संवेदनहीन राजनीति
इलाहाबाद में भगदड़ में मारे गए लोगों के परिजन बेहद नाराज़ हैं क्योंकि प्रशासन मृतकों के शवों को ले जाने के लिए एबुंलेंस तक मुहैय्या नहीं करा रहा है.
इलाहाबाद के स्वरुप रानी मेडिकल कॉलेज में मृतकों के परिजन आए हुए हैं और पोस्टमार्टम के बाद शवों को ले जा रहे हैं.
अभी तक कोई आला अधिकारी भगदड़ की घटना के बाद इलाहाबाद नहीं पहुंचा है. इतना ही नहीं सरकार को कोई मंत्री भी यहां नहीं आया है.परिजन खुद ही कफन लेकर आए हैं और गाड़ियों की व्यवस्था भी खुद ही कर रहे हैं. लोगों में इस बात को लेकर बहुत गुस्सा है.
हालात ये हैं कि पोस्टमार्टम के बाद मृतकों के परिजन शवों को लेकर बैठे हुए हैं कि उन्हें कोई गाड़ी मिले ताकि वो अंतिम संस्कार के लिए लाश ले जा सकें.
ये समाचार न तो किसी राजनैतिक दल के द्वारा प्रचारित है न ही किसी विशिष्ठ सरकार विरोधी का अपितु बी बी सी हिंदी का अपडेट है,कुम्भ के अवसर पर घटित इस दुखद घटना पर
प्रयागराज में महाकुम्भ में मौनी अमावस्या के महास्नान पर तीन करोड लोगों के स्नान करने का पूर्वानुमान था और समाचारों के अनुसार देश के कोने कोने से आये तथा विदेशी मेहमानों सहित लगभग इतने लोगों ने स्नान किया.आस्था और विश्वास इसी का नाम है,बाल-वृद्ध ,धनी निर्धन,स्त्री-पुरुष,शिक्षित-अनपढ़,विदेशी श्रद्धालु …….. सब को धुन,उत्साह कुम्भ स्नान के दुर्लभ अवसर पर ना चूकने का.
दुर्भाग्य से लापरवाही के कारण हुई अनियंत्रित भीड़ में भगदड़ मची और आशंका के अनुरूप घटी दुर्घटना में लगभग 36 लोग अपना जीवन गँवा बैठे और 50 से अधिक घायल हैं. घटना अभूतपूर्व नहीं क्योंकि इस प्रकार के आयोजनों में दुर्घटनाओं का शिकार पूर्व में भी श्रद्धालुओं को बनना पड़ा है,दुःख तो इस बात का है कि सम्बन्धित लोगों का ध्यान पीड़ितों को राहत पहुँचाने ,विशेष प्रबंध करने तथा सहानुभूति पूर्ण कार्यवाही का नहीं रहा . आरोप -प्रत्यारोप में उलझे प्रशासन तथा रेल विभाग ने अपनी संवेदनहीनता का परिचय विश्व को दिया .अपने बिछुडे परिजनों के विछोह में दुखी लोगों के घावों पर मरहम लगाने की भी फुर्सत नहीं थी. स्वयम सेवकों ने अपने प्रयासों से उनकी यथासंभव सहायता का प्रयास किया जो सराहनीय है.
क्या इस भावना के पीछे भी वोट राजनीति काम कर रही थी,या गद्दी की चिंता. प्रभारी आज़म खान ने पद तो छोड़ा परन्तु गलती स्वीकार करते हुए नहीं .उधर रेल मंत्री श्री पवन बंसल का व्यवहार और बयान निराशाजनक रहे.
मृत व्यक्तियों और उनके परिजनों के प्रति श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए चंद पंक्तियाँ
नहीं रही जिंदगानी किसी की ,
किसी के अपने जुदा हो गए.
आँखें नम है गम में किसीकी,
कुछ अपनी आँखें चुरा रहे.
दोषी कौन, गलती है किसकी,
उधेड़बुन में समय गँवा रहे.
फुर्सत कहाँ मरहम लगाने की
रोटियां राजनीति की जला रहे.
कफ़न, वाहन जरूरत जिनकी,
उनको इधर से उधर दौड़ा रहे.
आह से भी डरते नहीं उनकी,
नाहक ही जो सजा पा गए.
लड़ने के लिए बातें है ढेर सी,
क्यों लाशों को मुद्दा बना रहे.
.(कृपया इन पंक्तियों को काव्यात्मक सौंदर्य के दृष्टिकोण से नहीं .मात्र श्रद्धांजली के रूप में देखें )
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