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जीवन का शत्रु कैंसर (विश्व कैसर दिवस पर )

chandravilla
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किसी को भी इस शत्रु से दो दो हाथ न करने पड़े.विश्व कैंसर दिवस पर यही कामनाएं सभी के लिएworld-cancer-day2009


आज विश्व कैंसर दिवस है.अपने परिचितों,सम्बन्धियों में प्राय किसी न किसी के इस घातक रोग से पीड़ित होने का समाचार सुनते और देखते हैं.निश्चित रूप से ये प्राणघातक रोग है,परन्तु  रोग की प्रारंभिक स्थिति में  ज्ञात हो जाने पर कुछ सीमा तक प्राणों की रक्षा संभव है.ये कोई कोरी कल्पना नहीं मेरी अपनी स्वर्गीया माताजी  तथा कुछ लोगों के  प्रत्यक्ष उदाहरण मेरे समक्ष हैं.मेरी मा के कैंसर पीड़ित होने का पता 1978 में चला था जो प्रारम्भिक अवस्था थी.उनका शरीर दुर्बल होने के कारण और आयु भी 55-60 के आसपास होने के कारण उनके लिए एलोपैथिक उपचार उनके अनुकूल नहीं था अतः केवल होमियोपथिक उपचार पर ही आश्रित थीं वो और सामान्य जीवन जीते हुए 1999 में उनका स्वर्गवास हुआ.

कैंसर शरीर के किसी भी भाग में हो सकता है और उसके विविध कारण हैं परन्तु धूम्रपान एक ऐसा कारक है ,जिसके कारण धूम्रपान करने वाला व्यक्ति स्वयम तो उसका शिकार बनता  ही है उसके साथी,परिजनों और हर समय साथ रहने वालों पर भी उसका दुष्प्रभाव होता है,विशेष रूप से बच्चों में .

मनौतियां मानकर एकलौते पुत्र का जन्म जब एक परिवार में हुआ तो उनकी प्रसन्नता का पारावार न था,शायद कोई धार्मिक स्थान का दर्शन ,दान-पुण्य उन्होंने नहीं छोड़ा था.अंतत संतान तो उनको ईश्वर ने दी .परन्तु कुछ समय पश्चात ही उस बच्चे को   निरंतर खांसी का प्रकोप रहता,सोते समय तो उसका रोग और भी बढ़ जाता,डॉक्टर्स दवाई देते भी ,परन्तु कोई भी सुधार नहीं.एक परिचित ने धूम्रपान करने वाले उस बच्चे के पिता को किसी डाक्टर का पता बताया,तो डाक्टर ने सामान्य औषधी देकर उसको समझाया कि धूम्रपान तुमको छोड़ना होगा अन्यथा इसका रोग ठीक होना कठिन है.इतने लंबे समय से धूम्रपान कर रहे उन सज्जन के लिए छोडना सरल तो नहीं था परन्तु पत्नी ,अन्य लोगों के समझाने और एकलौते बच्चे का भविष्य सोचते हुए उन्होंने सिगरेट छोड़ दी.यदि हम विचार करें तो………………somkers-lungs

धूम्रपान को लेकर किए गए अब तक के पहले अंतरराष्ट्रीय अध्ययन से ये बात सामने आई है कि दुनियाभर में हर साल छह लाख से ज्यादा लोग “पैसिव स्मोकिंग” यानी दूसरों के धूम्रपान के धुंए को झेलने से मर जाते है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने करीब 200 देशों में किए इस अध्ययन में पाया कि पैसिव स्मोकिंग यानी परोक्ष रूप में धूम्रपान करने वाले बडे पैमाने पर ह्रदय रोग, सांस की बीमारियों और फेफडों के कैसर से पीडित होते है.
अध्ययन के अनुसार दुनियाभर में हर साल होने वाली मौतों का एक प्रतिशत हिस्सा पैसिव स्मोकिंग से होने वाली मौतों का है. विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार परोक्ष धूम्रपान को सबसे ज्यादा असर बच्चों पर पडता है. घर में रहने हुए इस धुंए को झेलने से नवजात शिशुओं में निमोनिया, दमा और अचानक मौत का खतरा कई गुना बढ जाता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दुनियाभर में धम्रपान को रोकने के लिए कानून बनाए गए है लेकिन अपने बच्चों को परोक्ष धूम्रपान से बचाने के लिए माता-पिता को जल्द से जल्द कारगर कदम उठाने की जरूरत है.
अध्ययन के अनुसार 40 प्रतिशत से ज्यादा बच्चें और 30 प्रतिशत से ज्यादा वयस्क लगातार पैसिव स्मोकिंग के शिकार हो रहे है. इसके चलते हर साल मरने वालों में एक तिहाई हिस्सा बच्चों को होता है.

भारत में बेशक 70 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) जीवनयापन करते है लेकिन ये लोग धूम्रपान करने में अमीर लोगों से कही आगे हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अध्ययन के अनुसार भारत में धूम्रपान करने वाले गरीब लोगों की संख्या अमीरों की तुलना में दोगुनी है. डब्ल्यूएचओ के विश्व स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आकड़ों पर आधारित हाल के एक अध्ययन के अनुसार भारत में अमीर लोग 21.8 प्रतिशत लोग धूम्रपान करते है जबकि धूम्रपान करने वाले गरीब लोगों की संख्या इससे दोगुनी 46.7 प्रतिशत है. निम्न और मध्यम आय वर्ग वाले देशों में धूम्रपान के क्षेत्र में सामाजिक आर्थिक असमानता का पता लगाने के लिए किए गए इस अध्ययन के अनुसार उच्च स्तर वाले सामाजिक आर्थिक समूह की तुलना में निम्न स्तर वाले सामाजिक आर्थिक समूह में धूम्रपान से मरने का खतरा कहीं अधिक होता है. डब्ल्यूएचओ के अनुसंधानकर्ताओं और स्पेन के मिगुएल हर्नानडेज यूनिवर्सिटी आफ एलाचे द्वारा यह अध्ययन किया गया है. अध्ययन के अनुसार गरीब लोगों में धूम्रपान की प्रवति अधिक होने के कारण इसका उनके स्वास्थ्य पर सीधा प्रभाव पड़ता है. केन्द्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय और डब्ल्यूएचओ द्वारा संयुक्त रूप से तैयार की गई वैश्विक वयस्क तंबाकू सर्वेक्षण इंडिया रिपोर्ट 2009-10 के अनुसार भारत में धूम्रपान करने वाले लोग एक महीने में सिगरेट पर औसतन 399 रुपए और बीड़ी पर 93 रुपए खर्च करते हैं. अध्ययन के अनुसार भारतीय गरीब महिलाओं में धूम्रपान की लत अमीर महिलाओं की तुलना में चार गुना है. गरीब महिलाओ में धूम्रपान की लत का प्रतिशत 12.4 है जबकि अमीर महिलाओं में 3.1 प्रतिशत है. भारत में 35.3 प्रतिशत पुरूष और 7.6 प्रतिशत महिलाएं धूम्रपान करती है.

धूम्रपान के अतिरिक्त गुटखे से होने वाले मुख कैंसर के लगभग 86% केस भारत में होना स्थिति की गंभीरता को भयावह दृश्य प्रस्तुत करता  है.छोटे छोटे बच्चे  विशेष रूप से  निर्धन वर्ग से चाहे वो कूड़ा  बीनने के कार्य में लगे हैं,या छोटे छोटे मजदूरी के काम में और कुछ मिले न मिले अपनी थोड़ी सी कमाई को गुटखे में उड़ाते हैं,अधजली झूठी  बीडी, सिगरटों से धुंआ उडाना उनका शौक बन जाता है ,और इसी काम से वो स्वयम को हीरो मान लेते हैं.

धनी या मध्यम वर्ग  इस अभिशाप से  मुक्त है ऐसा मानना भयंकर भूल है क्योंकि फिल्मों में या पोस्टर्स में या फिर अपने परिजनों को धूम्रपान करते देख कर बचपन से लगी लत उनका पीछा नहीं छोडती और एक बार इनके जाल में फंसने के बाद तो रोग से पीड़ित तो बन ही जाते  ही हैं,और एक स्थिति ऐसी आती है जब इस जहर से मुक्त होना चाहते भी उनके लिए संभव नहीं रह पाता और बहुत दृढ इच्छा शक्ति वाले ही सफल हो पाते हैं .

धूम्रपान ,गुटखे ,मद्यपान के  कारण  होने वाले गले,जिह्वा,फेफड़ों ,भोजन नली के कैसर के अतिरिक्त  भी त्वचा ,हड्डियों ,स्तन  प्रोस्टेट ग्रंथि ,मस्तिष्क  लीवर या शरीर के किसी भी भाग में उत्पन्न हुआ ये प्राणघातक रोग प्रदूषण,अनियमित जीवन शैली ,तनाव आदि अनेक  कारणों से भी होता है.

धूम्रपान के कारण अग्नाशय तथा गर्भाशय के केसेज भी बहुत अधिक हैं,ऐसा विशेष  शोध के पश्चात ज्ञात होता है.दुखद तो ये है कि प्राय इस घातक रोग का पता रोग की तीसरी या चौथी स्टेज पर चलता है और तब तक रोग का उपचार अपनी पहुँच से दूर हो जाता है.यदि जांच आदि के पश्चात प्रारम्भ से ही पता चल जाय तो रोग का निदान असंभव नहीं .

भारत में फेफड़ों के कैंसर का अच्छे से अच्छा इलाज उपलब्ध है लेकिन जागरूकता का अभाव हर उपलब्धि पर जैसे पानी फेर देता है। उनके अनुसार हर पाँच में से एक व्यक्ति केवल इसलिए फेफड़ों के कैंसर का शिकार होता है क्योंकि वह धूम्रपान करता है। इसलिए सबसे पहले धूम्रपान पर प्रतिबंध को अत्यंत कठोरता से लागू किया जाना चाहिए. साथ ही हर स्तर पर जागरूकता अभियान भी चलाया जाना चाहिए.

इस रोग के दिनप्रतिदिन वृद्धि को प्राप्त होने के कारण भारत जैसे विकास शील देश में यह चिंता का विषय तो है,परन्तु दुर्भाग्य इस संदर्भ में सरकार के द्वारा होने वाला रोग की रोकथाम के संदर्भ में प्रयास नगण्य ही है.इस संदर्भ में धनी और शिक्षित लोग भी उत्तरदायी हैं,जो जानकारी होने के पश्चात भी इससे स्वयम को बचाए रखने के लिए प्रयत्नशील नहीं दिखते.धूम्रपान ,गुटखे और शराब का बढ़ता चलन इसी तथ्य का प्रमाण है.छोटे  शहरों,ग्रामों ,कस्बों में तो ऐसे कुछ प्रयास दिखते ही नहीं.समय समय पर यदि ऐसे विशिष्ठ शिविरों का आयोजन कर जागृति उत्पन्न की जा सकती है,आजकल हमारे देश में विश्वस्तरीय सेवाएं प्रदान करने वाले महंगे अस्पताल हैं उनके संदर्भ में भी ऐसे नियम सरकार द्वारा बनाये जाने चाहियें कि उनके लिए ऐसे कैम्प आदि लगना अनिवार्य किया जाय.,जो केवल खानापूर्ति न हों.इन उत्पादों पर प्रतिबंध लगे और फिल्मों आदि में धूम्रपान तथा मद्यपान के दृश्यों को बंद किया जाय.

प्रतिबंध जिस वस्तु पर लगता  है,वो और भी धडल्ले से बिकती है,चोर बाजारी में और वो भी सब प्रशासन और पुलिस के संरक्षण में सम्पूर्ण कार्य होता है.साथ ही न्यायपालिका के आदेशों का मखौल उड़ाते हुए   सिगरेट के विज्ञापन बड़े बड़े शब्दों में  दिखाकर उसी में छोटी सी चेतावनी छाप देते हैं. बहुत समय पूर्व सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान पर प्रतिबंध लगाया गया था परन्तु उसका अनुपालन शून्य है.परिणामस्वरूप ये धूम्रपान इनसे विरत लोगों को हानि पहुचाता है और कोई रोक टोक उन पर नहीं.
सरकारी प्रयास के बाद व्यक्तिगत प्रयास भी कुछ सीमा तक जागृति ला सकते हैं.अपने साथियों,प्रियजनों तथा सहकर्मियों और अधीनस्थ कर्मचारियों को समझाकर और उनको वस्तुस्थिति से परिचित कराते  हुए.कुछ समय पूर्व महिलाओं ने शराब के ठेके बंद कराये थे,अपने  प्रयासों से ,यदि सरकारी आदेश हों तथा प्रशासन का सहयोग मिले तो कुछ नियंत्रण संभव .

(उपलब्ध आंकडें नेट से लिए गए हैं .)

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