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क्यों बनाते हैं ऐसे लोगों को नेता?

chandravilla
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कुछ लोगों को संभवतः सदा सुर्ख़ियों में रहना अच्छा लगता है.सुर्ख़ियों में रहने के लिए यदि उनकी उच्च कथनी -करनी, विचारधारा को    प्रमुख आधार माना गया  हों तो वो व्यक्ति  मेरे विचार से महात्मा की श्रेणी में आते हैं.दुर्भाग्य से ऐसी महान आत्माओं का तो अकाल दिखने लगा है  वर्तमान समय में  हमारे देश में . इसके सर्वथा विपरीत इस समय देश में बाढ़ आ रही है ऐसे अधम,पापी,भ्रष्ट,निकृष्ट लोगों की जिनके शब्दकोश में संस्कार शब्द है ही नहीं.जिनका प्रमाण हैं ………

कभी लालू प्रसाद यादव फिल्म तारिका हेमा मालिनी के लिए कहते हैं कि पटना को सङको को हेमामालिनी के गालों की तरह चमका डालेगे हम”.

कभी प्रकाश जायसवाल (पूर्व कोयला मंत्री) को तो पत्नी पर भी जन सभा में अपमानजनक टिप्पणी करने  से परहेज नहीं और वो कहते हैं पुरानी जीत पुरानी पत्नी की तरह अपना आकर्षण खो देती है.

कांग्रेस सांसद संजय निरुपम  ने टी वी पर  एक कार्यक्रम के मध्य बी जे पी सांसद स्मृति ईरानी को कहा था, कल तक तो टी वी पर ठुमके लगाती थी आज चुनाव विश्लेषक बन गयी हैं.(एक नहीं थोक में उदाहरण हैं जो तुच्छ ,पतित और घृणित मानसिकता का परिचय देते हैं.)

अभी पुनः स्वयम को जौहरी बताते हुए कांग्रेसी नेता दिग्विजय सिंह ने मध्य प्रदेश की एक रैली में  मंदसौर की महिला सांसद मीनाक्षी नटराजन को “100 टका टंच माल” कहा.

. ये मीनाक्षी कांग्रेस पार्टी में सचिव हैं और राहुल गाँधी के विश्वस्त लोगों में मानी जाती हैं.

आपत्तिजनक तथ्य तो ये है ही कि देश को संभालने का दावा करने स्वयम को राजनीती के क्षेत्र में चार दशक से भी अधिक का अनुभवी बताने वाले दिग्विजय सिंह ने ऐसे घटिया बयान के बाद अपनी कोई गलती नहीं मानी और स्वयम को सही बताया.

दूसरी आपत्ति पिछलग्गू नेताओं और समर्थकों के नाम पर जिन्होंने विरोध करने के स्थान पर  इस बयान का तालियों से स्वागत किया.

सर्वाधिक दुखद आश्चर्य है सांसद  मीनाक्षी के सहर्ष एक प्रशंसा के रूप में उस टिप्पणी  को स्वीकारने पर. जैसा कि कहा गया कि नेता जी की मंशा तो  मात्र  उनकी प्रशंसा करने की थी यदि मान भी लिया जाय तो एक प्रश्न  मेरा. क्या  दिग्विजय सिंह अपनी माँ,बहिन,पत्नी ,बेटी या किसी अन्य सम्मानित महिला की प्रशसा  इन्ही शब्दों में करते हैं?

यदि उत्तर नकारात्मक है तो उनकी मंशा को नेक कैसे माना जाय और यदि सकारात्मक है अर्थात वो अपने परिवार की महिलाओं के लिए ऐसे ही शब्द प्रयोग करते हैं तो उनसे निकृष्ट ,अधम कोई और नहीं हो सकता.अर्थात खरबूजा चाक़ू पर या चाकू खरबूजे पर उनको निर्दोष नहीं माना जा सकता .

सम्बन्धित सांसद मीनाक्षी  शायद ऐसी ही टिप्पणियाँ सुनते सुनते आदि हो चुकी हैं और ऐसे वातावरण की अभ्यस्त हैं या कहिये कि इस शिखर तक पहुँचने के लिए उनको भद्र – अभद्र सब एक ही समान लगता है .उनके लिए तो वरदान स्वरूप है उनकी पार्टी के एक बड़े नेता का ये तथाकथित सम्मान.जो संभवतः उनके  और भी ऊंचे शिखर को स्पर्श करने का स्वप्न साकार कराता प्रतीत हुआ हो.

इस संदर्भ में मुझको वीर शिवाजी पर लिखे अपने एक ब्लॉग में उद्धृत प्रेरक प्रसंग याद आ रहा है

ये प्रसंग मैंने तब पढ़ा जब  मैं स्वयं 5  वी कक्षा में थी परन्तु आज तक वो प्रसंग मेरे स्मृति पटल पर अंकित है .
छत्रपति शिवा जी महाराज के जीवन से सबंधित ये प्रसंग इतिहास में एक आदर्श घटना है. जब शिवाजी ने कल्याण दुर्ग पर विजय प्राप्त की और उनके सेनापति आवाजी सोनदेव ने कल्याण के परास्त मुस्लिम सूबेदार की अति सुन्दरी पुत्रवधू गौहर बानू को बंदी बनाकर उनकी सेवा में प्रस्तुत किया क्योंकि तत्कालीन परंपरा के अनुसार विजेता का अधिकार पराजित राजा या सामंत परिवार की महिलाओं पर होता था. .गौहर बानू अप्रतिम सुन्दरी थी शिवा जी ने अपनी व अपने सूबेदार सोनदेव की ओर से उनसे क्षमा माँगी और कहा की, काश मेरी माँ भी आपकी तरह सुन्दर होती तो मैं भी इतना ही सुन्दर होता.उन्होंने उनको मुक्त कराकर ससम्मान उनके परिवार के पास भेज दिया.

ऐसे एक नहीं अनेक उदाहरणों से हमारे देश का इतिहास सज्जित है

लेकिन दुर्भाग्य से आज जो  जन प्रतिनिधि , मंत्री और नेता,  तथाकथित कुलीन वर्ग  के रूप में अग्रपंक्ति में खड़े है ,जिनकी हाथों में सत्ता की बागडोर है वो स्वार्थ  और सत्ता लोलुपता के चलते  किसी भी सीमा तक जा सकते हैं,उनके पास चरित्र ,संस्कार का कोटा शून्य से भी नीचे पहुँच चुका है. .

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