बंटे रहो,पिछड़े रहो ,यही नियति है(देशवासियों की)
हमारे मनीषी जितने बुद्धिमान,संस्कारी और व्यवहारिक बुद्धि से संपन्न थे ,शायद उनकी मेधा का कुछ अंश भी नहीं ग्रहण नहीं कर सके हम .वेद , उपनिषद,भगवतगीता ,रामायण ,रामचरित्र मानस ,………..सरीखे महान ग्रंथों की रचना समृद्ध विरासत को चिर स्थायी बनाने के लिए उन्होंने की . , इतना ही नहीं ,बच्चों को संस्कारों की शिक्षा देने के उद्देश्य से उन्होंने पंचतंत्र,हितोपदेश जैसे ग्रंथों को रच डाला . पशु पक्षियों को पात्र बनाकर सरल और रोचक शब्दों में व्यवहारिक ज्ञान देने का प्रयास किया. दुर्भाग्य नहीं सुधरे हम और आज तक भी अपनी कमियों से मुक्त नहीं हो सके.
भारतवासियों से अधिक इस सत्य को प्रमाणित कौन कर सकता है कि गलतियों से हमने कभी नहीं सीखा.सभी क्षेत्रों में अग्रगण्य,सामर्थ्यवान ,सोने की चिड़िया कहा जाने वाला समृद्ध भारत आज दुनिया के सामने आथिक,सैन्य तथा अन्य ….सहायता के लिए हाथ पसारता है ,पिछडा हुआ माना जाता है तो उसका एक प्रमुख कारण है हमारी चारित्रिक दुर्बलता ………………दुर्बलता जिसका लाभ सदा वाह्य शत्रुओं ने उठाया और यह दुर्बलता है एकता के सूत्र में न बंध पाना . इस स्थिति में देश को पहुंचाने के लिए दोषी और कोई नहीं स्वयम हम हैं जो एकता के सूत्र में नहीं बंध सके.निहित स्वार्थों के वशीभूत होकर लड़ते झगड़ते रहकर अपने पैरों पर सदा कुल्हाड़ी मारी और अपना यथेष्ठ सम्मान नहीं पा सके.
एक एक लकड़ी को तोडना बाएं हाथ का काम है ,और लकड़ी के गट्ठर को तोडना दुष्कर.एक ही जाति की होने पर भी दो बिल्लियों की लड़ाई में लाभ सदा बंदर ही उठाता है,आदि आदि कहानियां सुनकर बड़े तो हुए पर उसको गहा अर्थात ग्रहण कभी नहीं किया. कबीर तो कह गए
“सार सार को गहि रही थोथा देई उडाए”
पर सार को ग्रहण नहीं किया ,जिसका परिणाम रहा दासता , कभी वाह्य आक्रमणकारियों ने देश को परास्त कर अपने एक अदना से गुलाम क़ुतुबदीन एबक के हाथों में हमारी सत्ता सौंप दी और उसके बाद उन्ही के वंशज राज करते रहे ,मुग़ल,अफगान सब ने इस चारित्रिक दुर्बलता का लाभ उठाया और दासत्व से मुक्त होने का अवसर नहीं दिया.उसके पश्चात अंग्रेजों ने लूटा और आर्थिक,मानसिक,सांस्कृतिक सभी क्षेत्रों में गुलाम बना दिया, अंततः हमारे देश की उस दासता के चंगुल से अपने वीरों और वीरांगनाओं के बलिदान के कारण मुक्ति तो मिली परन्तु विडंबना कोई शिक्षा उससे ग्रहण नहीं की .
धर्म,जाति,सम्प्रदाय,क्षेत्रवाद,भाषा आदि अनेकों विवादों को लेकर टुकड़ों टुकड़ों में बंटे देश को कांग्रेस के अतिरिक्त कोई सशक्त विकल्प नहीं मिला, और लोकतंत्र सुदृढ़ तभी होता है जब विपक्ष मज़बूत हो तथा जैसा की कहा गया है
ABSOLUTE POWER CORRUPTS ABSOLUTELY सम्पूर्ण सत्ता हाथों में आने से कांग्रेस भ्रष्ट होती गई और प्रतिदिन सामने आने वाले घोटाले (जिनकी गणना करना भी कठिन है )इनका प्रमाण हैं.
ऐसे में एक ठोस विकल्प देने के लिए जब कुछ आशा सी दिखने लगी अर्थात गुजरात का विकास और नरेंद्र मोदी के नेतृत्व का प्रचंड प्रभाव. परन्तु वही अहम वाह्य शत्रु तो क्या हानि पहुंचाते स्वयम उनकी पार्टी ही विरोधाभासों का शिकार बन रही है अतः बिहार के नीतिश कुमार के रूप में हवा दी जा रही है,शक्तिप्रदर्शन शत्रु के विरुद्ध नहीं अपितु आपस में जारी है.कभी खुले आम तो कभी गुप्त रूप से छवि विकृत करने वाले मुद्दे उछल रहे हैं. नीतिश और अन्य लोग जो विरोध की जमीन तैयार कर रहे हैं शायद ये भूल रहे हैं कि गुजरात और बिहार में ही विजय प्राप्त करना उद्देश्य नहीं है उद्देश्य है देश को सशक्त नेतृत्व प्रदान करने का, अपने मत भेद दूर करने का.देश को विकास के शिखर पर ले जाने का. ऐसे में आवश्यकता थी स्वयम संगठित रहते हुए अपनी स्थिति सुदृढ़ करने की, अपनी दुर्बलताओं को दूर करते हुए देश देश के कोने कोने में सार्थक सन्देश पहुंचाने की, कि देश के पास विकल्प है .परन्तु ये अहंकार,ये विरोधाभास क्या स्वप्न साकार होने देगा .नहीं ले डूबेगा .परिणाम स्वरूप देश पुनः विकल्पहीनता की स्थिति में होगा और लाभ उठायगी कांग्रेस ,नीतिशकुमार को कुछ चारा डाल कर और शायद यही राजनीति इसके पीछे चल रही है .लोकतंत्र की सफलता की प्रमुख शर्त ठोस विपक्ष नहीं मिल सकेगा .पिछडेपन का पदक गले में लटकाए हम यूँ ही पराश्रित बने रहेंगें .अभी भी समय है एकता के सूत्र में बंध कर एक नई राह पर चलने का
वक्त ये साथ रह आगे बढ़ने का आपस में मिलजुल कर चलने का
लड़ोगे अगर अपनों से पछताओगे
देश को तुम रसातल में ले जाओगे
मिटा दो इस अहम को स्वार्थ को
देश हित में गिले सब अब मिटा दो.
अवसर मुश्किल से हाथ ये आया है
कदम मिला चलने का वक्त आया है
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