विवश करते हैं,या उसको निर्दयता से मौत की नींद सुला देते हैं.अतः स्वयं लड़की या उसके परिजन लड़की का जीवन बर्बाद होने पर ,अपराधी का पता होने पर भी मुहं सिल लेते हैं.प्राय लड़की को धमकी दी जाती है कि ऐसा करने पर उसके परिवार को ही समाप्त कर दिया जाएगा.मरता क्या न करता .शिक्षा की कमी ,जानकारी का अभाव,परिवार की सुरक्षा ,बदनामी ,दबंगों का भय आदि कारणों से ये घटनाएँ सामने बहुत कम आती हैं.वैसे भी अस्पृश्यता का चलते हरिजनों को मंदिर और कुँए पर जाने की अनुमति न देने वाले दबंगों को हरिजनों की सुन्दर बेटियां को बर्बाद करते समय उनकी सोच बदल जाती  है,कोई परहेज छुआछूत आड़े नहीं आती.और यही कारण है कि कभी वहाँ निर्वस्त्र महिलाओं की परेड कराई जाती है,तो कभी उनके पति का वध कर दिया जाता है,कभी उनके घरों में आग लगा दी  जाती है.उपलब्ध आंकड़ों को यदि सही माना जाय तो क्रिमिनल ला जनरल के अनुसार कुछ हाई कोर्ट में 80% और सुप्रीम कोर्ट में 75% केसेज ग्रामीण क्षेत्रों में पंजीकृत है,इसी प्रकार गेंग रेप के मामलों का अधिक प्रतिशत भी ग्रामीण क्षेत्रों से है.


इंडिया में रहने वाले अधिकांश जन अपेक्षाकृत  ऐसी घटनाओं से प्रभावित नहीं होते और घटनाएँ भी आम हैं  अतः प्राय  देख कर भी आँखें बंद रखी जाती हैं..आपाधापी ,भागदौड के चलते उनको इतनी फुर्सत नहीं कि व्यर्थ में  किसी के मामले में टांग अड़ाए. वैसे भी पडौसी ही पडौसी को नहीं पहिचानता . पढ़ाई या नौकरी के कारण परिवारों से बाहर रहते हुए लड़के -लड़कियां स्वयम को स्वतंत्र अनुभव करते हैं,और बुराई में सदा आकर्षण होता है,उधर फ़िल्में,इंटरनेट ,मोबाइल का दुरूपयोग , कुछ साथियों का उन्मुक्त जीवन ,लिव इन रिलेशनशिप में रहना ,मौज-मस्ती कोई झंझट नहीं आदि भी प्रभावित करते हैं, अतः  भटकाव अधिक है. परिणामस्वरूप जहाँ आम आँखें बुराई खोजती हैं,वो सामान्य दिखने लगता है.और मीडिया भी इस संदर्भ में अधिक सक्रिय रहता है, अतः प्राय घटनाएँ प्रकाश में अधिक आती हैं.
हाँ सत्यता इतनी अवश्य है,कि शराब का आम होता चलन सर्वाधिक उत्तरदायी है इन घटनाओं के लिए ,जिसके चलते व्यक्ति अपना तन तो खोखला करता ही है,उसको उचित-अनुचित में कोई अंतर नहीं दिखता और शैतान हावी रहता है उस पर.और यह कारण  भारत और इंडिया दोनों में प्रभावकारी है.इसके अतिरिक्त भी अश्लील-भद्दे गीत,संवाद दृश्य कुत्सित भावनाओं को जगाते हैं .इसके अतिरिक्त इलेक्ट्रोनिक और प्रिंट मीडिया में  अधिकांश समाचार और दृश्य ऐसे ही होने के कारण भारत में भी यह प्रचलन बढ़ रहा है.

थोडा बहुत अंतर मिल सकता है तो उस भारत में जहाँ आधुनिक सुविधाओं  के नाम पर कुछ भी नहीं,न वहाँ फ़िल्में है,न अश्लील गीत और संवाद,न मोबाइल जहाँ पहले पेट भरने को रोटी चाहिए और जहाँ हम आप कोई नहीं पहुँच पाते .

बुराई का  रोग पनपना आसान है,परन्तु उसको समूल नष्ट करना असंभव और वो भी  हाँ,त्वरित ,कठोर ,निष्पक्ष न्याय  के रूप में रोक लगा सकते हैं.शेष तो परिवार के संस्कार ही तारणहार हैं.उत्तम है समस्या का निवारण न कि भारतीय पुलिस की तरह ये देखना कि किसका क्षेत्र है.क्षेत्र चाहे जो भी  हो बहिन बेटियां तो हमारी ही हैं.अतः बेटियों को सदाचार की शिक्षा देने के साथ लड़कों को भी संस्कारित करना और उत्तरदायित्व सौपना अनिवार्य है.

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh