Menu
blogid : 2711 postid : 711033

राजनीति में शुचिता की आशा बेमानी है .

chandravilla
chandravilla
  • 307 Posts
  • 13083 Comments

कितना विचित्र सा तथ्य है कि आज  व्यक्ति कहीं भी ईमानदार नहीं . व्यक्ति स्वयम  तो ईमानदार  नहीं और सबसे अपेक्षा की जाती है ,ईमानदारी,नैतिकता की.परिवार जैसी छोटी सी इकाई से लेकर राजनीति तक सभी स्तरों पर कथनी और करनी में कहीं भी एक रूपता नहीं    ( इस पोस्ट में मेरा उद्देश्य आंकडें प्रस्तुत करना नहीं बस एक तथ्य पर ध्यान आकर्षित करना है कि हम विचार करें कि सर्वत्र वातावरण विकृत क्योँ है )

प्रारम्भ करते है परिवार से ……सभी माता-पिता अपनी संतान से अपेक्षा रखते हैं,संतान परिवार के प्रति निष्ठावान हो  आदर -सम्मान,आज्ञापालन ,उत्तरदायित्व  और नैतिकता की भावना  हो अर्थात सभी रूप में आदर्श हो,जबकि स्वयम उन्ही बच्चों को झूठ बोलना सिखाते हैं,फोन पर ये बोल कर कि वो घर से बाहर हैं,या द्वार पर ही ये कहलवाकर कि वो घर में नहीं हैं,किसी अतिथि  के जाने के पश्चात उसकी निंदा कर ,स्वयम अपने बुजुर्गों के प्रति अनुचित व्यवहार करके ,मिथ्याभाषण करके .भ्रष्ट उपायों से धन संचित कर(रिश्वत ,झूठे मेडिकल बिल्स ,अन्य भ्रष्ट उपायों के माध्यम से )  उनके एडमिशन के लिए ,उनको सफलता दिलाने के लिए उन बच्चों को ऐसी  सुख सुविधाओं का आदि बना कर(जो उनके लिए मूलभूत आवश्यकताएं बन जाती हैं )
कार्य क्षेत्र की स्थिति भी कुछ भिन्न नहीं,स्वयम काम के प्रति घोर लापरवाही और उदासीनता का प्रदर्शन और  उसी  स्थिति के लिए अधीनस्थों को कोप भाजन  बनाना.झूठे मेडिकल अवकाश पर मौज करना और  कार्यालय तथा घर में कार्य करने वाले सेवकों का वेतन काट लेना, अधिक अवकाश लेने पर .,उनको प्रताड़ित करना.
समाज में विविध सामाजिक समस्याओं ,व्यवहार क्रियाकलापों के सम्बन्धित व्यक्तियों की   निंदा की जाती है और जब उन्ही कार्यों को  को स्वयम किया जाता है तो  फिर कुतर्कों के माध्यम से उचित ठहराया  जाता है.शादियों में दिखावा  हो,दहेज़ हो,प्रेम विवाह या कोई भी सामाजिक समस्या.
राजनीति में  यद्यपि स्वच्छ वातावरण और नैतिकता की आशा करना तो वैसे भी कपोल कल्पना है,क्योंकि कहा गया है, राजनीति तो सदा ही वेश्या की भांति नित नवीन रूप धरती है.राजनीति में कोई स्थायी शत्रु -मित्र नहीं होता ,राजनीति में साम-दाम-दंड-भेद आदि सभी साधनों का आश्रय लिया जाता है .
वर्तमान परिस्थितियों में ये सब परिदृश्य चरम पर हैं.जिन नेताओं ,राजनैतिक दलों को  पानी पी कर कोसा जाता है वही अगले ही पल  अभिन्न  मित्र बन जाते हैं.उनके सभी कार्य घोर अपराध होते हैं तब तक जब तक कि वो विरोधी दल से जुड़े होते हैं, परन्तु गंगा तीरे गंगा दास और जमुना तीरे जमुना दास के सिद्धांत पर चलते हुए अपने साथ जुड़ने पर उनके सात नहीं असंख्य खून क्षम्य होते हैं.स्वार्थ पूरे होने तक देश द्रोह जैसे अपराध भी या तो दीखते नहीं और या फिर देख कर अनदेखे कर दिए जाते हैं.राजनीति में ऐसे उदाहरण चुनाव के समय तो चरम पर होते हैं.
” तिलक तराजू और तलवार ,इनको मारो जूते चार ” का नारा देने वाली सवर्ण और दलितों में दीवार को मजबूती देने वाली  बहिन मायावती जी को कोसने वाले सभी जूते खाकर भी उन्ही के चरण स्पर्श करते हैं.
मुलायम सिंह को मुल्ला मुलायम सिंह संबोधित कर अपना कट्टर शत्रु मानने  कल्याण सिंह और मुलायमसिंह की मैत्री ,फिर शत्रुता.  भा ज पा द्वारा  शिबू सोरेन, की कड़ी  निंदा फिर समर्थन ,नीतीश कुमार से  दोस्ती ,फिर उन्ही नीतीश कुमार के बदले तेवर ,वर्तमान में फिर पासवान,करुना निधि  ओहो! कहाँ तक गिनें .

कांग्रेस  तो देशद्रोहियों का समर्थन लेने में ही नहीं चूकी कभी.सत्ता हस्तगत करने के लिए किस प्रकार कांग्रेस के कर्णधारों ने  संवैधानिक व्यवस्थाओं को तोडा मरोड़ा है ,स्वाधीनता पश्चात का इतिहास साक्षी है. कांग्रेस के गत कार्यकाल में हुए घोटालों ने तो सारे कीर्तिमान ही ध्वस्त कर दिए ,उन सबको प्रश्रय दिए रखना देश के प्रति निष्ठा का परिचायक कैसे माना जा सकता है.हाँ उन्ही लोगों के कहीं अन्यत्र जुड़ते ही उनमें सारे दोष नजर आ जाते हैं. उनके विरुद्ध जांच बैठा दी जाती है.वोट बैंक की खातिर विवादित और देश द्रोह को बढावा देते बयान दिए जाते हैं.

आम आदमी पार्टी ,का  तो उदय  ही विवादित रहा .पार्टी के नीति नियंताओं को उसी कांग्रेस से हाथ मिलाने में तनिक भी संकोच न रहा जिससे समर्थन ने लेने के लिए श्री अरविन्द केजरीवाल ने अपने बच्चे की शपथ ली थी.ईमानदारी की कसमें खाते हुए ऐसे लोगों को जिम्मेदारी सौंप दी जिनकी ईमानदारी पर प्रश्न चिन्ह लगे थे .  सम्पूर्ण कार्यकाल केवल नौटंकी ही दिखाई दिया.
समाज वादी पार्टी हो ,कम्युनिस्ट हों  सभी दल का उद्देश्य सत्ता के लिए कुछ भी करेगा ही दिखाई देता है.
इतना ही नहीं चुनाव से पूर्व जिन विरोधी  दलों और नेताओं के दोष गिनाते ,उनके सही गलत वीडियो आडियो दिखा कर विजय प्राप्त कर सकते हैं उन्ही के साथ अवसर वादिता का परिचय देते हुए  सत्ता संभालते हैं.
जैसा कि कहा गया है राजनीति में सब कुछ उचित है , तो फिर अनुचित क्योँ ?  निश्चित रूप से ये समस्त क्रिया कलाप अनुचित न होते यदि  इसके मूल में देश हित हो ,.महाभारत के युद्ध में  कूटनीतिक उपायों का आश्रय भगवान श्री कृष्ण ने भी लिया था,परन्तु उसके मूल में देश हित और सत्य का साथ  देना था, वैसा तो आज कहीं भी दीखता ही नहीं ,सत्ता और केवल सत्ता , स्वार्थ ,पद का दुरूपयोग और धनार्जन बस यही उद्देश्य शेष रह गया है राजनैतिक दलों का ..
.
अब प्रश्न ये है कि इकाई तो व्यक्ति ही है परिवार,समाज देश विविध संगठन व्यक्ति से ही बनते हैं,परिवार सदृश छोटी सी इकाई में भी जब कथनी और करनी में समरूपता नहीं तो इतने विशाल स्तर पर स्वच्छता की कल्पना ख्याली पुलाव ही हो सकती है . अतः स्वयम को सुधारते हुए ,कथनी और करनी में एक रूपता ला कर ही विश्व गुरु भारत के स्वप्न देख सकते हैं

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply to yogi sarswatCancel reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh