Menu
blogid : 2711 postid : 637426

देश को आवश्यकता है आज सरदार पटेल की (जन्म जयंती पर विशेष )

chandravilla
chandravilla
  • 307 Posts
  • 13083 Comments

patel

कोटिश नमन लौह पुरुष सरदार पटेल को जिनकी आज जन्म  जयंती है

देश पर मंडराते संकट वाह्य और आंतरिक , पारस्परिक विद्वेष अन्धकार ही अन्धकार और कोई राह नहीं सूझती हो तो स्मरण हो आता है जिन महान पुरुषों का, उनमें एक हैं,लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल जिनका आज जन्म दिवस है.31  अक्टूबर 1875 को गुजरात के नडियाद में जन्मे  सरदार पटेल स्वाधीनता प्राप्ति के पश्चात गृह मंत्री और उपप्रधान मंत्री रहे.उनका बहु आयामी व्यक्तित्व राष्ट्र को एक कुशल नेतृत्व देने में सक्षम था,कर्तव्यपारायण और धैर्य उनके चारित्रिक गुण थे,राष्ट्रभक्ति की भावनाओं से उनका ह्रदय सराबोर था.दृढ निश्चय और राष्ट्र हित में कुछ भी करने के लिए कृतसंकल्प सरदार पटेल के जीवन का एक प्रेरक प्रसंग उनके चरित्र का एक पक्ष प्रस्तुत करता है………………
बैरिस्टर सरदार पटेल के लिए कहा गया है कि वो सदा ऐसे ही मुकदमे अपने हाथ में लेते थे,जिनको निर्दोष होने पर फंसाया गया हो और वो अपने अकाट्य तर्कों से उनकी पैरवी कर उनको बचा सकें .ऐसे ही एक मुकदमे में अपने अभियुक्त के लिए बहस करते समय उनको कर्मचारी ऩे बीच में ही एक टेलीग्राम लाकर दिया ,जिसको पढ़कर शांत भाव से उनको जेब में रख लिया.केस से सम्बन्धित कार्यवाही पूर्ण होने पर जब उन्होंने प्रस्थान का उपक्रम किया था तो उनके साथियों ऩे उनसे रुकने को कहा परन्तु उन्होंने बताया कि उनकी पत्नी का स्वर्गवास हो गया है,अतः उनको तुरंत जाना है.जब उनसे पूछा गया कि यह समाचार जानकर भी किस प्रकार वह अपना कार्य सुचारू रूप से करते रहे तो उन्होंने उत्तर दिया मेरी पत्नी तो लौट कर नहीं आ सकती थी परन्तु जिस व्यक्ति को मृत्युदंड से बचाने का उत्तरदायित्व मेरा था,उसको मौत के मुख में कैसे जाने देता.जरा सी भी ढिलाई उसके लिए हानिकर हो सकती थी.ये थी  कर्तव्य परायणता और धैर्य ,जो उनके उनके व्यक्तित्व का एक पक्ष है.

राजनीति से सर्वथा परे पटेल महात्मा गाँधी से भेंट के बाद ही इस महान यज्ञ में कूद पड़े.यद्यपि उनके विचार महात्मा गाँधी से सर्वथा भिन्न थे.परन्तु स्वाधीनता संग्राम से जुड़ने का श्रेय उन्होंने सदा महात्मा गाँधी को ही दिया.
गुजरात के खेडा से कृषकों के हित में आन्दोलन से जुड़ कर उन्होंने कृषकों का कर माफ़ करने के लिए स्वर बुलंद किया और सफलता प्राप्त की.परन्तु ये तो मात्र एक शुरुआत थी.इसके पश्चात बारडोली में पटेल ऩे वहां की कर्मठ महिलाओं व कृषक बंधुओं का नेतृत्व करते हुए इस आन्दोलन का नेतृत्व किया. स्वाधीनता संग्राम के दौरान वर्ष 1928 में गुजरात में हुआ यह एक प्रमुख किसान आंदोलन था जिसका नेतृत्व पटेल ने किया था। प्रांतीय सरकार ने किसानों के लगान में तीस प्रतिशत वृद्धि कर दी थी. पटेल ने इस कर वृद्धि का कड़ा विरोध किया। सरकार ने इस सत्याग्रह आंदोलन को कुचलने के लिए कठोर कदम उठाए, पर अंतत: विवश होकर उसे किसानों की मांगों को मानना पड़ा। एक न्यायिक अधिकारी बूमफील्ड और एक राजस्व अधिकारी मैक्सवेल ने संपूर्ण मामलों की जांच कर 30 फीसदी कर वृद्धि को अनुचित स्वीकार करते हुए इसे घटाकर 6.3 प्रतिशत कर दिया।
इस सत्याग्रह आंदोलन के सफल होने के बाद वहां की महिलाओं व् कृषकों ने वल्लभ भाई पटेल को ‘सरदार’ की उपाधि प्रदान की। किसान संघर्ष एवं राष्ट्रीय स्वाधीनता संग्राम के अंर्तसबंधों की व्याख्या बारडोली किसान संघर्ष के संदर्भ में करते हुए गांधीजी ने कहा कि इस तरह का हर संघर्ष, हर कोशिश हमें स्वराज के करीब पहुंचा रही है और हम सबको स्वराज की मंजिल तक पहुंचाने में ये संघर्ष सीधे स्वराज के लिए संघर्ष से कहीं ज्यादा सहायक सिद्ध हो सकते हैं।और इस सफलता का सम्पूर्ण श्रेय सरदार पटेल को ही था.

स्वाधीनता संग्राम के सभी महत्वपूर्ण आंदोलनों में सरदार पटेल ऩे महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया असहयोग आन्दोलन,भारत छोड़ो आन्दोलन दांडी मार्च सभी कार्यक्रमों में उन्होंने अपने विचार नेहरु गाँधी से भिन्न होते हुए भी सक्रिय योगदान दिया जेल यात्राएं भी उन्होंने की . ये थी देशभक्ति जिसे कारण विचार वैभिन्य होने पर भी देश हित ही उनके लिए प्रधान था.

सरदार पटेल न केवल जनता में लोकप्रिय थे अंग्रेज भी उनसे भयभीत रहते थे.अपनी लोकप्रियता के बल पर उन्होंने कांग्रेस में दो बार अध्यक्ष पद.को सुशोभित भी किया परन्तु महात्मा गाँधी का विशेष झुकाव पंडित नेहरु के प्रति होने के कारण उन्होंने स्वाधीनता के पूर्व ही स्वयं को संभावित प्रधानमंत्री पद की दौड़ से पृथक कर लिया था क्या ये हमारे आज के स्वार्थी पथभ्रष्ट राजनेताओं को कुछ शिक्षा दे सकेगा जो स्वार्थ के लिए देश को कंगाल बनाने में भी संकोच नहीं करते और पटेल ने इन समस्त परिस्थितियों को देख समझकर भी राष्ट्र हित के कार्य को ही अपना ध्येय .बनाये रखा.

सरदार पटेल का सर्व महत्वपूर्ण योगदान था देशी राज्यों का भारतीय संघ में विलय . गृह मंत्री के रूप में उनकी पहली प्राथमिकता देसी रियासतों(राज्यों) को भारत में मिलाना था। ये दुष्कर कार्य उन्होंने बिना रक्तपात व हिंसा के अपनी बुद्धिमता और कूटनीति के बल पर . सम्पादित कर दिखाया। हैदराबाद के आपरेशन पोलो के लिये उनको सेना भेजनी पडी परन्तु सफलता का वरण सरदार पटेल ने ही किया. क्योंकि हैदराबाद का निजाम,जूनागढ़ और जम्मू ये तीन राज्य विलय हेतु तत्पर नहीं थे जूनागढ़ को भी अंततः मना लिया गया.परन्तु .जम्मू के संदर्भ में उनकी नीति अधिक व्यवहारिक व दूरदर्शिता पूर्ण थी ,परन्तु शेष सबने उनके कदम को नहीं माना.जम्मू का विलय तो हुआ परन्तु अंग्रेजों की भेद नीति और हमारे तत्कालीन राजनैतिक नेताओं की अदूरदर्शिता के कारण उनकी एक भी नहीं चली . काश्मीर का मामला न केवल अंतर्राष्ट्रीय पटल पर पहुंचा अपितु हमारी एक ऐसी दुखती रग बन गया जो आज हमारी गम्भीर समस्या है इस समस्या का समाधान केवल लौह पुरुष जैसे व्यक्तित्व का स्वामी ही कर सकते हैं. इन स्थितियों में तो ऐसा लगता है काश आज सरदार पटेल के कद और राजनीतिक दृढता वाला कोई नेता देश में होता तो अब तक ये विवाद कब का हल हो गया होता । हम एक पीढ़ी से अगली पीढ़ी बिना नतीजा तक इस समस्या को जटिल बनाते हुए स्थानांतरित करते जा रहे है। अब तो कोई कड़ा निर्णय और कड़वा घूँट ही कश्मीर समस्या का हल दे पायेगा । नहीं तो यह विवाद ऐसे ही धधकता रहेगा और हमारे बहुमूल्य संसाधनों तथा सैनिकों  की बलि चढती रहेगी
,

सन 1950 में उनका देहान्त हो गया। इसके बाद नेहरू का कांग्रेस के अन्दर विरोध करने वाला कोई शेष नहीं रहा और कठोर नीतियां नहीं बन पायीं. और ये एक शाश्वत सत्य है कि किसी भी देश के सम्पूर्ण विकास में कठोर किन्तु राष्ट्रभक्ति से पूर्ण निर्णय ही महत्वपूर्ण होते हैं.

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh