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गिरगिटी नेताओं को आइना दिखाना होगा राजनैतिक आलोचना (कांटेस्ट )

chandravilla
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मुखिया मुख सो चाहिये खान पान कहुँ

एक पालै पोसै सकल अंग तुलसी सहित विवेक

नेता श्रेष्ठ आचरण करने वाला, उत्तम गुणों से भरपूर, प्रजापालक, राज्य की सुरक्षा करने वाला, उद्दंडी को दंड देने वाला, श्रेष्ठजन का सम्मान करने वाला, राज्य की उन्नति में सहायक होना चाहिए /

हिन्द स्वराज में गांधी जी ने उल्लेख किया कि जिस संसद को आप प्रजातांत्रिक वयवस्था का मुख्य बिन्दु मानते हैं वह संसद तो बांझ और वेश्या है (संदर्भ विशेष पृष्ठ 13 /14 ) समाज की अवधारणा का प्राण तत्व मुखिया / नेतृत्व या नेता ही होता है (जीवन में हमारी सबसे बडी जरूरत कोई ऐसा व्यक्ति है , जो हमें वह कार्य करने के योग्य बना दे , जिसे हम कर सकते हैं ।नेतृत्व का रहस्य है , आगे-आगे सोचने की कला )

नेता शब्द की संभवतः ये एक परिभाषा है . नेता जी शब्द सुनते ही ,पढ़ते ही  उपरोक्त कसौटी पर कसते हुए जहाँ नेताजी सुभाष चन्द्र बोस,सरदार पटेल, गाँधी जी,मदन मोहन मालवीय जी,लाल बहादुर शास्त्री जी ,अटल बिहारी बाजपेयी जी आदि की छवि साकार हो उठती थी और मन में आता था एक श्रद्धा भाव. . इसके सर्वथा विपरीत  आज कल नेता शब्द आते ही एक विकृत सी छवि सामने आती है और अब जबकि  चुनावी मौसम की चहल-पहल है तो ये नेता एक से बढ़कर एक सुहावने ,लुभावने स्वप्न  दिखाने में लीन हैं.कभी कभी तो लगता है देश में सभी राजनैतिक दलों का विवेक और संवेदनाएं  जागृत  हो गयी हैं,  मानों  सभी दल और नेता स्वदेश और देशवासियों के लिए देश को सुधारने का बीड़ा उठाये मैदान में कमर कसे  तैयार खड़े हैं, अपने प्यारे मतदाताओं के दुःख-दर्द ,पीडाएं,गत वर्षों में झेली गई समस्याएं सहन नहीं हो पा रही हैं ,अतः देश को समृद्ध,भ्रष्टाचार मुक्त .विकसित देखने की भावनाएं  उनके ह्रदय में हिलोरे ले रही हैं.

. कांग्रेस,भारतीय जनता पार्टी, समाजवादी पार्टी,बहुजन समाजवादी पार्टी, अन्य क्षेत्रीय दल  सभी अपने वादों को अधिकाधिक जन हितैषी बताने की होड में  मोहक,आकर्षक पैकेज के रूप में चुनावी घोषणापत्र  तैयार करने की  कतार में हैं . शब्दों के थोड़े से अंतर के साथ सब ही  घोषणापत्र रूपी  थाली सजाये बैठे है  जिससे स्वादिष्ट और पौष्टिक भोजन के लोभ में कोई भी मतदाता किसी और दल का अतिथि न बन सके.

नित नये   रंग बिखेरें  जा रहे हैं .युवा पीढी पर विशेष कृपा दृष्टि के रूप में लेपटोप ,मोबाइल,स्कूटी,बेरोजगारी  भत्ता  वितरण ,भ्रष्टाचार से देश को मुक्त करा कर  देश को  भ्रष्टाचार मुक्त करने का नारा, मुफ्त खाद्यान्न वितरण, कृषकों को ब्याज रहित ऋण , पुराने ऋण माफ़ करने , कृषि उपकरण,बीज खाद आदि का वितरण ,बिजली -पानी के बिल माफ़ कराने का वादा ,सबको उच्च कोटि की चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध कराने के वादे ,गैस के सब्सिडी वाले  सिलेंडर की संख्या बढाने का वादा  ,राम मन्दिर बनाने का वादा तो कभी वहाँ मस्जिद बनवाने की घोषणा .आदि आदि ………..

विशेष कृपा दृष्टि है अल्पसंख्यकों पर , छात्रों पर,महिलाओं पर,और कुछ ऐसे वर्ग पर जिनको आरक्षण का झुनझुना थमा कर रिझाया जाय …………एक होड़ सी मची  है अल्पसंख्यक वर्ग को लेकर ,जो सभी दल स्वयम को उनके सबसे बड़े समर्थक और हितैषी  बन ये सिद्ध करना चाह रहे हैं .वोट बैंक का स्वार्थ सिद्ध करने के लिए देश को तोड़ने वाले या देश की अखंडता और एकता में बाधक बयान देते हैं.

महिलाओं को बलात्कार और छेड़छाड़ से सुरक्षा देने के लिए विशेष घोषणाएं ,उनको नौकरी में विशेष रियायतें देने के लिए सब उत्सुक हैं.और हाँ साथ ही छात्रों को लुभाने के लिए नित नवीन घोषणाएं सुर्ख़ियों में हैं.श्रमिक ,आदिवासी ,पिछड़ा वर्ग सभी के कल्याण की चिंता ऐसा लगता है कि राजनैतिक दलों की  रातों की नींद भी उडी है भूख प्यास ,चैन सब छिन गया हैvote1.

आज नेता मतदाताओं की स्तुति कुछ इस प्रकार  करते दिख रहे हैं

जय जय हे मतदाता मेरे प्यारे
तुम ही तो हो आज प्रभु हमारे
जीसस तुम अल्लाह भी तुम मेरे
तुम ही राम, शिव, औ कृष्ण मुरारे |
जय जय हे……………….!
—————————————–
गालियाँ दो , कोसो चाहो जितना ,
मार के साथ जूते भी तुम्हारे खाएँगे |
प्यार समझ कर दुत्कार भी सहेंगे उतना,
पर चरणों से हाथ अब नहीं हटायेंगें |
जय जय हे……………………
——————————————–
लैपटॉप, साड़ी,कम्बल देते न थकेंगे ,
वादे भी न्यारे सदैव तुमसे करेंगे |
गर तुम चाहोगे तो चुनाव के दौरान
शराब फैक्ट्री भी नाम तुम्हारे करेंगे |

जय जय हे मतदाता मेरे प्यारे
तुम्हारे मत लगते हमें बड़े ही प्यारे
अपने मतों से भर दो झोले हमारे
जय जय हे मतदाता मेरे प्यारे !!!!!!

काश ! इसका कुछ प्रतिशत भी सोच पाते यदि स्वदेश के लिए तो अंग्रेजों  द्वारा देश को छोड़ने के 66 वर्ष पश्चात भी देश इस स्थिति में न होता जिसमें आज है. देश आर्थिक दृष्टि से विकसित होता न कि भ्रष्ट देशों की सूची  में उसका स्थान शीर्ष भ्रष्ट देशों में होता. समस्याएं आज नई नहीं है,हर बार वही वादे और फिर वही अंगूठा दिखाया जाना .आज दीखता है तो केवल  स्वार्थ ही स्वार्थ .सदा से यही तो  होता आ रहा है,चुनाव निकट आते ही गिरगिट की भांति रंग बदल कर ये नेता जनता के सेवक   और मतदाताओं के हितैषी बन जाते हैं, तो सत्ता हाथ में आते ही इनके सुर बदल जाते हैं और इन्ही मतदाताओं के हित डस्टबिन में पहुँच जाते हैं और वो क्षेत्र खोजे जाते हैं जहाँ से अपनी सात पुश्तों के लिए धन-दौलत लूटी जा सके. इसके अतिरिक्त इनका ध्यान होता है एक  बिंदु पर “बांटों और राज करो” बस हिन्दू-मुस्लिम,अगड़ा-पिछड़ा,धनी-निर्धन,ग्रामीण-शहरी आदि आदि ……..

इनकी भाषा  शैली इतनी  भद्दी  कि सुनने में भी शर्म  आती है .गाली – गलौज  में मात करते हैं फिल्मों के विलेन को ,आज जिसको गाली दें,कोसें उसी की गोद में जा बैठें.,ऊपर से गाली और भीतर फिक्सिंग !.इनको नेता कहना अपमान है इस उत्तरदायित्व का बोध कराते   महान पद का .indian_politics

.                         लेकिन मतदाता भी कम दोषी नहीं,यही मतदाता अपराधी, माफियाओं ,चरित्रहीन तथा  लोगों को अपना नेता चुन कर भेजते हैं अपना भाग्य विधाता बना कर ,इतना ही नहीं आम व्यक्ति को भी जो विजयी होता है  ,जन प्रतिनिधि बनते ही उसको भगवान बना दिया जाता है,स्वयम जनता के द्वारा ,कोई उनके चरण छूता है,तो कोई आरती उतारता है ,कोई उनका मन्दिर बनाता है तो कोई धन से तोल देता है.परिणामस्वरूप यही लोग जो कभी सेवक बनते हैं ,भाग्यविधाता समझने लगते हैं स्वयम को और फिर मतदाता की लगाम इनके हाथ में आ जाती है.

मतदाता के सामने भी कुछ विवशताएँ हैं ,जिसके चलते उसकी स्थिति वह है एक ओर कुआँ तो दूसरी ओर खाई .हमारी व्यवस्था ही कुछ ऐसी है कि जनता के समक्ष विकल्प कम होते हैं.दलगत  और महंगी राजनीति के चलते ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ  लोग कम ही आते हैं राजनीति में ,और यदि कोई ऐसा   व्यक्ति विजयी होता  भी है तो बहुमत न होने के कारण उसके हाथ में कुछ होता ही नहीं .यही कारण है कि संसद में ऐसे ऐसे बिल पारित हो जाते हैं जो प्राय देश हित में नहीं होते.अतः स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं आ पाता.

हमारी संवैधानिक व्यवस्था का एक अन्य दोष है ,जागरूकता की कमी,मतदाताओं में. सम्पन्न वर्ग तो स्वयम को तटस्थ रखता है क्योंकि उसके लिए  वही स्थिति है “कोई होय नृप हमें का हानि ”  मध्यम वर्ग उदासीन होता जा रहा है और निर्धन वर्ग के पास खाने कमाने की चिंता ही बहुत है.इसके अतिरिक्त भी देश के अधिकांश नागरिकों और मतदाताओं को  ं संवैधानिक व्यवस्था की व्यवहारिक जानकारी बहुत आवश्यक है.

अतः देश की स्थिति में उपरोक्त परिस्थितियों में परिवर्तन हुए बिना सुधार केवल कल्पना ही है इनको आइना दिखाना होगा और ये बताना होगा कि ये जनता के सेवक हैं,स्वामी या भगवान नहीं .जनता को इनको उत्तर इन शब्दों में  देना होगा

मतदान-पल सुमिरन तुम करो ,शेष बरस देते बिसराए

रखते याद गर जीतने पर भी .मतदाता मुहर लगाते जाय

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