इनके लिए कोई सवेरा नहीं
काम वाली बबली कल जब घर में घुसी तो आँखें सूजी हुई थी और हाथ में पट्टी बंधी हुई थी ,मैंने पूछा गिर गई क्या? आंसू नहीं रुक सके उसके ,मैंने कहा जब इतना दर्द था तो काम पर क्यों आयी .”चोट का दर्द सहन करना आसान है, पर मेरा आदमी मारने पीटने के बाद मेरे ऊपर जो गंदे घिनौने तोहमत लगाता है ,उसका क्या करू?” बड़ी कठिनाई से चुप करा सकी उसको .पूरी घटना बताते हुए बताया कि कल सभी काम निबटाकर ,घर का सामान बाज़ार से खरीद कर जब तक घर पहुँची ,तो देर हो चुकी थी.वो शराब पिए हुए नशे में धुत्त था.चुपचाप रसोई में जाकर खाना बनाने में लग गई ,पता नहीं कैसे उसकी नींद खुल गई और उसने रसोई में ही आकर लात घूंसों से मेरी पिटाई करी और साथ ही गंदी गंदी गालियाँ और कान भी फट जाएँ सुनकर, ऐसी बाते बोलता रहा.मैंने पूछा तुम्हारे आस पडौस के लोग कुछ नहीं कहते उसको ,बोली “वहाँ अधिकतर ऐसे ही हैं ,आवारा निखट्टू ,कुछ काम धाम नहीं करते ,औरतें घर चलाने के लिए जो मेहनत मजदूरी करके लाती हैं,वो भी छीन लेते हैं,मारना -पीटना और कोहराम मचाना इनका रोज का काम है.”
मन में समाधान बहुत सारे आ रहे थे ,जो मै उसके सामने रखती जा रही थी,.उससे बोला अपने बच्चों को लेकर कहीं और चली जा ,छोड़ दे उसको .उसका उत्तर सुनकर बहुत ही दुःख हुआ ,बोली कहाँ जाऊं ,सबकी नज़र गन्दी है .उसके साथ रहते कम से कम कोई जबरदस्ती तो नहीं कर रहा .मैंने कहा घर बदल ले ,शायद उसको मेरे मूर्खतापूर्ण सुझावों पर हंसी आ रही थी ,बोली घर कहाँ ढूंढूं ,मिलता कहाँ हैं.यहाँ तो टूटे फूटे घर में अपनी इज्जत छुपाये पडी हूँ बच्चों को लेकर .अपने समाज सुधार के भूत में मै उससे पूछ बैठी ,बच्चों को सरकारी स्कूल में भेजती है ,उसने कहा नाम लिखाया था पर वहाँ मास्टर जी आते ही नहीं ,वहाँ भी बच्चे आपस में लड़ते हैं और गाली गलौज करते हैं.फिर बोली हमारी यही जिंदगी है बस .
अब मेरे पास कुछ कहने को शेष नहीं था ,चुप हो कर दूसरे कमरे में चली गई और सोचने लगी , कि नारी की महानता में कमी कहाँ है,पर ये महानता क्या केवल लिखने और भाषण मात्र के लिए ही है.जो खुद भूखी रह कर भी,हाडतोड परिश्रम करते हुए शारीरिक ,मानसिक प्रताडना सह रही है. परिवार के लिए और बस समाज के भेड़ियों से स्वयम को बचाने के लिए.उसको क्या मिलता है.
नारी सशक्तिकरण की आवश्यकता तो यहाँ है जहाँ नारी का आर्थिक ,शारीरिक और सभी प्रकार का योगदान या तो पुरुष के समान ही है या उससे भी कहीं अधिक, परन्तु उस पर उसका कोई अधिकार नहीं.वह फिर भी सबसे दुर्बल है,असहाय है,और उसको अपनी नियति बदलने की कोई आशा भी नहीं है.सुबह मुहं अँधेरे ही उठना ,घर के कामकाज निबटाकर ,सबके घरों में बर्तन मांजना ,कपडे धोना ,झाडू पौछा या किसी और रूप में मजदूरी करना,शीत -आतप सब सहते हुए ,गृह स्वामियों की तथा अन्य पुरुषों की गंदी नजरों का सामना करना ,घर लौटकर काम काज ,अनचाही संतानोत्पत्ति और हिंसा (हर प्रकार की) और प्रतिदिन वही क्रम .
ऐसी स्थिति केवल अशिक्षित परिवारों में ही है,ऐसा नहीं ,हिंसा की शिकार वो वहाँ भी कम नहीं .इस संदर्भ में लेख पहले लिख चुकी हूँ .
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