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अंधे क़ानून को दृष्टि दान कब?

chandravilla
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KAANOON

दामिनी कोई इन्साफ तुमको तुम्हारे देश में  नहीं मिल सकता ,तुम्हारे साथ हुई दरिंदगी  ने कुछ समय के लिए खोयी चेतना लौटाई तो थी परन्तु अब  कुछ नहीं  हो सकता .अपितु दरिंदे खुले घूमेंगें गर्व से सीना फुला कर और प्रशिक्षण देंगें अन्य अवयस्कों को, तुम्हारे जैसी बेटियों को बर्बाद करने का. जानती हो क्यों ,क्योंकि तुम उस देश में पैदा हुई थी जहाँ क़ानून अंधा है.

क़ानून अंधा है ,ऐसे बचपन से सुना था ,कुछ  अवसरों पर वास्तविकता में और अधिकांश,फिल्मों,नाटकों ,उपन्यासों में पढ़ा सुना था ,परन्तु दामिनी केस के फैसले ने तो झकझोर दिया हर संवेदनशील नागरिक को.सारी दुनिया जिस तथ्य से परिचित है ,ऐसा क्रूर दरिंदा ,नर पिशाच जो पहले दीदी कह कर संबोधित करता है और फिर प्रयोग करता है अभद्र भाषा और फिर …………………जो आंते बाहर निकाल सकता है ,दुष्कर्म कर सकता है क्या वो निर्दोष हो सकता है?कोई उसका नाम मौहम्मद अफरोज बताता है तो कोई राजू,वो चाहे जो भी हो उसको यूँ आज़ाद घूमने का अधिकार ! अवयस्क मानने के कारण उसको किसी जेल में नहीं भेजा जाएगा ,कोई सजा नहीं बस वो रहेगा बाल सुधार गृह में ,आरोप प्रमाणित होने पर अधिकतम 3 वर्ष और न्यूनतम 2 वर्ष.उसको आराम से रखा जाएगा ,उसकी जमानत भी हो सकती है और वयस्क होने पर भी उसके विरुद्ध कोई कार्यवाही भविष्य में नहीं होगी.निश्चित रूप से इसके आड़े आता है क़ानून का अंधत्व .जो कुत्सित इरादे ,अपराध की गंभीरता को अनदेखा करता है,और शायद  एक पक्षपात भी .पक्षपात क्यों कहा आईये देखते हैं ……….

दिल्ली गैंग रेप का एक आरोपी नाबालिग है और जूवेनाइल जस्टिस बोर्ड के सामने उसके स्कूल के प्रिंसिपल ने भी इसकी पुष्टि कर दी है। स्कूल रेकॉर्ड के मुताबिक उसकी उम्र 17 साल 6 महीने है। यूपी के भवानीपुर (जिला बदायूं) स्कूल के मौजूदा और पूर्व हेडमास्टर जेजे बोर्ड के सामने आए। इसी स्कूल में आरोपी ने क्लास 3 तक पढ़ाई की है। उन्होंने बताया कि वह लड़के को नहीं पहचान सकते लेकिन यह जानते हैं कि उसने स्कूल में 2002 में एडमिशन लिया था। पूर्व प्रिसिंपल ने कहा कि एडमिशन के वक्त लड़के के पिता उसके एडमिशन के लिए आए थे और उसकी डेट ऑफ बर्थ 4 जून 1995 लिखवाई। उन्होंने जेजे बोर्ड को यह भी बताया कि हमने एडमिशन के वक्त लड़के के पिता से उसकी उम्र का सबूत नहीं मांगा। हमने इसे ऑफिशियल रेकॉर्ड की तरह लिया और फिर हर एकेडमिक सेशन में इसे ही फॉलो किया।

मेरा प्रश्न सभी विज्ञ विधि वेत्ताओं या सुधि जनों से जिस देश में लिखित प्रमाणपत्र निशदिन नकली पकडे जाते हों,पासपोर्ट ,डिग्री,शस्त्र लाइसेंस ,ड्राइविंग लाइसेंस ,प्रवेश प्रमाणपत्र ,निर्वाचन प्रपत्र ,परीक्षार्थी  साक्ष्य ………..तक नकली पकडे जाते हों वहाँ  केवल एक व्यक्ति का यह कथन एक  ऐसा ईश्वरीय वचन है कि उसको सही माना जा रहा है,आखिर कौन सा दवाब है जो उसके साथ ऐसी उदारता ?

वो प्रधानाचार्य उस विद्यार्थी को पहिचानते तक नहीं .हमारे देश में आज भी असंख्य केसेज आपको ऐसे मिल जायेंगें कि पूर्व में जब प्रवेश दिलाने के लिए  बच्चों को ले जाया जाता था तो कोई भी इस कार्य के लिए चला जाता था और कुछ भी आयु लिखा देते थे.और प्रधानचार्य के बयान की क्या गारंटी ली जा सकती है ,क्योंकि बयान तो धनबल ,बाहुबल और किसी सी अन्य भयवश दिया जा सकता है.क्या ये केस भविष्य में एक मार्ग दर्शक बन जाएगा.तो इस केस में इतनी ढिलाई बरतने का कारण?आयु को मौखिक कथन के आधार पर वैध क्यों माना गया?

जिस व्यक्ति ने ये प्रमाण दिया है क्या  वो न्यायालय के समक्ष अपराधी नहीं माना जाएगा ,यदि इस प्रूफ को नकारेगा?

आज जबकि बच्चों  और किशोरों के  समय से पूर्व ही उन गतिविधियों का अंग बनने की समस्या  सामने आ रही है,जिनको हम अश्लील ,अभद्र या समाजविरोधी मानते हैं ,उनके लिए मार्गदर्शक का कार्य नहीं करेगा इस केस का निर्णय.कुछ भी करो और आराम से घूमो .कितनी बहिन बेटियों को बर्बाद करने ,उनकी हत्या तथा अन्य अपराधिक गतिविधियों में संलिप्त करने के लिए जिम्मेदार होगा ये केस.

कुछ दिन पूर्व समाचार पढ़ा था कि कुछ संगठन दवाब डाल रहे हैं उसको सजा से बचाने को.यदि ऐसा है तो मेरे विचार से वो लोग भी नर पिशाच हैं,दरिंदे हैं. और हाँ ,इसके पिता का इसके समर्थन में खड़ा होना ,वकीलों द्वारा उसके पक्ष में केस लड़ना ! क्या हो गया है आदमी की सोच को.क्या ये स्वार्थ का चरम नहीं?स्वार्थियों का अपनी आत्मा को बेचना नहीं.?.उस पिता का,उन वकीलों का और उन संगठनों को क्या नाम दिया जाय , जो उसका समर्थन कर उसकी पीठ थपथपा रहे हैं, क्या इन लोगों के घर में बहिन बेटियां नहीं.या इनको उनकी चिंता नहीं

ऐसी परिस्थिति में हमारे देश से बलात्कार तथा अन्य जघन्य अपराध कभी समाप्त होंगें ,उनपर लगाम लगेगी ? असंभव.क़ानून तो रोबोट है ही उसके पालन करवाने वाले भी रोबोट बन रहे हैं.इस संदर्भ में किसी व्यक्ति का कथन यहाँ लिखना चाहूंगी

अगर “बालिग़” एक शारीरिक स्थिति है तो बलात्कार करने वाला कभी नाबालिग नहीं हो सकता और अगर “बालिग़ ” बौद्धिक स्थिति है तो तमाम बुजुर्ग “नाबालिग” हैं .” –

मेरे विचार से यथासंभव और यथाशीघ्र  ऐसे क़ानून में परिवर्तन होना चाहिए क़ानून का अंधापन समाप्त होना चाहिए..और जब तक क़ानून में परिवर्तन हो उसको कड़ी निगरानी में रखना चाहिए कुछ उत्पादक कार्य उससे करवाने चाहिए और वयस्क होने पर भी कुछ समय बाद भी उसका रिकार्ड अपराधिक रहे तो उसको छोड़ना नहीं चाहिए..और ऐसी सजा मिलनी चाहिए जो सभी अपराधियों के लिए एक सबक सिखाने वाली हो.

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