यौन शिक्षा से यौन अपराधों पर रोक ?जागरण जंक्शन फोरम
कोई भी शिक्षा या ज्ञान अनुपयोगी या निरर्थक नहीं होता परन्तु काल,परिवेश के अनुरूप होने पर ही सार्थक परिणाम दे सकता है ,साथ ही अपूर्ण तैयारी के साथ प्रदत्त ज्ञान हानिकारक ही होता है .भारत में यौन विज्ञान की शिक्षा अपराधों पर नियंत्रण रख सकेगी इस पर विचार करने से पूर्व अपने देश में यौन विज्ञान का क्या स्वरूप रहा देखना आवश्यक है .
पूर्व काल में भारत में एक संतुलित आचार व्यवहार इस संदर्भ में विद्यमान था, .हमारे देश में चार पुरुषार्थों धर्म,अर्थ काम और मोक्ष में काम को एक महत्वपूर्ण स्थान प्रदान किया गया.दूसरे शब्दों में काम का संबंध लोक और परलोक से जोड़ते हुए धर्म से उसका संबंध स्थापित कर स्वेच्छाचारी बनने पर नियंत्रण भी लगाया. चार आश्रमों की व्यवस्था करते हुए ब्रह्मचर्य आश्रम के लिए गुरुकुल की व्यस्था थी, शस्त्र-शास्त्र शिक्षा के साथ धार्मिक व व्यवहारिक शिक्षा के केन्द्र ये गुरुकुल या आश्रम होते थे. पुष्ट शरीर, बलिष्ठ मन, सुसंस्कृत बुद्धि एवं प्रबुद्ध प्रज्ञा लेकर ही विद्यार्थी गृहस्थ जीवन में प्रवेश करता था.गृहस्थ आश्रम में प्रवेश कर कर वह सामाजिक कर्तव्य निभाता था और संतानोत्पत्ति कर पितृऋण से भी मुक्ति प्राप्त करता था इसी को पितृयज्ञ की संज्ञा भी प्रदान की गई थी.
ब्रह्मचर्य और गृहस्थ आश्रम में रहकर धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की शिक्षा लेते हुए व्यक्ति को 50 वर्ष की उम्र के बाद वानप्रस्थ आश्रम में रहकर धर्म और ध्यान का कार्य करते हुए मोक्ष की अभिलाषा रखना चाहिए अर्थात उसे मुमुक्ष हो जाना चाहिए,अतः संन्यास आश्रम की तैयारी करते हुए वानप्रस्थ आश्रम की व्यवस्था थी और शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार होने पर संन्यास की व्यवस्था. मानवजीवन में संतुलन स्थापित करने की इससे सुन्दर व्यवस्था नहीं हो सकती थी. काम शास्त्र पर विश्व के सर्वश्रेष्ठ ग्रन्थ कामसूत्र की रचना ऋषि वात्सयायन द्वारा की गई तो खजुराहो जैसे विश्व प्रसिद्ध मंदिरों का निर्माण हमारे देश में ही हुआ.
हमारी संस्कृति में मानव की आवश्यकताओं में यौनभाव को सम्मिलित तो अवश्य किया गया परन्तु एक स्वाभाविक क्रिया के रूप में.अपवित्र और अश्लील न मानते हुए इसका संयोजन धर्म के साथ था. संयम ,नियम,को महत्व प्रदान करते हुए. रिश्तों में गरिमा बनाये रखने पर हमारे देश में बल दिया जाता था अतः कि गाँव -मुहल्ले की बेटी को अपनी बेटी माना जाता था और राखी के धागे से बहिन भाई के संबंध को सुदृढता प्रदान की गई गई थी ,यहाँ तक कि भाई को एक संरक्षक माना गया जो आजीवन बहिन के प्रति दायित्व का निर्वाह करता है. .हमारे देश में संस्कारों के नाम पर बच्चों को गरिमा के साथ हर संबंध का निर्वाह करने की शिक्षा दी गई.
समय के चक्र बदला देश पर विदेशी सत्ता का अधिकार हुआ और देश के पराधीनता की बेड़ियों में जकड़ने पर हमारी शिक्षा-दीक्षा,संस्कारों पर तात्कालिक सत्ता का प्रभाव पड़ा .जिस कारण बालविवाह जैसी कुरीतियाँ हमारे देश में पनपीं तथा नयी समस्याओं का जन्म हुआ. शिक्षा व्यवस्था बदली और स्कूली शिक्षा आम हुई जिसका उद्देश्य चरित्र निर्माण नहीं था बस दासत्व की मनोवृत्ति का पोषण और अर्थोपार्जन .अतः संस्कार की पाठशाला गुरुकुल तो विनष्ट कर दिए गए या ऐसा वातावरण बन गया गुरुकुल आमजन से दूर हो गए. संस्कार की पाठशाला बस अधिकतम रूप से परिवार ही रह गए.
आज़ादी प्राप्त करने के बाद समय का चक्र चलता रहा और आधुनिकतम संचार साधनों के विकास तथा ग्लोब्लाइजेशन के प्रभाव में दुनिया से तो हम जुड़े परन्तु वहाँ की उन्मुक्तता,निरंकुशता और खुले का टकराव हमारे संस्कारी परिवेश से हुआ, बुराई में आकर्षण सदा रहा है अतः एक ओर भटकाव की बयार चलती दिखी तो दूसरी ओर पुरानी पीढ़ी इस अर्धनग्नता और पतन को सहन नहीं कर पायी ,,क्योंकि हमारे संस्कारों के पूर्णतया प्रतिकूल थी ये परिस्थिति.परिणामस्वरूप नईपीढ़ी पर नियंत्रण का शिकंजा कसा गया.जिसके कारण अधिक नियंत्रण से छटपटाहट बढ़ी और नई पीढ़ी पतन की ओर अग्रसरित होने लगी .हाँ इस समय कुशलता और संयम से पीढ़ी को संस्कारित किया जाना आवश्यक था ,वह संभव न हो सका . पुरानी पीढ़ी को भय था कि खुलापन नई पीढ़ी को बर्बाद कर देगा, अतः उन्होंने इसका उपचार केवल नियंत्रण को मान लिया..यथोचित जानकारी उस पीढ़ी कहीं से भी प्राप्त नहीं हो सकी. अधिकांश परिवारों में लज्जा का आवरण और पीढ़ी अंतराल बाधक बने एक स्वस्थ वातावरण के निर्माण में. उधर निम्न स्तरीय फिल्मों और विविध चैनल्स पर फूहड़ -अश्लील कार्यक्रमों,सस्ते साहित्य तथा इंटरनेट आदि के दुरूपयोग के कारण अश्लीलता का बोल बाला बढ़ने लगा.
अतीत के आदर्शों पर पाश्चात्य प्रभाव भारी पड़ने लगा और नई पीढ़ी अनिश्चय की ओर बढ़ती गई. दूसरी ओर औद्योगीकरण के कारण तथा नौकरियों की तलाश में शहरों की ओर पलायन से , संयुक्त परिवारों में विघटन होने के कारण एकाकी परिवारों का चलन बढ़ने लगा .मातापिता दोनों के अर्थोपार्जन में व्यस्त हो जाने से उन्होंने बच्चों को सुविधाएँ तो एक से बढ़कर एक प्रदान कीं परन्तु बच्चों को संस्कार और समय देना ये अभिभावक भूल गए.जिसका दुष्परिणाम समाज में बढ़ती विकृतियों के रूप में सामने आया . बच्चों को इनका शिकार होना पड़ा,युवापीढी भी प्रतिगामी दिशा की ओर चल पडी.अनैतिक सम्बन्धों की बाढ़ आ गई ,यौन रोग ,बलात्कार,बच्चों का यौन शोषण ,भ्रांतियां चहुँ ओर व्याप्त हो गईं. बलात्कार,छेड़छाड़ और भ्रूण हत्या जैसे घृणित कर्म आम होने लगे. ऐसे में आवश्यकता तो है कि बच्चों को योग से जोड़ कर अधकचरे ज्ञान से मुक्ति दिलाने की.
योग शिक्षा को अनिवार्य करना इस समस्या का सर्वोत्तम समाधान है ,परन्तु हमारे देश में वोट राजनीति के कारण असंभव सा प्रतीत होता है.दुर्भाग्य से जनहित,देश हित से ऊपर हमारे यहाँ कुर्सी है और सम्पूर्ण विश्व में स्वीकार्य योग विद्या को अपने देश में यथोचित स्थान दिलाने को सत्ताधीश प्रयास करना ही नहीं चाहते .यौन विज्ञान की जानकारी की आवश्यकता है तो अवश्य परन्तु उसके विकार रहित स्वरूप के लिए जिस परिपक्वता की आवश्यकता है ,उसका नितांत अभाव है.ऐसे में यौन शिक्षा को लागू करने से पतन के गहन गर्त में पहुँचने की संभावना अधिक है. हाँ बच्चों को मातापिता द्वारा इस संदर्भ में संस्कार और जानकारी प्रदान करनी अनिवार्य है.छोटे बच्चे जो सर्वथा अनजान है उनको विद्यालयों से बेहतर सकारात्मक जानकारी उनके मातापिता ही दे सकते हैं.बच्चों के साथ इस संबंध में सकारात्मक व्यवहार उनको मातापिता को उनके साथ घटित किसी भी ऐसी घटना के लिए आत्मविश्वास भी प्रदान करेगा.किसी भी पौध को सुन्दर और सुदृढ़ वृक्ष का स्वरूप प्रदान करने के लिए पहले उसकी जड़ों को सींचना और उचित खादपानी प्रदान करना आवश्यक है.महिला संगठन ऐसे विषयों पर उचित,सार्थक वैज्ञानिक जानकारी बेटियों को प्रदान कर उनका भावी जीवन सुखमय बना सकते हैं.
यौन विज्ञान की जानकारी सहायक हो सकती हैं,ऐसे रोगों से सुरक्षित रहने ,उनके उपचार में.प्राय लोकलाज वश रोगग्रस्त होने पर भी चिकित्सकों के पास जाने में, अपने रोग की जानकारी देने में संकोच करने के कारण व्यक्ति को यथोचित उपचार नहीं मिल पाता ,विशेष रूप से आम महिलाओं को.यौन विज्ञान की शिक्षा अपराधों पर नियंत्रण करने में मेरे विचार से सहायक नहीं हो सकती ,क्योंकि प्राय कुत्सित मानसिकता ऐसे अपराधों के लिए उत्तरदायी हैं,न कि जानकारी का अभाव. अपराध पर लगाम कसने के लिए संस्कार ,योग शिक्षा,मातापिता या अभिभावकों द्वारा बच्चों को उपयुक्त जानकारी देना तथा कठोर दंड का भय ही सहायक हो सकते हैं.
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