Menu
blogid : 2711 postid : 2519

सरकार +हम उत्तरदायी कुपोषण के लिए (जागरण जंक्शन फोरम)

chandravilla
chandravilla
  • 307 Posts
  • 13083 Comments

विश्व के कुपोषित लोग  और विशेष रूप से कुपोषित  नौनिहालों  की संख्या का 40%  भारत में ही विद्यमान हैं ,ये कोई आश्चर्यजनक तथ्य नहीं ,इससे पूर्व भी यूनेस्को के W.F.P. विश्व खाद्य कार्यक्रम तथा भारतीय स्वास्थ्य मंत्रालय के 2010 के कुछ आंकडें तो और भी भयावह हैं जिनके अनुसार तो स्थिति बहुत ही गंभीर है तथा अफ्रीका और सहारा को चुनौती देते हैं .उनके अनुसार तो विश्व के  कुपोषितों की संख्या का 50%भारत में ही है.

इसी तरह भारत के लगभग 35 करोड़ लोग न्यूनतम ऊर्जा आवश्यकताओं के हिसाब से 80 प्रतिशत से भी कम भोजन का उपभोग कर पाते हैं। भारत में बाल मृत्यु के लगभग 50 प्रतिशत मामलों का कारण कुपोषण है। इस रिपोर्ट में 2010 में भारत भुखमरी से संबंधित वैश्विक सूचकांक में 119 देशों में 94 स्थान पर है। इन आंकड़ों को भारत को बदनाम करने का षड्यंत्र कहकर हम अपना पल्ला नहीं झाड सकते ,क्योंकि सरकार भी इस गम्भीरतम समस्या को स्वीकार करने पर बाध्य है.हमारे नीति नियंता ये स्वीकार कर चुके हैं कि हम दुनिया के हर तीसरे भूखे  कुपोषित बच्चे के अभिभावक हैं.
kuposhit 1
स्वस्थ नागरिक और भावी कर्णधार  बच्चे राष्ट्र का भविष्य है, राष्ट्र के उज्जवल भविष्य के लिए बच्चों के स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए,स्वस्थ बच्चे राष्ट्र की धरोहर हैं,देश के कर्णधार हैं,………………,आदि आदि ये सुन्दर वाक्य हम सदा ही पढते ,सुनते आयें हैं.परन्तु व्यवहार में देखें तो स्थिति बड़ी विचित्र है. आज अमीर का बच्चा भी उतना ही कुपोषित है जितना  गरीब का.कारण अलग अलग है .गरीब का  बच्चा साधनहीनता के कारण भूखा है ,कुपोषित है,
मध्यम वर्ग और धनी वर्ग में अभिभावक  भी उत्तरदायी हैं कुपोषण के लिए अमीरों  और बहुत कुछ मध्यम वर्ग पर हावी है बाजारवाद ,जिसके चलते सड़े मैदे से तैयार (जो पाचनतंत्र के लिए हानिकारक है )पिज्जा ,बर्गर,केक, पेस्ट्री ,नूडल्स ,अंकल चिप्स, कुरकुरे और कोल्ड ड्रिंक्स का आदि बन रहे हैं बच्चे.दुखद तो यह है कि कि अभिभावक ही आदि बनाते हैं बच्चों को इन हानिकारक वस्तुओं का .ये लाड है या आलस्य ?जिसके कारण छोटे छोटे  दुधमुहें बच्चों के मुख से कोला और अन्य सोफ्ट ड्रिंक लगाकर ,हाथ में चिप्स ,कुरकुरे का पैकिट पकड़ा कर अपने बच्चों के प्रति प्रेम प्रदर्शित किया जाता है और एक बार जब उसका स्वाद मुख से लग जाता है और बच्चे दूध ,घर का मक्खन ,घर का खाना पसंद नहीं करते .फिर झींकते हैं अभिभावक कि  बच्चा कुछ खातापीता नहीं ,कमजोर हो गया है.डाक्टर्स के पास जाने पर महंगें टोनिक ,बूस्ट ,होर्लिक्स आदि की सलाह दी जाती है,और बचपन में ही बच्चे मधुमेह,और मोटापे के शिकार होकर कुपोषित बन जाते हैं. शारीरिक खेलकूद के स्थान पर कुछ नहीं ,बस वीडियो,कम्प्यूटर खेल,इंटरनेट .
गरीब के कुपोषण के लिए जिम्मेदार सरकार और भ्रष्टाचार
ग्र्रीबी से बड़ा अभिशाप कोई नहीं ,महंगाई,कम कमाई  और बड़े परिवार और अशिक्षा  के कारण पेट भरने के लिए मोहताज गरीब के पास फुर्सत ही कहाँ सोचने की.जो थोड़ी बहुत कमाई है,वह उड़ जाती है घटिया देसी शराब में .इलाज महँगा ,एक बार रोग लगने पर पीछा नहीं छूटता .
गरीबों के कुपोषण और भुखमरी के लिए सरकार कैसे उत्तरदायी है  इसका अनुमान लगाया जा सकता है सर्वोच्च न्यायालय के इस आदेश  से “We cannot have two Indias. You want the world to believe we are the strongest emerging economy, but millions of poor and hungry people are a stark contrast,”
लोक कल्याणकारी नीति पर चलने वाली सरकार की नीतियां कागजों पर बनती हैं परन्तु सम्बन्धित लोगों की समस्याओं के निवारण के लिए नहीं अपना घर भरने के लिए.जिसका उदाहरण है बच्चों को पुष्ट आहार और मिड डे मील जैसी योजनाएं ,जिनके भ्रष्टाचार दैनिक अखबारों की सुर्खियाँ होते हैं,जिनमें कीड़े,कंकड आदि निकलते हैं या फिर  वो आहार कागजों पर ही निबट जाता है .
महिलाओं का कुपोषण भी कहीं स्वयम उनकी लापरवाही का परिणाम है तो कहीं अज्ञानता का ,कहीं अत्याधुनिक होने का (जीरो फिगर),स्लिम ट्रिम रहने के प्रयास में पौष्टिक भोजन न करना  निर्धनता ,जल्दी जल्दी माँ बनना,गर्भपात आदि. ,महिला का कुपोषित होना आने वाली संतान को भी कुपोषित बनाता है .और नींव ही कमजोर तो भवन कैसे सुदृढ़ हो सकता है .
अन्न की देश में कोई कमी नहीं हमारी भूमि उपजाऊ है , ,हाँ हमारे देश की कृषि मानसून की स्थिति व अन्य कारणों से अनिश्चित रहती है,अन्न की उपज भरपूर न होने पर हमें अतिरिक्त धन व्यय कर विदेशों से अन्न मांगने को बाध्य होना पड़ता है हमें.परन्तु प्रकृति की कृपा दृष्टि व आधुनिकतम साधनों व उपकरणों से रिकार्ड उत्पादन होने के बाद यदि हम उसको बर्बाद करते हों और हमारे देश में भुखमरी के कारण निरीह देशवासियों को मौत का आलिंगन करना पड़ता हो इससे बड़ी विडंबना और क्या हो सकती है.

” अन्न देवता है ” अन्न का अपमान नहीं करना चाहिए,ऐसा हमारी संस्कृति का सन्देश है.बचपन में भोजन ग्रहण करते समय यदि कोई भी खाद्य पदार्थ खाने में नापसंदगी जाहिर की जाती थी ,तो यही कहा जाता था कि भोजन में जो मिले चुपचाप खा लेना चाहिए,झूठा नहीं छोड़ना चाहिए,दूसरे शब्दों में अन्न का एक दाना भी व्यर्थ नहीं करना चाहिए.और व्यवहारिक रूप से यदि देखा जाय तो भी जिस अन्न को खाकर हमारे शरीर में प्राणों का संचार होता है,अर्थात जो हमारे जीवन का आधार है,उसका सम्मान करना हमारा धर्म है.यही कारण है कि हमारे यहाँ भोजन सामने आने पर हाथ जोड़ कर उसका सम्मान किया जाता है,और कृतज्ञता व्यक्त की जाती है. दुखद आश्चर्य  !यह समाचार जान कर कि विश्व के सबसे बड़े प्रजातान्त्रिक देश में अन्न की भण्डारण व्यवस्था न होने के कारण अन्न खुले आकाश के नीचे पड़ा पड़ा रहकर वर्षा में भीग कर सड़ जाता है, अन्न का 10%से भी बड़ा भाग चूहे,अन्य खरपतवार आदि नष्ट कर देते हैं और शेष बहुत बड़ा भाग हम अपनी लापरवाही से बर्बाद कर देते हैं,,और अपनी आवश्यकता पूर्ण न होने पर फिर हम विदेशों से आयात करते हैं,और अपनी अर्थव्यवस्था को हानि पहुंचाते हैं हमारा देश जहाँ हम एक और तो शीघ्र ही विकसित होने का दावा करते हैं,और दूसरी और भूखे पेट की आग लाखों लोगों को तड़फ तड़फ कर मरने को विवश करती है.. wasteoffood2_630_271x181 .कारण कृषक के  परिश्रम का फल अर्थात उपज संग्रहित करने के जो पारम्परिक साधन उसके पास हैं वो सामान्य परिस्थितियों के लिए भले ही ठीक हों, परन्तु प्राय उपरोक्त कारणों से वो लाभान्वित नहीं हो पाता. सरकारी योजनायें जो कृषकों के लाभ के लिए बनी भी हैं,कृषक के अशिक्षित होने या उन योजनाओं का पर्याप्त ज्ञान न होने के कारण आम कृषक को उनका लाभ नहीं मिल पाता और रहा सहा काम भ्रष्टाचार निगल जाता है,बीजों का वितरण,ऋण की सुविधाएँ आदि पर एजेंट्स का कब्जा है,बहुत ही कम लाभ वास्तविक लोगों तक पहुँच पाता है,और फटेहाली किसान का पीछा नहीं छोडती.. हमारी दोषपूर्ण नीतियों के परिणामस्वरूप एक ओर तो भुखमरी में विश्व में हमारे देश का स्थान नीचे की ओर से देखा जा सकता है जो उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार विश्व में 20-22  देश ही हमारे से निम्न स्तर पर हैं.कृषि क्षेत्र में पर्याप्त धन व्यय करने के पश्चात हमारी फसल उत्पादन तो बढ़ा है,और गत कुछ वर्षों में उत्पादन आशातीत रहा है परन्तु अभी गत वर्ष की ही बात है जब मीडिया के माध्यम से टनों अन्न वर्षा में भीग कर सड़ता हुआ दिखाया गया,उस अन्न की स्थिति इतनी खराब हो चुकी थी कि उसका कुछ भाग तो पशुओं के उपभोग के योग्य भी नहीं था. ये आरोप किसी विपक्षी दल का नहीं स्वयं सरकार के प्रमुख सिपहसालार शरद पंवार की स्वीकारोक्ति थी ,जिन्होंने संसद में स्वीकार किया कि 11700 टन अन्न जिसकी कीमत 6.86 करोड़ से अधिक थी वर्षा में भीग कर बर्बाद हो गया.इस पर भी सरकार तो सारे मामले को रफा-दफा ही करना चाहती थी परन्तु सर्वोच्च न्यायालय ऩे ही सरकार को आड़े हाथों लेते हुए फटकार लगाई कि यदि गेहूं को रखने के साधन आपके पास नहीं तो गरीबों में बाँट दो.जितना अन्न हमारे यहाँ व्यर्थ हो जाता है उतनी कनाडा जैसे देश की सम्पूर्ण उपज है.

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्देश दिए जाने पर भी कि भण्डारण की समुचित व्यवस्था के लिए स्थाई वेयर हाऊस बनाये जाएँ और अस्थायी व्यवस्था करते हुए ऐसे केंद्र बनाये जाय जो वर्षा आदि से बचाव कर सकें. परन्तु ऐसा नहीं हुआ और हमारा बहुमूल्य अन्न ऐसे ही बर्बाद होता रहा और वर्तमान में सुधार होने की कोई आशा नज़र नहीं आती. केंद्रीय सरकार गरीबों का पेट भरने के लिए खाद्य सुरक्षा कानून बनाने की आवश्यकता तो समझ रही है, लेकिन सड़ते हुए अन्न को बचाने के लिए अब तक कोई ठोस उपाय नहीं सोचा गया है.अब यदि अन्न भंडारण की उचित व्यवस्था नहीं की जा सकी तो खाद्य सुरक्षा कानून के तहत गरीबों को यही सड़ा-गला अन्न मिलेगा.

दुर्भाग्य है कि जिन हाथों में इस अनाज की वितरण व्यवस्था है उनको या उनके परिजनों को कभी भूखे नहीं सोना पडता उनके यहाँ ,या उनके द्वारा आयोजित पार्टीज में भोजन की विविधताओं पर धन पानी की तरह बहाया जाता है.उनके किसी अपने को भूख से बिलखना नहीं पड़ता. जिन्होने सपने में भी भूख नहीं देखी उन लोगों को दो जून की रोटी को तड़पते लोगों की व्यथा कभी समझ नहीं आएगी। न जाने क्यों सरकार के नीति नियंता ये नहीं समझ पाते कि कि भारत में कुपोषण के कारण विकास की दर में 2-3 प्रतिशत की कमी आ जाती है। शायद सरकार को इस मद में पर्याप्त धन व्यय करने की आवश्यकता इसलिए भी अनुभव नहीं होती कि बच्चों से उनको वोट तो लेना नहीं है,इसलिए उनके प्रति उदार होने की आवश्यकता नहीं है.सरकार ये भूल जाती है कि कमजोर नींव पर खड़ा भारत सशक्त कभी नहीं बन सकता,.

    इन परिस्थितियों से जूझने के लिए जिस कर्मठता ,कर्तव्यपरायणता ,देश के प्रति निष्ठां और सहृदयता की आवश्यकता है,वो आज कहीं भी दृष्टव्य नहीं है . कर्तव्यपरायणता अपने भूतपूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री जी सदृश जिन्होंने देश को विकट परिस्थितियों में “जय जवान जय किसान ” का नारा देते हुए एक समय स्वयं अन्न छोड़ने का संकल्प लेकर देशवासियों को प्रेरित किया था.,.सरकार को अपनी बनाई नीतियों पर पुनर्विचार करने के साथ उनके क्रियान्वयन को भी सुचारू और भ्रष्टाचार रहित बनाना होगा, देश में जनसंख्या के नियंत्रण के लिए निष्पक्ष नीति बनानी होगी और उसको लागू करना होगा वोट बैंक के दृष्टिकोण से नहीं देश के हित के दृष्टिकोण से.नहीं तो ये आंकडें हमारे विकसित राष्ट्र की ओर बढते तथाकथित क़दमों को यूँ ही अंगूठा दिखाते रहेगें.

(समस्त आंकडें व चित्र नेट से साभार)

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh