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आओ माँ घर चलें (जागरण जंक्शन फोरम)

chandravilla
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paintingअपनी माँ को याद करने की जहाँ तक बात है तो उनको भूलने वाले तो कोई निकृष्ट  संतान ही हो सकती  है..माँ जिसके कारण हमारा अस्तित्व  है,जो कष्टों के पहाड़ सहकर भी संतान पर आंच नहीं आने देती ,जिसका सुख-दुःख ही संतान से जुड़ा होता है . संतान के साथ  समस्या होने पर जिसकी भूख प्यास हवा हो जाती है.वो तो हर पल हमारे साथ हैं उनको कैसे भूला जा सकता है.माँ को शब्दों में अभिव्यक्त कर सकूं इतनी सामर्थ्य न तो मेरे पास है न ही शब्द हैं.  .बस उनके साथ बिताया हर पल, हर स्मृति एक धरोहर के रूप में मेरे साथ है.

आज की ये कहानी ऐसी उन   माताओं  के लिए जिनका जीवन  अभिशाप बन जाता है ,  उनका कोई दोष न होने पर भी दुनिया उनका जीने नहीं देती ,यहाँ तक कि उनके अपने भी मुहं मोड लेते हैं , कदम कदम पर उनको प्रताडना सहनी पड़ती है,अपमान के घूंट  पीने पड़ते हैं. संतान का हित उनको जीवित रहने को विवश करता है,परन्तु यदि वही संतान सवाल उठाये तो  ………………….ऐसी ही एक कहानी

अस्पताल में पड़ी जयंती को होश आ गया था ,परन्तु उसके हाल पूछने वाला ,उसको सांत्वना देने वाला नर्स या एक डाक्टर के अतिरिक्त कोई नहीं था.अस्पताल से छुट्टी तो अभी  उसको नहीं मिली थी ,लेकिन उसके सामने तो अँधेरा ही अँधेरा था.क्यों डाक्टर्स ने उसको बचा लिया ,मर जाने देते तो शायद उसको मुक्ति मिल जाती इस अपमान पूर्ण जीवन से.

जयंती ……….सौंदर्य तो विधाता ने उस पर लुटाया था ,परन्तु भाग्य के नाम पर कुछ भी नहीं दिया था उसको.  अकेली संतान जयंती  का जन्म एक निर्धन परिवार में हुआ.पिता शराबी ,माँ चूल्हा चौका कर जीवनयापन करती थी परिवार का.वो तो भला हो जयंती की त्यागी मैडम का (जिनके यहाँ जयंती की माँ काम करती थी) ने उसकी कक्षा आठ तक की शिक्षा पूर्ण करा दी थी और स्वयम ही उसको गृह कार्य में भी कुशल बना दिया था. जयंती स्वादिष्ट खाना बनाने में दक्ष हो गई थी. उसका यही ज्ञान  उसके लिए वरदान के समान बन गया था.साधनविहीन होने पर भी माँ के मरने पर भी उसने कुछ लोगों के सहयोग से टिफिन बनाने का काम प्रारम्भ कर लिया था.

जयंती की  जिंदगी की गाड़ी सही दिशा में चलने लगी थी.परन्तु मातापिता की असामयिक मृत्यु ने उसको अकेला कर दिया था. एक तो  लड़की.फिर गरीब,सुन्दर,अकेली  और युवा ,बस जमाने भर की मुसीबतें  पहाड़ बनकर टूट पड़ने को तैयार थी उसपर .अतः  ऐसी विकट समस्या से बचने के लिए ही जब एक सज्जन (जिनकी पत्नी का देहांत हो चुका था ,तथा जो निस्संतान थे ) ने उसके समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखा तो अनाथ जयंती ने उनसे विवाह करना  अविलम्ब स्वीकार कर लिया .बहुत अच्छी आर्थिक स्थिति तो उन सज्जन की भी  नहीं थी ,परन्तु गृहस्थी का काम चल जाता था..विधाता को लगता है ,जयंती का सुख रास नहीं आया और एक दिन एक दुर्घटना में अपनी साइकिल सहित एक ट्रक के नीचे आने से उन सज्जन की  मृत्यु हो गई और  जयंती का भाग्य पुनः रूठ गया .

उस काली रात को जयंती कैसे भूल सकती थी ,जब एक रात कुछ गुंडे जिनकी कुचेष्टाएं जयंती को सदा परेशान करती थी ,रात को घर में घुस आये.और जयंती का जीवन बर्बाद कर दिया.अकेली महिला किसके सहारे और कितनी देर उनका सामना करती अंतत उनकी घिनौनी हरकतों का शिकार बनी.जब उसको होश आया तो बदहवास सी जयंती बहुत रोई .रोना कोई समाधान नहीं था.उसके दुःख का  प्रधान कारण  तो आस-पडौस वालों की वो भेदने वाली नज़र थी ,जिसका सामना करने की सामर्थ्य उस पीडिता में नहीं थी.

कुछ समय पश्चात जयंती को पता चला कि वह गर्भवती है ,अब तो उसके लिए जीवन ही दुश्वार बन गया ,जब  सरकारी अस्पताल के डाक्टर्स ने उसको गर्भपात न कराने का परामर्श दिया .उसने बहुत सर पटका ,परन्तु  डाक्टर्स ने उसको बताया कि किसी आंतरिक समस्या के कारण उसके जीवन को ही खतरा है.वही हुआ और सही समय पर जयंती ने पुत्र को जन्म दिया .अनचाही और उसके लिए संकट बनकर आयी इस  संतान का क्या करती जयंती .अंतत उसके मातृत्व ने उसको उस संतान को पालने पर मजबूर कर दिया .

खराब स्वास्थ्य,समाज की तीखी  दृष्टि  और टूटे मन के साथ जीवन काटते हुए भी ,  जयंती ने विचार किया कि जो कुछ उसके साथ हुआ उसमें उस नन्ही जान का क्या कसूर है.यही सोचकर   जयंती ने उसको  पालने का निश्चय किया और उसको  नाम दिया कर्ण . जयंती ने जीवन यापन के लिए टिफिन का काम पुनः प्रारम्भ किया .कर्ण को अपने अकेलेपन का सहारा मानते हुए उसको एक सफल इंसान बनाना ही  उसने अपना ध्येय बनाया.
मेधावी कर्ण  कुछ  अंतर्मुखी स्वभाव का था.बहुत कम बोलता था.कर्ण सफलता के सोपान चढ रहा था.जयंती को कुछ राहत के पल मिलते थे ,जब उसकी सफलता का समाचार सुनती थी .कर्ण को अपने अतीत के विषय में कुछ पता नहीं था.जयंती भी वो  काले अध्याय खोलकर वर्तमान को भी  कसैला नहीं बनाना चाहती थी.
कर्ण अपनी शिक्षा पूर्ण कर चुका था ,नौकरी भी उसको मिल गई थी..एक दिन जयंती के कोई पुराने परिचित (जिनसे वर्षों से कोई सम्पर्क नहीं था ) जयंती और कर्ण को मार्ग में मिले .संक्षिप्त वार्ता के पश्चात जयंती समयाभाव का बहाना लेकर कर्ण को साथ ले आगे चली गई.लगभग एक सप्ताह पश्चात वो सज्जन परिवार सहित उनके घर आ पहुंचे.रविवार का दिन था कर्ण भी उस समय घर पर ही था.जयंती को कुछ अनहोनी की आशंका हो रही थी.आवश्यक औपचारिकता के पश्चात उन महानुभाव की पत्नी ने वही अप्रिय प्रसंग छेड दिया ,जिस को जयंती कर्ण के समक्ष नहीं लाना चाहती थी.जयंती ने उस विषय को आगे बढने से रोक दिया.उनके वापस जाने के पश्चात कर्ण ने माँ से ढेरों सवाल पूछ डाले.
जयंती ने निश्चय कर लिया था कि वो कर्ण को सब कुछ साफ़ साफ़ बता देगी.और उसने सबकुछ स्पष्ट रूप से अपने युवापुत्र कर्ण को बता दिया.अंतर्मुखी स्वभाव के कारण कर्ण सब कुछ सुन कर स्तब्ध सा रह गया परन्तु मौन रहा.जयंती ने उससे पूछा “बेटा क्या तू समाज की तरह ही मुझको अपराधिनी मानता है ” कुछ पल निस्तब्धता रही और फिर कर्ण ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा “हाँ,वह चीख कर बोला हाँ ,हाँ मेरा परिचय ही क्या है मै एक खाना बनाने वाली औरत की अवैध संतान हूँ ” मै जा रहा हूँ और अब कभी वापस नहीं आऊँगा. ये कहता  हुआ वह घर से बाहर निकल गया. जयंती को काटो तो खून नहीं.उसने तो इस प्रतिक्रिया की कल्पना भी नहीं की थी.वह नंगे पांव उसके पीछे भागी ,परन्तु कर्ण तो तीर की तरह घर से बाहर चला गया.
जिंदगी भर अपमान अभाव  और कष्ट सहते हुए जीवन काट रही जयंती को बहुत बड़ा आघात लगा  इतनी पीड़ा  तो उसने कभी अनुभव नहीं की थी वह मूर्छित हो गई.न जाने कब उसको होश आया .उसके मुख में तो पानी भी नहीं गया था.उसका मस्तिष्क बहुत अशांत था ,और उसने अपनी कलाई की नस काट ली .उसके बाद जयंती को कुछ पता नहीं चला कि वह कहाँ थी.जब उसको होश आया तो वह अस्पताल के बेड पर थी.डाक्टर्स ने उसको बचा लिया था.
जयंती को नर्स ने आकर दवा दी ,ब्लडप्रेशर चेक किया ,कुछ खाने को कहा परन्तु उसने मना कर दिया.इतने में उसको कर्ण का स्वर सुनाई दिया.”मुझको माफ नहीं करोगी माँ.मैंने आपका बहुत दिल दुखाया है.मै बिना सोचे समझे न जाने आपको क्या कह गया ,अब मुझको अहसास हुआ कि आज मेरा जीवन आपके ही कारण है.आपने ही मुझको समाज के समक्ष सिर उठा कर खड़ा होने की सामर्थ्य दी.अन्यथा मै कहीं कूड़े के ढेर पर सड़ता जन्म लेते ही,मेरे जैसे अनगिनत बच्चों की तरह.”
असल में कर्ण  घर छोड़कर आने के पश्चात अपने सर्टिफिकेट लेने पुनः घर आया तो माँ का बहता खून और बेहोश  देख कर घबरा गया.एक राहगीर की सहायता से वह माँ को लेकर समीप के एक अस्पताल में पहुंचा.डाक्टर के सामने वह फूट फूट कर रोने लगा .डाक्टर ने कर्ण से सारी जानकारी ली और कर्ण ने सबकुछ डाक्टर को बता दिया.डाक्टर ने कर्ण को समझाया कि तुम्हारी माँ का क्या दोष ,उसने तो बहुत बड़ा त्याग किया अन्यथा तुमको तो किसी कूड़े के ढेर पर फैंक सकती थी, अनाथालय ,मंदिर  के द्वार पर  छोड़ सकती थी. परन्तु उन्होंने तो  जिंदगी भर अपमान का कडुवा घूँट पिया ,समाज के ताने सहे पर तुम पर आंच नहीं आने दी.कर्ण को अपनी गलती का अहसास हो रहा था.
कर्ण में माँ का सामना करने का साहस नहीं था अतः माँ के होश में आने पर  वह सामने नहीं आना चाह रहा था ,परन्तु डाक्टर ने उसको बताया कि माँ का दिल बहुत बड़ा होता है, माँ की ममता उसको संतान से रुष्ट नहीं रहने देती.तुम्हारा पश्चाताप देख कर वो तुमको अपना लेंगी.अब तुम  उनका सहारा बनो .
जयंती के मुख पर  कर्ण को देख कर और उसकी आवाज़ सुनकर एक मुस्कान आई, लेकिन फिर वह काँप गई कि उसके भाग्य में खुशी है ही कहाँ. इतने में कर्ण ने उसको सहारा देकर उठाया और कहा “चलो माँ घर चलें. “

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