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लघु कथाः श्राद्ध कांटेस्ट

chandravilla
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“अरे बहू,जरा एक कप चाय ही  दे दो बहुत ठंड लग रही है और भूख के कारण चक्कर आ रहे हैं.” बूढ़ी शकुन्तला ने कमजोर स्वर में पुकारा.

“अभी देर लगेगी अम्मा ,पता नहीं आपको श्राद्ध है पंडित जी आने वाले हैं,उनको खिलाये बिना कुछ नहीं दे सकती, आप तो बड़ी बूढ़ी हो नियम कायदे आपको ज्यादा पता हैं”.

भूख की आग  और  ठंड से  कांपती बूढी हड्डियों ने शकुन्तला को विवश कर दिया था झुंझलाने के लिए. दूसरी और पुत्रवधू बडबडा रही थी,”सठिया गयी हैं अम्मा तो जरा भी तो सब्र  नहीं, पता नहीं कितनी भूख लगती है.”

लाचार बूढ़ी अम्मा  की पुकार का प्रभाव बहू पर नहीं पड़ा. ,आँखों में आंसू भरे थे,रजाई और कसके लपेट ली थी,किसी को आंसू न दिखें अतः चेहरे पर भी रजाई ओढ़ ली थी.. ,सोच रही थी पुरखों के श्राद्ध की चिंता तो है,पर मुझ अपाहिज बूढ़ी की नहीं .ये कौन सा नियम है कि पंडित को खिलाये बिना कुछ नहीं मिलेगा. हे राम मुझको उठा ही ले ,रोज मांगती हूँ मौत पर मेरे लिए वो भी नहीं तेरे पास…

नन्हा बबलू माँ और दादी की बात सुन रहा था स्कूल जाने को तैयार था, समझ नहीं पा रहा था,माँ ने मेरा टिफिन बना दिया,दीदी अपना टिफिन लेकर स्कूल गयी तो दादी को पंडित जी के खाने से पहले क्यों नहीं.मिलेगा खाना . माँ से कारण पूछा तो डांट कर चुप कर दिया उसको.

स्कूल की वैन आने वाली थी, बबलू चुपचाप दादी के कमरे में गया और अपना टिफिन  रजाई के अन्दर दादी के  कांपते हाथ में पकड़ा कर स्कूल के लिए भाग गया. दादी की आँखों में आंसू आ गये अपनी भूख भूल कर पोते की चिंता सताने लगी, कोस रही थी खुद को मैंने खाना क्यों माँगा नन्ही सी जान सारा दिन भूखा रहेगा और मैं बुढिया……………….आंसू थम नहीं रहे थे, पर उसको लगा उसकी आत्मा तो पोते ने जीते जी ही  तृप्त कर दी…

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