राजनीति,,वैधानिक , शैक्षणिक ,न्यायिक,प्रशासनिक ,आर्थिक ,सैन्य,उड्डयन ,निर्माण,अनुसंधान ,सेवा ,चिकित्सा …………….सभी क्षेत्रों में नारी की उपलब्धियां आज शिखर को चूम रही हैं.नारी स्वयम को गौरवान्वित अनुभव करती है,ईर्ष्या को भी जन्म दे रही हैं,पद,वेतन,अन्य सुविधाओं में नारी पुरुष को चुनौती दे रही है.राष्ट्राध्यक्ष,राज्याध्यक्ष ,कला, साहित्य कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं दिखता ,जहाँ नारी पुरुष के साथ कदम से कदम मिलाने में पीछे हो. ये तो अन्तराष्ट्रीय स्तर पर नारी की स्थिति है.(जो एक विशद विषय है ),भारतीय नारी की स्थिति पर विचार करते हुए ……………… ऐतिहासक और पौराणिक परिप्रेक्ष्य में तो हमारा देश “यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते………. ” के सिद्धांत में विश्वास करने वाला देश ,विदुषी नारियों को शास्त्रार्थ का अधिकार प्रदान करने वाला देश अपने देश की रक्षार्थ अपने पुत्र का बलिदान करने वाली,नारियों का देश ,पुरुष से पूर्व नारी को सम्मानित स्थान प्रदान करने वाला रहा ही है,,”सीता राम”,राधाकृष्ण,उमापति महादेव,लक्ष्मीपति विष्णु के नाम से पुकारे जाने वाले शिव-विष्णु के इस देश में, यज्ञ में पत्नी की उपस्थिति को सदा अपरिहार्य माना गया है ,पति का कोई भी अनुष्ठान पत्नी के बिना अपूर्ण ही माना गया है. सशस्त्र युद्ध में भाग लेते हुए पति के प्राणों की रक्षा करने के उदाहरण हमारे इतिहास में विद्यमान हैं.स्वयम सेना का नेतृत्व करते हुए दुश्मन को नाको चने चबबाने के उद्धरण से भारतीय इतिहास के पन्ने सजे हैं.
स्वाधीनता संग्राम में महिलाओं ऩे बढचढ का भाग लिया.कुलीन परिवारों की या आम परिवारों की ,सभी की भागीदारी इस यज्ञ में रही. रानी लक्ष्मीबाई,एनी विसेंट,भगिनी निवेदिता,बेगम हज़रत महल ,सरोजिनी नायडू,दुर्गा भाभी आदि महान विभूतियों ऩे तन-मन धन देश के लिए समर्पित किया.,,स्वदेश में ही नहीं विदेश जाकर भी मैडम कामा सदृश वीरांगनाओं ऩे अपना योगदान दिया.(ये नाम तो उन महान महिलाओं के हैं,इनके अतिरिक्त जिन्होंने परिवार का भार अपने कन्धों पर सम्भालकर अपने पति ,पुत्र,भाई सभी को स्वाधीनता के पुनीत यज्ञ में आहुति देने को प्रेरित किया वो तो असंख्य हैं.)
आधुनिक समय में भी राष्ट्राध्यक्ष,प्रधानमंत्री देश को पर्दे के पीछे से चलाने वाली कांग्रेस अध्यक्षा,मुख्यमंत्री, नेता प्रतिपक्ष,प्रमुख न्यायाधीश,सैन्यधिकारी,सर्वोच्च पुलिस अधिकारी(के रूप में वर्तमान या पूर्व में ),हिमालय की चोटी पर विजय प्राप्त कर भारतीय ध्वज फहराने वाली,ऑटो रिक्शा से लेकर वायुयान तक उड़ाने वाली,घर,खेत खलिहानों ,में,,प्रबंधन ,चिकित्सा,तकनीक,अन्तरिक्ष आदि क्षेत्रों में अग्रणी तथा , मेहनत -मजदूरी कर अपने परिवार का पालन पोषण करने वाली बहादुर परिश्रमी महिलाओं से सम्पन्न भारत में नारी के विविध रूपों में दर्शन होते हैं.
भारतीय परिप्रेक्ष्य में यदि वैधानिक दृष्टि से भी विचार करें तो क़ानून की दृष्टि ने भी समानता प्रदान करते हुए नारी को पुरुषों के समान अधिकार प्रदान किये हैं.पिता की संपत्ति में समान अधिकार,एक पत्नी के रह्ते हुए पति को दूसरी पत्नी की अनुमति नहीं,दहेज की मांग करना अपराध है,स्त्री को बेचना,अनैतिक कार्यों के लिए बाध्य करना दंडनीय है,उसको समान शिक्षा,रोजगार का अधिकार दिया गया है,कहीं पति के समान और कहीं उससे भी अधिक वेतन प्राप्त कर वो प्रसन्न तो है.पति या ससुराल के अन्य सदस्यों द्वारा प्रताडित करने पर तलाक ले सकती है,आवेदन पत्र में माता का नाम लिखना आवश्यक नियम है,वृद्धाओं दर दर की ठोकरें खाने से बचाने के लिए राज्य का संरक्षण भी मिलता है.बेटियों की पढ़ाई निशुल्क है स्नातक स्तर पर (कुछ राज्यों में)
ये एक सुखद ,सुन्दर चित्र है,इसके सर्वथा विपरीत वास्तविकता इससे कोसों दूर है. जिसमें कहीं आज नारी बाजारवाद की शिकार है और भ्रमित हो अनचाही दौड़ का हिस्सा बन रही है,कहीं पुरुष की कुत्सित दृष्टि और कुकर्मों से पीड़ित होते हुए दिन- रात ,घर-बाहर,कार्यालय,यात्रा के समय ,सबके सामने ,अकेले में बलात्कारियों से पीड़ित है.यहाँ तक कि अबोध बच्चियां को भी नहीं बख्शा जा रहा है,पिता ,बाबा,भाई सभी रिश्ते तार तार हो रहे हैं .वेश्यावृत्ति नित नवीन रूपों में समाज में विद्यमान है. समाज का संतुलन बिगड रहा है क्योंकि कन्या भ्रूण हत्या पर रोक नहीं लग सकी है,अशिक्षा के दंश से मुक्ति नहीं मिली है. .सुबह से शाम तक घरेलू ,वाह्य मोर्चों को सम्भालते हुए भी अपने छोटे परिवार को एक सूत्र में नहीं बाँध पा रही है नारी.भरपूर स्वतंत्रता का उपभोग करते हुए भी परिवार टूट रहे हैं. तलाक की दर बढ़ रही है, स्वयम वह गंभीर रोगों का शिकार बनकर अपने मानसिक ,शारीरिक स्वास्थ्य को चौपट कर रही है,उसके बच्चे हिंसा,तनाव का शिकार बनकर नशे के अंधे कूप में छलांग लगा रहे हैं .परिवारों में परस्पर अविश्वास बढ़ रहा है.सम्पन्न होते हुए भी कुंठा की शिकार बन रही है नारी.आज समाज और स्वयम नारी भी दिखावे की गिरफ्त में है .वृद्धाएं भी दर दर की ठोकरें खाने को विवश हैं अर्थात किसी भी स्थिति में नारी वो सब हासिल नहीं कर सकी है जिसकी वो अधिकारिणी है .जीवन के हर स्टेज पर विडंबनाएं उसका पीछा नहीं छोड़ रही हैं.आज समाज और नारी दिखावे के जाल में फंसे हैं.
दिखावा दिखावा और दिखावा ,चाहे वो प्रेम का हो ,चाहे वो ममता का ,चाहे स्टेटस का हो या शारीरिक सौंदर्य का ,और इस सबमें खो रहा है वो सब कुछ जो उसने पाकर भी खो दिया है.आज बलात्कार एक फैशन बन रहा है,आधुनिकतम ऐश्वर्य -वैभव के साधनों ने एक होड सी पैदा कर दी है विलासिता की ओर बढते कदम बच्चों को संस्कारित नहीं कर पा रहे हैं i love you बेटा कहकर बच्चों को भी दिखावे की ओर धकेल दिया है और बच्चे ! वो भी बस love you too mom कहकर अपने को नई दुनिया का समझते हैं और मा भी खिल जाती हैं ,मातापिता आज बच्चों को उनका आदर्श कैटरीना,करीना ,अक्षय कुमार,सलमान ,शाहरुख मानना सिखा रहे हैं,भौंडे ,अश्लील गीतों पर अश्लील भावभंगिमाओं के साथ नृत्य करवाना,मिमिक्री सिखाना आधुनिकता की पहिचान बन रहा है.
आधुनिक शहरी नारी की स्थिति पर विचार कर ग्रामीण नारी की विडंबनाएं इससे सर्वथा भिन्न हैं शिक्षा से वो वंछित है,चौके चूल्हे ,खेत खलिहान ,इन्ही में उसकी जिंदगी बीत रही है,परिवार ,समाज या राष्ट्र निर्माण में उसकी शक्तियों का सदुपयोग कैसे हो? इस वर्ग का महत्व समझते हुए इनकी जागृति के लिए सकारात्मक शिक्षा ही कारगर हो सकती है साथ ही उनके कल्याण के लिए जो योजनाएं लागू की जाती हैं वो तभी सार्थक हैं जब उसका लाभ उन तक पहुंचे.देश के लिए समान रूप से क़ानून लागू हो .
सदा की भांति इस सब अव्यवस्था ,उठापटक दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति के लिए दोषी समाज और स्वयम को श्रेष्ठ मानने वाला दम्भी पुरुष तो है परन्तु वो नारी जो परिवार की धुरी है ,जो रसोई,घर,आर्थिक मोर्चा ,रिश्ते नाते सम्बन्धों का निर्वाह करते हुए परिवार को बनाती थी , संस्कारों से सम्पन्न बनाने वाली थी ,उस परिवार को जो आधार होता था एक समृद्ध समाज और राष्ट्र का ,वो भटक गई है ,खोगई है झूठी चमक दमक और तथाकथित आधुनिकता की दौड़ में ,अब उसके लिए परिवार का अर्थ बस अर्थ और काम ही बनता जा रहा है.यही कारण है कि सक्रियता तो उसकी पहले से कई गुना बढ़ी है ,क्योंकि आज अन्य मोर्चों के साथ वो धनोपार्जन के मोर्चे पर भी डटी हुई है,अहर्निश परिश्रम करने के कारण उसको अपने अधिकारों की सुरक्षा और उपभोग की फुर्सत ही नहीं है.अतः न तो वह अपने पारिवारिक अधिकारों का उपभोग कर पा रही है,न सामाजिक और न ही राजनैतिक .यहाँ तक कि ग्राम पंचायतों या अन्य क्षेत्रों में जहाँ उसके स्थान सुरक्षित हैं और वो पहुँच भी गई ,उनका उपभोग भी उनके नाम पर पुरुष ही कर रहे हैं और वो केवल मुहर लगाती है और हस्ताक्षर करती है.
हर क्षेत्र में नारी श्रेष्ठ है ,क्षमताएं भी अद्भुत रूप से प्रकृति ने उसको प्रदान की हैं,सृजन की क्षमता तो केवल नारी में ही है नारी शक्ति पुंज है ,परन्तु दुर्भाग्य से प्रकृति द्वारा प्रदत्त यही उपहार उसको कमजोर बना रहा है जब समाज के भेडिये उसका शोषण करते हैं.नारी अपने अधिकारों का सदुपयोग तभी कर सकती है जब वह कर्तव्य और अधिकार में संतुलन बनाये ,पुरुष से प्रतिद्वन्दिता न करते हुए अपनी क्षमताओं का सदुपयोग करे ,पहले स्वयम अपनी शक्ति पहिचाने , आज वो शिक्षित है उसको दीन दुनिया की खबर तो है पर मृगमरीचिका की भटकन उसको सकारात्मक राह पर चलने में बाधक बन रही है अपनी चिंता करे क्योंकि वही परिवार की धुरी है,जिन गुणों ,क्षमताओं के कारण उसको श्रेष्टतम कृति माना जाता है उनके साथ अपनी प्रतिभा का विकास करे .नारी को ये भी सुनिश्चित करना होगा कि अधिकार केवल याचना से नहीं मिलते,क्योंकि अपने पैरों पर कुल्हाड़ी कौन मारेगा उनके अधिकार उनको देकर ,अपनी लड़ाई खुद लड़नी होगी ,दिखावे की अंधी गलियों से बाहर निकल कर ही उसकी क्षमताओं का लाभ उसको मिल सकता है. मा के रूप में नारी ही परिवार को सही दिशा दे सकती है .साथ ही समाज को भी ये समझना होगा कि नारी ही वह इकाई है ,जिसके जागरण से ही परिवार का उत्थान सम्भव है और तभी भारत सभी क्षेत्रों में एक शक्तिसम्पन्न राष्ट्र बन सकेगा.
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