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सकारात्मक सोच है कुंजी – स्वस्थ ,नीरोग जीवन की

chandravilla
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विश्व स्वास्थ्य दिवस पर सभी को स्वस्थ और नीरोग जीवन के लिए शुभकामनाएं.रोगग्रस्त होने के कारकों में प्रधान कारक सकारात्मक सोच पर एक  लेख VISHV SWAASTHYआज हर व्यक्ति भागदौड,व्यर्थ की प्रतिस्पर्धा,तनाव को साथ लिए हैरान ,परेशान है.शान्ति बेचारी तो कहीं इस भीड़ में गम हो गई है .इसी कारण कोई भाग्यवान परिवार मिलना दुर्लभ है जहाँ आरोग्य देव का वरद हस्त सब के सिर पर हो .संसार का प्रथम सुख निरोगी काया को माना गया है परन्तु जब पूर्णतया निरोगी काया मिलना दुर्लभ है तो संसार में सुखी कौन हो सकता है.किसी को शारीरिक तो किसी को मानसिक और किसी को दोनों कम या अधिक रोग किसी  न किसी रूप में अपना शिकार बनाए हुए हैं.अधिकांश व्यक्तियों का जीवन औषधियों पर ही आधारित है.कुछ रोगों का कारण आनुवांशिक या कोई  शारारिक समस्या हो सकता है परन्तु अधिकांश रोग हमारे अपने ही पाले हुए हैं.  अपने पाले होने से अभिप्राय है जिस  शत्रु  से है,वह है नकारात्मक सोच.असल में सीधे शब्दों में गलत सोचना,सबको दोषी मान बैठना ,व्यर्थ में उलझना …………..आदि लक्षण नकारात्मक सोच के हैं.ऐसे लोग स्वयम तो दुखी आत्मा होते ही हैं अपने व्यवहार से औरों को भी  तनावग्रस्त बनाते हैं. यदि ऐसे व्यवहार के  कारणों पर विचार करें  तो . पारिवारिक वातावरण ,बचपन से स्नेह का अभाव,ईर्ष्या द्वेष की भावना,अत्यधिक अंतर्मुखी होना ,किसी से अपनी समस्या शेयर न करना ,जीवन में विशेष सफल न हो पाना हीन भावना का शिकार होना आदि कारण और लक्षण नकारात्मक सोच के हैं .

वास्तव में मानव जीवन के लिए अमूल्य सम्पत्ति है सकारात्मक सोच.,ये एक ऐसी सम्पत्ति है,जिसका स्वामी कोई  भी हो सकता है ,भले ही वह फ़कीर हो.सुन्दर,स्वस्थ, शक्तिशाली या धनवान होना अनिवार्य नहीं.इसी संदर्भ में बचपन में पढ़ी एक लघु कथा याद आ रही है…

एक बार एक  राजा  हर समय परेशान रहने लगा , कि मेरे बाद मेरे  राज्य का,  मेरे पुत्रों का क्या होगा .एक से बढ़कर एक चिकित्सकों से परामर्श लिया गया, परन्तु कोई हल नहीं निकला जितना भी चिकित्सक उपचार करते सब व्यर्थ.राजा   और भी अधिक गुमसुम रहने लगा. अंत में परिजन एक पहुंचे हुए  संत फ़कीर के पास पहुंचे और उनसे  राजा के स्वास्थ्य की समस्या का उल्लेख   किया.संत ज्ञानी व अनुभवी थे.उन्होंने  एक विचित्र सा ही परामर्श दिया ,कि यदि राजा को सबसे सुखी व्यक्ति का वस्त्र पहिनाया जाय तो राजा के रोग का उपचार संभव है.राजा था वो तो, अतः खोज की गई,परन्तु व्यर्थ कोई भी ये नहीं स्वीकार कर पाया कि उस  व्यक्ति  के मन में शान्ति है . अंतत एक गरीब किसान जो था तो गरीब, परन्तु अपने खेत पर मजदूरी करते हुए बड़े जोश और उत्साह से गीत गा रहा था,मिला .उससे बात करके ,मिलकर लगा कि वो सुखी इंसान है जो सारे अभावों के बाद भी अपने कार्य में मस्ती से तल्लीन था.उसने बताया वह अपना काम करता है,खुश रहता है,जो ,प्रभु ने दिया उसका धन्यवाद करता है,कभी किसी का बुरा नहीं सोचता .उससे कहा गया पर तुम तो फटे हाल हो,वह बोला उसकी (प्रभु की) इच्छा मुझको कोई अफ़सोस नहीं .राजा को उससे मिलाया गया तो राजा को  बहुत आश्चर्य हुआ ,क्योंकि राजा तो  सब कुछ होते हुए भी  भविष्य की चिंता को लेकर तनावग्रस्त और बीमार था .अंततः संत के सुझाव पर राजा की सोच का निवारण हुआ.

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अभिप्राय मात्र इतना है कि उत्तम  स्वास्थ्य का आधार  सकारात्मक सोच है. सोच और स्वास्थ्य एक-दूसरे के पूरक हैं. मनुष्य की सोच का उसके स्वास्थ्य पर बहुत गहरा असर पड़ता है। इंसान जैसा सोचता है, उसका शरीर वैसी ही प्रतिक्रिया करता है.सकारात्मक सोच से व्यक्ति प्रसन्न रहता है .भोजन और आचार विचार का प्रभाव व्यक्ति के  तन और मन पर होता है, यह एक सर्व विदित तथ्य है ,परन्तु व्यक्ति द्वारा प्रयोग किये  शब्द   भी उसके   तन , मन को  प्रभावित करते हैं.इसी प्रकार  सोच भी व्यक्ति के  तन मन और जीवन को प्रभावित करती है,इस सत्य को व्यवहार में नहीं समझ पाते. सच्चाई यह है की  संपूर्ण मानव  जीवन में  भाषा का बहुत महत्व है. इसीलिये बचपन से सिखाया जाता है कि शुभ शुभ बोलो .कहा  जाता    है कि 24 घंटे में एक बार मनुष्य की वाणी में सरस्वती जी का वास होता है अतः अशुभ बोलेंगें तो अशुभ होगा. ये संस्कार यही धारणा बनाते हैं कि  सकारात्मक सोचो और सकारात्मक करो .बचपन से परिवारों में माननीय बुजर्ग यही शिक्षात्मक कथाएं सुनाते हैं कि जो दूसरों के लिए गड्ढा खोदता है स्वयम उसी में गिरता है,इन सब के पीछे एक ही उद्देश्य है.सकारात्मक सोच का पोषण.क्योंकि ये यथार्थ है कि यदि किसी के लिए बुरा सोचते हैं तो अपना बुरा अवश्य होता है जो विकृत सोच के परिणाम के रूप में मानव के   तन मन को प्रभावित करते हैं. इसके लिए आवश्यकता है आज भी स्वयम सकारात्मक होने की और  बचपन  से ही बच्चों के  संस्कारों के बीजारोपण की .बच्चों के साथ सकारात्मक व्यवहार करते हुए उनको ये समझाने की कि उनको क्या करना चाहिए,न कि क्या नहीं करना है. वैज्ञानिक रूप से विचार करने पर भी व्यक्ति के  शरीर में कुछ हार्मोन्स होते हैं जो उसको  स्वस्थ,प्रसन्नचित और उत्साह से परिपूर्ण रखते हैं.इन हार्मोन्स के नाम हैं

Serotonin:: एक ऐसा तत्व है जो तनाव से मुक्त रखता है और उत्तम पौष्टिक भोजन,व्यायाम तथा सूर्य के प्रकाश से प्राप्त होता है.

Endorphins: व्यक्ति को  आनंद  का अनुभव कराता है.चिंताओं को दूर भगाता है और शरीर में होने वाली पीडाओं का अहसास कम कराने में सहायक  होता है.

Dopamine: मानसिक रूप से तंत्रिका तन्त्र को अलर्ट रखने में रामवाण है.

.Ghrelin: ये भी व्यक्ति के  तनाव को कम कर पूर्णतया विश्राम की स्थिति में पहुंचाने  में सहायक है. उपरोक्त कुछ अन्य  हार्मोन्स ही मानव  जीवन को तनाव रहित आनंद से परिपूर्ण बनाते हैं और सकारात्मक सोच को पुष्ट बनाते हैं.और पौष्टिक भोजन,योगासन ,यथासंभव शुद्ध वायु और सूर्य की रौशनी ही इनके निर्माण में योगदान देते हैं,जो स्वस्थ जीवन का आधार हैं. ध्यान ,योग से ही  इन हार्मोन्स का स्तर संतुलित हो सकता है और व्यक्ति  में मानवोचित गुणों का विकास हो सकता है.जिनकी सहायता से वह सफल आनन्दपूर्ण जीवन  जी सकता है. आज के इस भागमभाग के जीवन में हंसना जो सबसे बड़ा टोनिक है स्वस्थ जीवन के लिए लुप्त हो रहा है

जबकि हँसने से ह्रदय का व्यायाम होता है जिससे ह्रदय रोग की संभावना समाप्त होती है.

हँसने से मोटापा जो आज के युग में एक बड़ी समस्या है का समाधान होता है.

अतः समय मत गंवाएं सोच को सकारात्मक बनाएँ,स्वयम भी खुश रहें औरों के जीवन में भी यथासंभव प्रसन्नता लाएं.

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