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बलात्कारी के परिवार को दंड अवश्य मिले यदि …………..(जागरण जंक्शन फोरम )

chandravilla
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कुछ समय पूर्व एक बहुत ही विचित्र ,मानवजाति पर कलंक के समान पंचायत का एक दुखद निर्णय ( समाचार पत्र में) पढ़ा था  जिसके अनुसार बलात्कारी की बहिन के साथ बलात्कार की सजा सुनायी गई थी . अंततः क्या हुआ उस मामले में ज्ञात नहीं.इसी प्रकार एक बार पढ़ा था कि किसी अपराधी के परिवार को पानी तक लेने नहीं दिया जा रहा है.उनका हुक्का पानी बंद कर दिया गया है ,खेत में आग लगा दी गई,अपराधी की माँ को निर्वस्त्र किया गया  आदि आदि .

दुःख होता है ,और स्वयम पर लज्जा आती है पढ़ कर भी ..,वास्तविकता तो ये है कि “जिसकी लाठी उसकी भैंस” दबंग लोगों की काली करतूतों को अपनी आँखों के सामने होने पर भी आँखें बंद कर ली जाती हैं ,कोई चू नहीं करता ,लेकिन शेष अवसरों पर अपने व्यक्तिगत मतभेद का बदला ऐसे घृणित रूप में लिया जाता है.


परिवार निश्चित रूप से संस्कार निर्माण की पाठशाला है..आज परिवार का स्वरूप भले ही परिवर्तन की बयार में बहा दिखता है परन्तु मूलभूत संस्कार परिवार से ही मिलते हैं.विनम्रता ,आस्था ,प्रेम,स्नेह ,अपनत्व……….. आदि .परन्तु  पूर्वजन्म के संस्कार कहा जाय या स्वभाव का अंतर भाई -बहिनों . यहाँ तक कि जुड़वां बच्चों के स्वभाव में भी अंतर होता है परिवार में संस्कार ग्रहण करने के बाद बच्चे सम्पर्क में आते हैं, सहपाठियों ,विद्यालय,समाज और नवीनतम इंटरनेट की (लुभावनी) दुनिया  और कार्यक्षेत्र .सर्वत्र कुछ नया सीखने  को मिलता है.धीरे धीरे ये  नवीन ज्ञान उन मूल संस्कारों पर हावी होने लगता है.और संस्कारों पर चलना अखरने लगता है. उपरोक्त तुलना से अभिप्राय ये है कि सभी मातापिता अपने बच्चों को आदर्श ही बनाना चाहते हैं .प्राय कुछ लोग केवल सैद्धांतिक रूप में ही ऐसा करते हैं अर्थात अपनी बुरी आदतों को छोड़े बिना बच्चों को अच्छा बनाना . जबकि बहुत से मातापिता हर संभव प्रयास करते हैं बच्चों को सैद्धांतिक और व्यवहारिक रूप से संस्कारित करते हैं.उदाहरणार्थ पिता या अन्य परिवारजन गाली के बिना बात नहीं करते ,बच्चों के समक्ष झूट ,रिश्वत,शोषण (सेवकों का ) सिगरेट ,शराब आदि को नहीं छोड़ सकते तो बच्चे कैसे मुक्त हों (अपवाद सर्वत्र हैं )


यूँ तो व्यक्ति का  परिवार से  किसी न किसी रूप में जुड़ाव  आजीवन रहता है,परन्तु शिक्षा,व्यवसाय, नौकरी आदि के संदर्भ में परिवार से बाहर रहने के कारण  अब व्यक्तित्व निर्माण में अन्य सभी का प्रभाव अधिक रहता है.अतःव्यक्ति व्यवहारिक रूप से उन  सभी के सम्पर्क में रहने के कारण उन वाह्य तत्वों की विशेषताओं से अधिक प्रभावित होता है. प्राय शुद्ध आस्तिक विचारधारा सम्पन्न परिवारों के बच्चे घर से बाहर निकलने पर दुर्गुणों में लिप्त होने के साथ एक दम ही विपरीत विचारधारा को अपना लेते हैं.ऐसे ही कुछ परिवारों से मै परिचित हूँ जो कि बचपन में विशुद्ध संस्कारी थे परन्तु कुछ समय हास्टल आदि में रहने के कारण जब उनसे उनसे भेंट हुई तो कुछ मूलभूत छाप को छोड़कर उनका रंगढंग बदल चुका था.एक परिवार के साथ  गतदिनों कुछ समय साथ रहने का अवसर मिला तो वो परिवार आज भी शुद्ध सात्विक ही है, परन्तु बच्चे जहाँ शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं ,प्रभावित उन सहपाठियों से हैं.मातापिता के समझाने पर वो यही तर्क देते हैं कि जिस वातावरण में हम रहते हैं उसी के अनुसार चलना होगा ,नहीं तो हम पिछड़े हुए कहलाते हैं या गंवार.

उपरोक्त विवरण से मेरा अभिप्राय यही है कि यदि कोई  अपराधी बलात्कार जैसे  किसी  गंभीर अपराध में संलिप्त है तो दोषी उसका परिवार ही क्यों ,दोषी तो समाज उसका परिवेश सब कुछ है.ऐसे में उसके परिवार को दोषी ठहराना ,उनको दण्डित करना न्याय संगत कैसे हो सकता है .कोई अभिभावक अपने बच्चे को अपराधी नहीं देखना चाहते .समृद्ध ,स्वस्थ सद्बुद्धियुक्त संतान की कामना ही सभी प्रभु से करते हैं परिस्थितियां उसको क्या बनाती हैं ,ये एक भिन्न तथ्य है.अतः दंड के भागी तो सभी हैं

हाँ ,परिवार को दंड अवश्य मिलना चाहिए उस स्थिति में जब परिवार (उसके अपराध के बाद चाहे वह बलात्कार हो या कोई अन्य गंभीर अपराध)  उसको संरक्षण दे,उसके समाजविरोधी जुर्म पर पर्दा डाले ,उसके गंभीर अपराध पर भी उसको बचाने की गुहार करे ,या फिर परिवार के कारण ही वह अपराध में संलिप्त हो . गंभीर अपराधों के संदर्भ में परिवार के दोषी होने पर उस परिवार को किसी भी प्रकार की सुविधाएँ प्रदान किये जाने पर भी मै सहमत नहीं.उदाहरणार्थ गत दिनों अफजल गुरु जैसे मानवता के शत्रुओं के लिए  तथाकथित मानवतावादी संगठनों की चीख पुकार मुझको ढोंग दिखाई देता  है.उनका परिवार भी समान रूप से दोषी है क्योंकि वो उसकी समस्त गतिविधियों से परिचित थे ,परन्तु उसका साथ दे रहे थे,अतः वो भी समान रूप से दोषी हैं.

इसी संदर्भ में मुझको एक पुरानी कथा याद आ रही है जिसके अनुसार एक डकैत को जब फांसी की सजा दिए जाते समय उससे उसकी अंतिम इच्छा पूछी गई तो उसने कोई बात कहने की अनुमति माँगी और जब उसको अनुमति दी गई तो उसने यही कहा कि मेरी इस स्थिति के लिए  दोषी है माँ ,जब मैंने चोरी का सामान उसको  सर्वप्रथम लाकर सौंपा था तो उसने  मुझको रोका नहीं था.और उसी कमाई से मेरे पूरे परिवार ने ऐश की

इसी प्रकार आदिकवि बाल्मिकी के संदर्भ में भी यही कहा जाता है कि वो पहले  डाकू ही  थे ,बाद में नारद जी के उपदेश से उनको समझ में आया कि मेरा परिवार ही मौज करता रहा और मै पाप का भागी अकेला बना रहा .

ऐसे ही परिवार में कुछ बच्चों की गतिविधियां ऐय्याशी की पराई लड़कियों पर कुदृष्टि रखने की होती है ,परन्तु परिजन उनके अपराधों को अनदेखा भी करते हैं और पर्दा डालते है ,ऐसे में वो निश्चित रूप से दंण्ड के भागी हैं.

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