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अपराध बोध पिता का (जागरण जंक्शन फोरम )

chandravilla
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निशक्त ,बीमार माँ के असहाय होने का समाचार पाकर मालिनी बेचैन हो गई.जॉब और पारिवारिक व्यस्तता के चलते मालिनी चाह कर भी समय नहीं निकाल पा रही थी उनके पास कुछ दिन  रह कर आने का..उसकी हार्दिक इच्छा थी कि बीमार माँ-पापा और  मानसिक रूप से विकलांग छोटे  भाई को अपने पास ही रखे.पिता की आयु भी 80  से ऊपर थी और माँ तो बिस्तर पर ही थी ,गत डेढ़ वर्ष से.इस आयु में भी पिता को माँ और छोटे भाई की सेवा करनी पड़ती थी. भोजन बनाने वाली ,और घरेलू कार्यों के लिए नौकरानी की व्यवस्था तो अपने पिछले चक्कर में मालिनी करा आई थी,फिर भी माँ और छोटे भाई की देखभाल के ही ढेरों काम थे जिनको उनको ही पूरा करना होता था.मालिनी को कुछ समय आकर अपने पास  रहने के लिए तो वो सदा  बोलते थे ,परन्तु मालिनी के बार बार आग्रह करने पर भी उसके पास जाकर रहने  को हामी नहीं भरते थे.

मालिनी के  5 बहिन भाईयों में उससे छोटा एक भाई था ,जिसकी विकलांगता परिवार में सभी के लिए चिंता का विषय थी.एक अच्छी कम्पनी में अधिकारी रहे मालिनी के पिता राधे श्याम जी का वेतन अच्छा होने पर भी बड़े परिवार के कारण  घर का कार्य सामान्य रूप से ही चल पाता था. बड़ी बहिन और दोनों भाई विवाह के पश्चात अपनी गृहस्थी में रमे हुए थे.

मालिनी को आज तक एक प्रश्न का उत्तर नहीं मिल पाया था कि उसके अपने घर में ही उसकी सदा उपेक्षा क्यों होती थी.मालिनी ने तो कभी कोई विशेष हठ भी नहीं किया न ही मांग रखी.शायद दूसरी लड़की होना, अनचाही संतान या फिर बड़ी बहिन की तरह से सुन्दर न होना ,इन सब में से कौन सा कारण प्रधान था परिवार में उसकी उपेक्षा का  वह नहीं समझ पायी थी.

मालिनी की भेंट जब  संदीप से हुई तो  वह संदीप से बहुत प्रभावित थी.छोटी सी  नौकरी से अपने करियर का प्रारम्भ करने वाले संदीप की सोच ऊंची थी.  कुछ दिनों पश्चात दोनों ने विवाह करने का निश्चय किया.संदीप के माता-पिता  मालिनी की सादगी से बहुत प्रभावित हुए. संदीप और उनका परिवार बहुत सुलझा हुआ था उन्होंने सहर्ष स्वीकृति दे दी. परन्तु  जब मालिनी ने माँ को अपने विवाह के  निर्णय से अवगत कराया तो उन्होंने अपने दोनों पुत्रों से परामर्श किया (यद्यपि दोनों  दूसरे शहरों में थे .पता नहीं विजातीय होने के कारण या फिर अपने  विशेषाधिकार प्रदर्शन के कारण उन्होंने अनिच्छा जताई .मालिनी ने भी शायद जीवन में पहली बार अपने दृढ निश्चय पर अटल रहने का निर्णय लिया था.अंतत ये पता चलने पर कि संदीप और उसके परिवार वाले दहेज रहित विवाह करेंगें , मालिनी के परिवार में सहमती बन गई  और मालिनी संदीप परिणय सूत्र में बंध गए.

मालिनी अपने पतिगृह में प्रसन्न थी .प्यारे से दो बच्चों का जन्म हुआ.संदीप को जॉब में भी प्रमोशन मिल चुके थे अतः आय भी पर्याप्त थी.मालिनी को किसी भी प्रकार की कमी या अभाव नहीं था.संदीप  तो  किसी से कुछ भी लेना चाहते ही नहीं थे. मालिनी के  दोनों भाईयों ने तो संभवतः मालिनी के लिए कुछ भी जेब से निकालने का कष्ट किया ही नहीं,माता-पिता भी बस अपने बेटों और बड़ी बेटी को ही उपहार आदि देकर प्रसन्न थे.मालिनी को कभी कभी दुःख तो होता था,परन्तु संतोषी मालिनी के मन में अपने परिवार के प्रति प्रेम  भी था और  मातापिता व छोटे भाई के प्रति उत्तरदायित्व की भावना.

माँ -पापा से मिलने तो वह जाती  रहती थी परन्तु उनके साथ रहना संभव नहीं हो पाता था.इस बार उसने संदीप और अपने बॉस से बात कर दो दिन का प्रोग्राम बनाया और उनको अपने साथ लाने का निश्चय कर लिया.सरप्राइज़ देने की शौकीन मालिनी घर पहुँची ,वह अचानक उनके सामने पहुंचकर उनको आश्चर्यचकित करना चाह रही थी.घर पहुँचते ही उसको ऊंचे स्वर में बोलने की आवाज़ सुनाई दी .चौंक गई आवाज़ उसकी भाभी की थी ,भाभी कब कैसे अचानक .उसको कोई खबर भी नहीं.मालिनी ने जो सुना उसको बहुत चोट पहुँची.भाभी नंदिनी बोल रही थी.

“हमारे बसका आपको रखना या आपके साथ रहना नहीं .और छोटू ,कौन सम्भालेगा उस पागल को ,या तो मनीष से कहो या अपनी बेटी से  सेवा करेगी .

“पिता ने दबे स्वर में कहा ,बड़ी बेटी को तो आने की भी फुर्सत नहीं ,मनीष बाहर है.””

“और मालिनी उसके पास चले जाओ. “

“किस अधिकार से जाऊं उसके पास ,उसके लिए  किसी ने कभी  कुछ किया है.?”तुम लोगों ने तो मकान भी गिरवी रखवा दिया,मेरा फंड का पैसा भी निबटा दिया ,उसके लिए कुछ नहीं कर पाया मै.”

मालिनी से सहन नहीं हुआ.सदा शांत रहने वाली मालिनी ,दरवाजा खोलकर कमरे में घुसी.पिता  और भाभी अवाक रह गए उसको देख कर. तू कब आयी मालिनी ,अचानक? कैसे आना हुआ.भाभी  भी मालिनी को देख कर चौंकी तो पर कोई शर्म या अफ़सोस उसके चेहरे पर नहीं था.

मालिनी ने पिता से कहा,”पापा मै आप सबको ले जाने आयी हूँ.परसों सुबह चलना है और आप तीनों मेरे साथ चल रहे हैं.”

“भाभी आपसे भी कुछ कहना है मुझको  इन तीनों को मै अपने साथ ही रखूँगी और छोटू भी मेरे जीवित रहते मेरे पास ही रहेगा ,और हाँ मुझको पापा की सम्पत्ति में से कुछ भी  नहीं चाहिए.आप निश्चिन्त रहें “

बेटे और बेटी के मध्य कोई अंतर नहीं होता और बेटी भी अपने कर्तव्य का निर्वाह कर सकती है,यदि उसको अवसर मिले तो.


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