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मानव जीवन बड़ा विचित्र है,जब वह हर समय भीड़ और शोर से घिरा रहे तो एकाकीपन खोजता है और जब यही अकेलापन उसका स्थायी साथी बन जाता है तो वो परेशान हो जाता है, यहाँ तक कि अवसादग्रस्त हो जाता है. कुछ समय के लिए ये एकाकीपन जहाँ मनुष्य को आत्मावलोकन का अवसर देता है,उसके आत्मविकास और आत्मिक शुद्धि में सहयोगी बनता है , स्थायी बन् जाने पर तो पीड़ादायक बन जाता है. आज जब संयुक्त परिवार छिन्न-भिन्न हो चुके हैं, तो ये समस्या विकराल हो रही है.निरंकुश स्वतंत्रता की तलाश ,वैभव और व्यक्तिवादिता की गिरफ्त में आकर (परिस्थिति वश भी ) अकेले रहने की आतुरता से परिवार का साथ व्यक्ति तो छोड़ देता है ,परन्तु इस जीवन से उसका मोह भंग उस समय होता है जब उसी का अनुसरण अगली पीढ़ी करती है.वह परिवार से दूर आत्मीयता की खोज करता है ,अपनी सामर्थ्य के अनुसार उस अकेलपन से बचने के रास्ते ढूँढता व्यक्ति भटकता रहता है.अकेलेपन का स्वरूप पारिवारिक तो है ही,व्यक्तिगत रूप से भी ये अकेलापन समस्या तो स्त्री पुरुष दोनों के लिए ही है.प्राय ये समस्या स्वयम अपनाई हुई होती है और कई बार परिस्थितिवश .
–बच्चों से यदि प्रारम्भ करें तो आज के समय में उनके भविष्य के दृष्टिकोण से ये समस्या बहुत गम्भीर है विशेष रूप से जहाँ पतिपत्नी दोनों नौकरी करते हैं.यही कारण है कि या तो ऐसे मातापिता परिवार वृद्धि से कन्नी काट लेते हैं या फिर बस एक बच्चा. वो भी या तो आयाओं के संस्कार सीखता है,या फिर क्रेच के बस पैसा दो और बच्चों को बड़ा होने दो.चाहे वहाँ वह नशे का अदि बने या वो सब सीखे जिसको समाज में वर्जित मानते हैं.यदि माँ वर्किंग नहीं भी है तो भी या तो घर में ही बच्चे को कार्टून चैनल लगाकर टी वी के आगे बैठा दिया जाता है या 2 साल में ही प्ले स्कूल के या डे बोर्डिंग में भेज दिया जाता है.शेष समय भी घर में रहने पर भी व्यस्त और थके हारे मातापिता उसके साथियों का रोल तो नहीं निबाह सकते. अतः वह एकाधिकार की मनोवृत्ति से ग्रस्त हो जाता है,साथ ही उसकी सभी उचित अनुचित हठ पूरी होने के कारण जिद्दी और बिगडैल . उसको मोबाइल और नेट दिखाकर मातापिता गर्व से कहते हैं कि उनका बच्चा सब कुछ सीख गया है ..
यही बच्चा किशोर होते अकेलेपन का शिकार हो प्राय नकारात्मक दृष्टिकोण अपनाकर समस्या बन जाता है. किशोरों में यह प्रवृत्ति उनको अपराध की दुनिया,नशे का आदि या फिर कुसंगति का आदि बना देती है ,आरुशी हत्याकांड,निठारी कांड इनके उदाहरण है
यदि नारियों की बात करें तो कभी करियर बनाने के लिए ,कभी अपने अहंकार के चलते सामंजस्य न कर पाने के कारण , जीवन साथी से तालमेल न होने पर उसका समस्या बन जाना ,कभी परिवार के प्रति उत्तरदायित्व का निर्वाह , दहेज या रूपरंग,प्रेम सम्बन्धों में असफलता के कारण,अपनी महत्वाकांक्षाओं के कारण………… पहले विवाह न करने या अकेले रहने की जिद्द उनको एक समय बाद एक अजब से मोड पर लाकर खड़ा कर देती है .कुछ ऐसे केसेज को भी मैं जानती हूँ ,जिनके परिवार के सदस्यों ने अपने व्यक्तिगत स्वार्थों के कारण उन युवतियों का विवाह नहीं होने दिया .कारण चाहे जो भी रहे हों परन्तु समाज में ऐसी नारियों को बहुत विपरीत परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है.और यदि महिला का व्यक्तित्व विशिष्ठ रहा हो तो भी उनके सामने एक प्रश्नचिंह लगा रहता है.
ऐसी ही एक महिला विभा श्रीवास्तव से मेरी भेंट बहुत समय पूर्व एक कार्यक्रम में हुई ,जो अवकाशप्राप्त थी प्राचार्या पद से. जो एक सम्पन्न परिवार से थीं . उनका विवाह ऐसे ही एक महोदय से जो अधिवक्ता थे मातापिता ने किया था.विवाह बेमेल था,क्योंकि सुयोग्य होने पर भी विभा के पैर में थोडा पोलियो का प्रभाव था ,अतः उपयुक्त मेल न मिल पाने के कारण उनका विवाह सामान्य परिवार के युवक से किया जिनकी शैक्षणिक योग्यता भी सामान्य थी और आर्थिक स्तर भी अपेक्षाकृत कमजोर था.विभा ने परिवार वालों की इच्छा का सम्मान करते हुए इस विवाह के लिए स्वीकृति दी .वकील महोदय की प्रेक्टिस ढीली थी ,पत्नी का वेतन अच्छा होने के कारण उन्होंने कार्य में परिश्रम करना बिलकुल ही बंद कर दिया और शराब का शौक पाल लिया. साथ ही वो पत्नी पर दवाब डालते कि वो अपने पिता से पर्याप्त धन लाकर उनको कोई व्यवसाय करा दे .पत्नी रोकती तो वो नशे में गाली गलौज और हिंसा पर उतर आते जब पानी सिर से ऊपर आ गया ,प्राचार्या के घर के किस्से चर्चित होने लगे तो विभा ने अलग होने में ही भलाई समझी. अब तक मातापिता साथ छोड़ दूसरी दुनिया में चले गए थे .
एक तो महिला वो भी छोटे शहर के एक बड़े कालेज की प्राचार्या !,अतः जितने मुहं उतनी बातें! .विचलित हो जाती थीं कई बार परन्तु उन्होंने धैर्य और सहनशीलता का परिचय देते हुए अपने प्रोफेशन में ही ध्यान केंद्रित किये रखा.कुछ समय पश्चात चर्चाएँ बंद हुईं और वही लोग जो उनको बदनाम करने पर उतारू थे,उनकी प्रशंसा करने लगे जब उनके कालेज को अपने परिणाम और उपलब्धियों के कारण पुरस्कार मिला.
अवकाश प्राप्त करने के पश्चात भी समस्या अकेले रहने की तो थी सुरक्षा के दृष्टिकोण से भी और आकस्मिक सहायता के लिए.विभा श्रीवास्तव ने अपने बड़े घर में एक प्रशिक्षित चिकित्सक को नियुक्त कर चेरिटेबल निशुल्क क्लीनिक खोला होम्योपथिक उपचार के लिए.क्लिनिक खूब चलता था ,जिसकी व्यवस्था वह स्वयम देखती थीं .उन्होंने इस प्रकार अपने संसाधनों का सदुपयोग कर स्वयम को अवसादग्रस्त होने और अकेलेपन के दंश से बचा लिया.
ऐसे कुछ केसेज और भी हैं परन्तु सबके पास इतने संसाधन तो नहीं थे परन्तु उन्होंने कोई संस्थान ज्वाइन करके ,अनाथ बच्चों को पढाकर ,बेसहारा महिलाओं को प्रशिक्षण देकर उनको स्वावलम्बी बनाया .अन्यथा तो नर्क बन जाता है जीवन ,क्योंकि डिप्रेशन होने पर नींद की गोलियाँ उनकी खुराक बन जाती हैं जो एक प्रकार से नशा ही है
अकेलापन पुरुषों के लिए भी बड़ी समस्या है ,विशेष रूप से शरीफ पुरुषों के लिए.क्योंकि प्राय परनिर्भरता उनका स्वभाव बचपन से ही बन जाता है और अपने मन की बात कहने के लिए कोई साथी भी नहीं मिलता,और उस पर भी स्वास्थ्य के साथ न देने पर और भी जटिल स्थिति बन जाती है.इस अकेलेपन से उनको भी तनाव,डिप्रेशन आदि समस्याएं हो जाती हैं.
सबसे गंभीर समस्या है बुजुर्ग पीढ़ी का एकाकीपन.इस समय धन भी प्रचुर नहीं होता और तन भी साथ छोड़ देता है, न व्यक्ति अधिक पढलिख ही सकता है क्योंकि आँखें भी साथ नहीं देतीं.और जब तन और धन साथ न दे तो मन से तो वो वैसे ही टूट जाते हैं .(ये भी एक विशद समस्या है जिस पर विस्तृत विचार यहाँ संभव नहीं ,कभी फिर विचार करेंगें)
मैं परिवार को छोड़ कर स्वछन्द जीवन जीने की समर्थक नहीं हूँ क्योंकि परिवार समाज की एक आधार भूत इकाई है ,समाज,राष्ट्र के ढाँचे की मजबूती के लिए संस्कारित परिवार ही आधार होते हैं. अतः मेरा मानना है कि परिवार की इकाई को हमें मज़बूत बनाना होगा और संस्कारों की जड़ें बच्चों को समय देकर मज़बूत करनी होंगी परन्तु विपरीत परिस्थिति में राह खोजना और इतना आगे जाने के पश्चात पूर्ववर्ती स्थिति में एक दम लौटना सहज और संभव नहीं होता . यदि कुछ ऐसे संस्थान हों जहाँ ऐसे जन कुछ रचनात्मक करते हुए अपना समय व्यतीत कर सकें तो अच्छा प्रयास होगा .परन्तु समाज की इस समस्या के लिए सभी को मिल कर विचार करना होगा तभी इस एकाकीपन के रोग का उपचार खोजा जा सकता है.
इस समस्या से आप कहाँ तक सहमत हैं और इसका हल क्या हो सकता है कृपया सुझाएँ .
(लेख का आकार और अधिक बड़ा न हो इसलिए सभी प्रभावित वर्गों पर संक्षेप में चर्चा की है )
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