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सुखी जीवन का मूल मंत्र………… चिंता की चिता जला दो (एक सच्ची घटना)

chandravilla
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सदाशिव जी के कोचिंग सेंटर की चर्चा एक स्थानीय  पत्र  में पढ़ी  तो कुछ उत्सुकता हुई. नाम परिचित सा लगा तो उत्सुकता भी बढ़ी. पत्र में ही  दिए गए सम्पर्क नम्बर पर फोन कर पता चला कि  ये वही सदाशिव जी  हैं,जो हमारे परिचित थे. पी जी कालेज से अवकाशप्राप्त हुए  उनको लगभग 5  वर्ष हो चुके थे  .  सुना था कि वो अपनी पत्नी के साथ स्थायी रूप से बसने के लिए ,अपने पुत्र के पास अमेरिका चले गए हैं.  अमेरिका से  लौटना  और कोचिंग सेंटर खोलना , कुछ विस्मित सा कर रहा था.असल में सदाशिव जी सदा यही कहते थे कि रिटायर होने पर भी लोग न जाने क्यों कमाने की धुन में ही उलझे रहते हैं ,वो तो ऐसा बिलकुल नहीं करेंगें और अवकाश  प्राप्ति के पश्चात जीवन को नीरस नहीं बनने देंगें .

अतः उनका कोचिंग सेंटर खोलना कुछ गले नहीं उतर रहा था.बहुत सारे प्रश्न मन में उठ रहे  थे.सदाशिव जी एक जिंदादिल मस्त-मौला स्वभाव के व्यक्ति थे .सभी के साथ उनका व्यवहार आत्मीयतापूर्ण रहता था.”चिंता तो चिता होती है.अतः चिंता की ही चिता जला दो.”कहकर  सबका उत्साह बढाते रहना ,हँसते -हंसाते आनन्दित रहना और रखना  और पोजिटिव दृष्टिकोण के साथ  स्वयम जीना और सबको प्रेरित करना आदि विशेषताएं ,उनको सबका प्रिय बनाती थी. एक कर्तव्यनिष्ठ प्राध्यापक के रूप में पी जी कालेज में 40 वर्ष तक अपनी सेवाएं देकर अवकाश प्राप्त करने के बाद वे स्वयम और उनकी पत्नी अपने एकलौते बेटे के पास अमेरिका शिफ्ट हो गए थे (यही समाचार हमको प्राप्त हुआ था)


पत्र में दिए गए सम्पर्क  फोन नम्बर  पर समय लेकर  हम समय से उनके केन्द्र पर  पहुँच गए.. कुछ मेधावी बच्चों के सम्मान का कार्यक्रम था.कार्यक्रम की औपचारिकताएं पूर्ण होने के पश्चात  हम कुछ समय वही रुके ,उनकी पत्नी और सदाशिव जी बहुत आत्मीयता से मिले .सदाशिव जी की पत्नी के  शरीर का एक भाग पेरालेसिस के कारण उनकी अस्वस्थता की कहानी कह रहा था.हम दोनों को बहुत आग्रह पूर्वक उन्होंने रोक लिया.हम भी उनकी कुशलता और एक आकस्मिक परिवर्तन के विषय में जानने को आतुर थे,अतः रुक गए.
अपने निवास के ग्राऊंड फ्लोर को उन्होंने कोचिंग सेंटर का रूप दिया था.अतः हम ऊपर चले गए.उनकी अस्वस्थता देख कर हमको भी बहुत दुःख हो रहा था  ,परन्तु  चिंता की चिता जलाने की बात करने वाले सदाशिव जी उतने ही  निश्चिन्त  दिख रहे थे. सहायता के लिए स्थायी रूप से नियुक्त की गई महिला पार्वती को आवाज़ लगाकर उन्होंने भोजन का प्रबंध करने को कहा.हमारे पुनः पुनः पूछने पर उन्होंने जो बताया ,उसको जानकर दुःख हुआ और साथ में शिक्षा भी मिली.
उन्होंने बताया कि पुत्र के आग्रह पर ही वो घर के अतिरिक्त अपने सभी सामान  को बेच कर या देकर  अमेरिका चले गए थे.,.14वर्षीय  पौत्र  रोबिन और  12 वर्षीय  पौत्री रिया के साथ समय कट जाएगा ,,पत्नी को भी दुनिया की सैर करायेंगें और बहु को भी घर के काम में सहायता मिल जायेगी ,बेटे के साथ जीवन के अनुभव बांटेंगे, बस यही सब  उत्साह था उनके मन में बेटे के पास  जाने से पूर्व.   धन उनके पास अपना शेष जीवन सुगमता से  व्यतीत करने के लिए पर्याप्त था ही.
कुछ दिन सब नार्मल रहा.बेटा बहु नौकरी पर जाते और बच्चे अपनी पढाई .एक दो शनिवार रविवार तो उन्होंने समय साथ साथ बिताया.परन्तु फिर उनको हमारा रहना कुछ अखरने लगा.एक दिन पोता रोबिन जब पार्टी में शराब पीकर घर आया ,तो सदाशिव जी ने पुत्र से चिंता व्यक्त की .पुत्र तो चुप रहा परन्तु पुत्रवधू कामिनी ने कहा “पापा यहाँ की लाईफ ऐसे ही है.बच्चे हैं एन्जॉय तो करेंगें ही.वैसे भी स्टडीज का इतना लोड है फ्रीडम तो चाहिए ही.”
ऐसे ही बहुत सी घटनाएँ घटित हुईं ,सदाशिव जी और पत्नी  ने स्वयम को वहाँ के वातावरण के अनुरूप ढालने का बहुत प्रयास भी किया . अचानक ही पत्नी को पेरालेसिस का अटैक होने पर हॉस्पिटल ले जाना पड़ा ,सदाशिव जी स्वयम ही पत्नी की सेवा में समर्पित रहे.उपचार के पश्चात जब थोडा लाभ हुआ तो डाक्टर्स ने घर ले जाने की अनुमति दे दी.कामिनी ने स्पष्ट शब्दों में मना कर दिया कि उनको ऐसे ही किसी केन्द्र में रखा जाय या इण्डिया वापस……………. वो घर नहीं ले जायेगी इस हालत में .बेटा  भी  मूक दर्शक बना रहा इस घटनाक्रम पर. बीमार पत्नी जो अभी ठीक ही हो रही थी फफक कर रो पडी. और सदाशिव जी उसी समय  भारत लौटने का निश्चय कर लिया.और तीन दिन बाद ही दोनों भारत अपने घर लौट आये.(जो संयोग से बेचा नहीं था)
अब वो संतुष्ट हैं अपने जीवन से और स्वयम को व्यस्त रखने और अपने ज्ञान का सदुपयोग करने के लिए केवल उन बच्चों के लिए निशुल्क  कोचिंग सेंटर खोला है, जो मेधावी हैं परन्तु निम्न आर्थिक  स्थिति के कारण आगे नहीं पढ़ पाते. सदाशिव जी स्वयम भी आत्मतोष का अनुभव करते हैं और पत्नी का स्वास्थ्य भी बेहतर है.स्वयम  खुश रहना और ऐसे बच्चों को योग्य बनाना ही उनका ध्येय है.
बहुत समय हो गया था हमको भी घर लौटना था,उन्होंने स्वयम मुझसे आग्रह किया कि उनकी जिंदगी के इस घटनाक्रम को समाज तक इस रूप में अवश्य पहुंचाया जाय ,जिससे वो सभी लोग शिक्षा ले सकें, जो विदेश  गए बच्चों के साथ अपनी शेष आयु बिताने के लिए अपना सब कुछ छोड़ कर वहाँ  बसने के स्वप्न देखते हैं.साथ ही उन्होंने ये भी बताया कि उनको अपने पुत्र से कोई नाराजगी नहीं अपितु वो तो प्रसन्न हैं कि उनको जीवन को सुन्दर बनाने का मूल मंत्र मिल गया और समाज के लिए कुछ करने का अवसर भी.
positive-thinking (ये घटना सच्ची और आम  घटना है बस पात्रों के नाम बदले गए हैं )

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