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नारी तुम केवल श्रद्धा ही हो (करवा चौथ पर विशेष )

chandravilla
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अचल रहे अहिवात तुम्हारा
जब लगि गंग यमुन जलधारा।

श्री रामचरित्र मानस की  इन सुन्दर पंक्तियों के साथ सभीबहिनों को करवाचौथ के पावन पर्व पर सुखद दाम्पत्य जीवन के लिए मंगलकामनाएं.इन पंक्तियों में माता कौशल्या सीता जी को आशीर्वाद देती हैं,जब तक गंगा यमुना में पानी है तुम्हारा सुहाग बना रहे .विवाह के लिए प्रतीक्षारत सभी के मनोरथ पूर्ण शीघ्र पूर्ण की कामना .करते हुए करवाचौथ की संक्षिप्त जानकारी के साथ कुछ विचार …………….

देश के सभी भागों में विविध लोगों के बसने के कारण तथा मीडिया के प्रचार के कारण यह पर्व भी देश भर में देश के सभी भागों में लोकप्रिय है.

कार्तिक माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को  अपने सुहाग के लिए मंगलकामना करते हुए यह पर्व मनाया जाता है. करवा एक मिटटी का पात्र होता है,जिसमें जल भरकर रखा जाता है.और रात्रि में उसी करवे वाले जल से चन्दमा को अर्घ्य दिया जाता है. .अपनी शारीरिक सामर्थ्य व परम्परा के अनुसार महिलाएं इस व्रत को निर्जल ही करती हैं ,पक्वान्न तैयार किये जाते हैं .विशेष रूप से साज-श्रृंगार कर दिन में इसकी कथा या महातम्य सुना जाता है,अपनी श्रद्धेया सास  या नन्द को पक्वान्न ,वस्त्र आदि की भेंट दी जाती है और उनका आशीर्वाद लिया जाता है.रात्रि में चन्द्रदेवता के उदय होने पर दर्शन कर और पतिदेव की पूजा कर ही व्रत का पारायण किया जाता है. त्यौहार मनाने का तरीका स्थानीय परम्पराओं के अनुसार थोडा भिन्न भले ही हो सकता है, जैसे कि पंजाबी संस्कृति में , मायका या ससुराल पक्ष की ओर से सरगी के रूप में पुत्रवधू के लिए वस्त्र-आभूषण,श्रृंगार सामग्री,चूड़ियाँ , पक्वान्न ,मेवे. फल आदि भेजे जाते हैं.सूर्योदय से पूर्व कुछ महिलाएं शगुन के रूप में कुछ खाकर मुहं भी मीठा करती हैं. दिन में एक स्थान पर एकत्रित हो कर कथा सुनती हैं और परस्पर थाली बदलती हैं,तथा रात्रि में चन्द्र दर्शन के समय चन्द्रदर्शन छलनी की आड में किया जाता है. थोडा बहुत स्थानीय प्रभाव परिलक्षित होता है,परन्तु मूलतः भावना वही है.मेहँदी, सोलह श्रृंगार कर सजना नवयुवतियों को बहुत भाता है .

आज थोड़ी सी चर्चा एक भिन्न परिप्रेक्ष्य में ……………….

एक उदाहरण के साथ कुछ अपने विचार रखना चाहूंगी.एक दिन मैं और मेरी भतीजी कहीं जा रहे थे ,मार्ग में एक वृद्ध महिला मिलीं.जिनको सादर प्रणाम करने पर उन्होंने बड़े स्नेह पूर्वक  मुझको आशीर्वाद दिया “तेरा सुहाग बना रहे ,भाई जीता रहे ,बेटा जीता रहे.” भतीजी को भी आशीर्वाद देते हुए कहा “तेरे पापा जीते रहें ,तेरा भाई जीता रहे.” भतीजी अधिक बड़ी नहीं थी उसने भोलेपन से पूछा “और मैं ?” “चल तू भी जीती रह” .बात वहीँ समाप्त हो गयी पर मेरे मन में एक उथल पुथल सी मच गयी संयोग से करवाचौथ का पर्व भी निकट है अतः चर्चा कर रही हूँ .

“यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः”  नारी पूजनीया,वन्दनीया,प्रात स्मरणीया है, आदि शक्ति है, सृष्टि निर्मात्री है ,नदी ,गौ,जननी ,धरती माँ ,प्रकृति आदि सभी रूपों में नारी की महानता का बखान करते ग्रन्थ उपलब्ध हैं.आदि  शक्ति के रूप में तो नारी सदा पूजी गयी है,इसी प्रकार शेष सभी  अलौकिक रूपों में  वो पूजी जाती है.


लौकिक  रूप में भी  .बेटी,बहिन,पत्नी,माँ समस्त रूपों में परिवार को जोड़े रखने में नारी का ही  प्रधान योगदान रहता है. गृहणी से ही घर है.  भाई  और पिता के लिए  उनके  दीर्घायु ,स्वस्थ रहने की कामना करने वाली बेटी और बहिन,कुल की लाज बचाने की जिम्मेदारी लिए पतिगृह  जाती है वही बेटी.यहाँ उसके सशक्त  हों या निर्बल  कंधों पर भार होता है पति के घर का.जहाँ उसको न  केवल परिवार का उत्तरदायित्व संभालना होता है,अपितु वर्तमान में तो आर्थिक जिम्मेदारी भी उठाती है.समस्त परिजनों को प्रसन्न रखना उनके प्रति आदर सम्मान,स्नेह ,ममता ,दया और अपनापन रखना और माँ बनकर  अपनी संतान का लालन –पालन. ,बच्चों की पढाई –लिखाई संस्कार प्रदान करना आदि आदि और उस सब के पश्चात भी उसका चेहरा खिला रहे. ( एक आदर्श नारी से ऐसी अपेक्षाएं सबको  रहती हैं) ,

अपने पति ,संतान की मंगलकामना  और कुशलता की चाह के साथ वह   विविध  व्रत –उपवास करती है.करवा चौथ, गौरा  तीज आदि ऐसे ही व्रत हैं जो पति की दीर्घायु के लिए अपनी क्षमतानुसार या परम्पराओं के अनुसार करती है.इसी प्रकार संतान के मंगल की चाह में भी  वो अहोई अष्टमी,जीवित पुत्रिका व्रत,संकट चतुर्थी आदि  व्रत -उपवास, मन्नत आदि के साथ  भूखी प्यासी रहकर अपने अन्य कार्यों को भी सम्पन्न करती है .भूखी रहकर तथा अहर्निश कठोर परिश्रम कर अपने परिवार के लिए अन्नपूर्णा  संतान के उज्जवल भविष्य के लिए  माँ सरस्वती  , परिस्थिति विशेष में  इन सब व्यवस्थाओं के लिए लक्ष्मी जी  और परिवार पर आने वाले संकट के समय दुर्गा ,महाकाली   की  भूमिका का  निर्वाह भी करती है.दुर्गम,पहाडी क्षेत्रों में तो कठिनतम कार्य करना नारी की दिनचर्या है .

कहानी और समस्या यही से प्रारम्भ होती है.पति शराबी,ऐयाश,रोज पत्नी को पीटने वाला, गाली – गलौज करने वाला , परनारी के साथ ऐश करने वाला , घर बैठ कर पत्नी की कमाई से ही मौज उड़ाने वाला हो तब भी पत्नी तो उसके लिए व्रत रखे और पत्नी प्रेम के दो बोल को भी तरसे. कैसी  विडंबना है ये !

नारी जीवन और दुर्भाग्य का तो  तो जन्म जन्मान्तरों का साथ बन चुका है,जबकि    जन्म से पूर्व ही इसी महान स्त्री स्वरूप की  हत्या कर दी जाती है,तो अबोध बच्ची से प्रौढा होने तक भी उसका नारी स्वरूप उसका शत्रु रहता है.  केवल घर के बाहर ही नहीं, भीतर भी वह उतनी ही असुरक्षित है.अपने मनोनुकूल शिक्षा प्राप्त करने से अधिकांश परिवारों में उसको इसलिए वंछित कर दिया जाता है कि कहीं उसके साथ कुछ अनहोनी न हो जाय. चलती बस से उसको उतार कर,दिन के उजाले में भी उसके अपने कहे जाने वाले तथा  समाज के भेडिये उसकी बोटी बोटी नोचने को तैयार रहते हैं. अपने अनुरूप जीवन साथी चुन लेने पर कभी जाति धर्म के नाम पर उसको सरे आम फांसी दी जाती है,उस पर अमानुषिक अत्याचार होते हैं. ससुराल में भी दहेज़ के नाम पर प्रताड़ना मिलती है,तो सर्व गुण सम्पन्न होने पर भी दहेज़ लोभियों का पेट न भर पाने के कारण उसकी बारात लौट जाती है.कभी उसको बेटे की माँ न बन पाने  पर उसको छोड़ने की धमकी दी जाती है.

लौकिक रूप में जो नारी अपनी हर खुशी हर इच्छा परिवार के लिए न्यौछावर कर देती है क्या उसकी कुशलता की कामना करते हुए कोई व्रत या पूजा समाज में निर्धारित की गयी है.इसका उत्तर   सर्वथा नहीं है .ये कैसा नियम है कैसा क़ानून जिसमें समाज ,परिवार के लिए सदा दात्री  के रूप में नारी को केवल कागजी सैद्धांतिक रूप में ही सम्मान मिलता है ,व्यवहारिक रूप में नहीं

(इस आलेख के साथ मैं यह स्पष्ट करना चाहूंगी कि परम्पराओं का पालन करना मुझको बहुत प्रिय है और साथ ही   त्यौहार मनाना भी .वर्तमान परिप्रेक्ष्य में नारी की समस्याओं को दृष्टिगत रखते हुए  तथा समाज के  दृष्टिकोण को  आधार बनाकर  ये प्रश्न आपके समक्ष रखा है.सवाल व्रत रखने या न रखने का नहीं प्रश्न है एक विचारधारा का. नारी के महत्व को स्वीकार किया जाय ,उसको पूजा की नहीं व्यवहारिक  सम्मान की आवश्यकता  है ,जिसकी वह अधिकारिणी है .)

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