मोदी-सुषमा नहीं.भ्रष्टाचार-सुशासन का मुद्दा हो …..जागरण जंक्शन फोरम
वर्तमान संदर्भ में विचार किया जाय तो …….निश्चित रूप से कांग्रेस से अधिक बुद्धिमत्ता किसी दल के पास नहीं ,इसका प्रमाण है स्वतंत्रताप्राप्ति के पश्चात देश की सत्ता में बने रहना.जब भी सत्ता हाथ से फिसलती दिख रही हो तुरंत किसी ऐसे मुद्दे को लालीपॉप बनाकर उछाल देना जिसमें सब में खींचतान मची रहे और उसकी राह निष्कंटक बन जाय. दूसरी ओर मानसिक दिवालियापन दिखाई दे रहा है भाजपा का जो सत्ता आने से पूर्व ही दिवास्वप्न के आधार पर भ्रमित है. .विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र भारत 2014 में चुनाव की तैयारियों में लगा,है,सभी दलों के सुर इस समय बदले हुए हैं.मीडिया को भी लंबे समय तक अपनी बीन बजाने का अवसर मिला हुआ है.दुर्भाग्य हम सभी का सदा की भांति देश की समस्याओं से ध्यान हटाकर, व्यर्थ के मुद्दों को हवा दी जा रही है.प्रदत्त विषय में ……………
“क्या मोदी की बजाय सुषमा प्रधानमंत्री पद के लिए बेहतर उम्मीदवार हैं?” मुझको यही प्रतीत हो रहा है.
“बांटो और राज करो ” की नीति का खुला खेल चल रहा है देश में और सूत्रधार है कांग्रेस. सदियों से बंटे हुए रहने के कारण इस दंश से पीड़ित भारतीय जनता को फिर उसी जाल में फंसाने की तैयारी है.भ्रष्टाचार का मुद्दा जिसके कारण आज सम्पूर्ण देश पिछड गया है विकास की दौड़ में ,भ्रष्टाचारी देशों की सूची में भारत को शिखर पर पहुंचा हुआ घोषित किया जा रहा है नेपथ्य में चला गया है.प्रतिदिन करोड़ों ,अरबों के घोटालों के जो मामले खुलते हैं ,चर्चा उनपर नहीं होती है,चर्चा का विषय है प्रधानमंत्री कौन बनेगा .
बढ़ती जनसंख्या,भुखमरी,आतंकवाद,महिलाओं पर होने वाले अत्याचार ,बेरोजगारी ,विकास की दौड़ में पिछली सीधी पर रह जाना,देश की जनता के गाढे खून पसीने की कमाई विदेशी बैंकों में जंग खा रही है,देश की जनता के लिए पीने को पानी नहीं,सिर छुपाने को छत नहीं,तन ढकने को वस्त्र नहीं,बिजली का प्रकाश नहीं………… इन सब महत्वपूर्ण जीवनोपयोगी आवश्यकताओं की चिंता नहीं ,पुकार है अगला प्रधानमंत्री कौन बनेगा ?
साम्प्रदायिकता का एक शब्द उछाल दिया गया और उसका केन्द्र है बस गोधरा गोधरा गोधरा .गोधरा कांड को मोदी से आज भी टेग कर ये सन्देश दिया जा रहा है कि भारत की न्यायव्यवस्था में इन राजनैतिक दलों का विश्वास नहीं.यही कारण है कि न्यायपालिका द्वारा दोषी ना माने जाने पर भी बार बार वही राग अलाप कर न्यायपालिका के निर्णय पर अंगुलियां उठायी जा रही हैं. निस्संदेह गोधरा कांड एक दुखद त्रासदी है ,उसके बाद जो जनहानि हुई ,जिनके परिवार उजड़े ,बच्चे अनाथ हुए उनसभी के प्रति संवेदनाएं सम्पूर्ण देश की रही और ईश्वर करे ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति कभी न हो ,परन्तु उन काश्मीरी पंडितों की व्यथा को क्यों भुला दिया जाता है ,जो बेघरबार हो कर शरणार्थी बने हुए हैं,पाकिस्तान में अल्पसंख्यक हिंदुओं की दुर्दशा को क्यों नहीं उछाला जाता है ,जहाँ बेटियों को प्रतिदिन अपमानित होकर जबरन निकाह करने को विवश किया जाता है,जो अपना सबकुछ गंवा कर दाने दाने को मोहताज हैं.
यदि इस स्थिति के लिए यथार्थ के धरातल पर आकर विचार करें तो सभी दोषी हैं. सर्वप्रथम तो प्रमुख विपक्षी दल भारतीयजनता पार्टी गुनाहगार है, जो इस समय संगठित होने के स्थान पर अपनी शक्ति का अपव्यय कर रही है,व्यर्थ के मुद्दों में. नीतिश कुमार की तो विवशता है क्योंकि उनको अल्पसंख्यकों को मुट्ठी में रखना जरूरी है,दिल्ली तो उनके लिए दूर की कौड़ी है इस तथ्य से वह भलीभांति परिचित हैं.,अतः बस बिहार तो अपने पास रहे.यही कारण है कि कांग्रेस शासन की बदहाली जिसके कारण सम्पूर्ण देश में त्राहि त्राहि मची है वो मुख नहीं खोलते और गुजरात के विकास में उनको कमियां दिखाई दे रही हैं. शिवसेना की महाराष्ट्र के अतिरिक्त अन्य कहीं सुनवाई नहीं. परन्तु भारतीय जनता पार्टी ! आंतरिक कलह में लिप्त रहते हुए मतदाताओं को बहुत दुर्भाग्यपूर्ण सन्देश दे रही है..जो कभी अडवानी और कभी सुषमा स्वराज का नाम उछाल देते हैं.उनकी पारस्परिक खींचतान का जनता के पास यही संदेश जाता है पहले खुद अपने घर को तो बचा लो , तब देश की सोचना .
सुषमा स्वराज की छवि स्वच्छ है ,अडवानी जी को भी राजनीति का पर्याप्त अनुभव है. परन्तु नरेंद्र मोदी की नेतृत्व क्षमता चमत्कारिक है, जिसका प्रमाण है कांग्रेस की घबराहट ,बौखलाहट और उसने अपनी सम्पूर्ण शक्ति झोंक दी है बस मोदी के विरुद्ध वातावरण तैयार करने में , मोदी फोबिया हावी है कांग्रेस पर. फिर चाहे साम, दाम ,दंड और भेद किसी भी उपाय का सहारा लेना पड़े.लेकिन बुद्धि हीनता तो उनकी कही जायेगी जो कि अपने पास एक सशक्त केंडिडेट होने पर भी झगड रहे हैं और 1+1+1 ……………….. के सिद्धांत पर चलने के स्थान एक दूसरे की जड़ें खोद रहे हैं और एक में ही सिमट कर रह जाने को उतारू हैं.
माना कि जिस पार्टी में लोकतंत्र हो वहीँ इस प्रकार का साहस किया जा सकता है.परन्तु एकता के अभाव में कोई भी स्वप्न दुस्वप्न बन सकता है.आज आवश्यकता है एक सूत्र में बंधकर स्वयम को मजबूत रखते हुए अपनी कमियां दूर करने और देश को उन्नति और विकास की राह पर लेजाने की राह प्रशस्त करने का .
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