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सर्वप्रथम तो सभी को बधाई अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस की परम्परा के अनुसार .
नारी का कार्यक्षेत्र पुरुष की तुलना में बहुत व्यापक है.वर्तमान परिवेश में तो आर्थिक उत्तरदायित्व भी है उसके कंधों पर.तथापि नारी की वास्तविक और व्यवहारिक स्थिति क्षोभनीय ही कही जायेगी. आज महिला दिवस मनाते हुए स्थान स्थान पर आयोजन हो रहे हैं.भाषण,विविध कार्यक्रम,सम्मान समारोह आदि. लेकिन 8 मार्च को वर्ष में एक दिन महिला दिवस मना लेने से क्या दायित्व पूर्ण हो जाता है समाज का? ऐसे विविध आयोजन कर महिला दिवस मनाने वाले संगठनों से विशेष विनम्र अनुरोध ,,,,,,,,,,,
सर्व प्रथम तो हमको ये स्मरण रखना होगा कि समाज रूपी रथ के ये दोनों ही पहिये एक दूसरे के पूरक हैं विरोधी नहीं. नारी की दोयम दर्जे की स्थिति के लिए दोषी केवल पुरुष ही नहीं,स्वयम नारी भी है. अतः दोनों से ही मेरा अनुरोध
पुरुषों से ……………….. सर्वप्रथम तो आप महिलाओं को दोयम दर्जे की नागरिक या केवल आवश्यकतानुसार उपभोग की वस्तु न मानें , जिस प्रकार आपका अपना सम्मान,है,उसी प्रकार महिलाओं का भी.
गृहणियों के कार्य को सम्मान दें उसका महत्व समझें.
स्वयम भी समझ लें और अपने सुपुत्रों को समझाएं ,जिस प्रकार आपको आपकी बेटी,बहिन,माँ या पत्नी की इज्जत की चिंता है उसी प्रकार शेष सभी महिलायें,लड़कियां,किसी के साथ ऐसे ही रिश्तों से जुडी हैं.यदि आप बचपन से ही लड़कों को ऐसे संस्कार दें अपने व्यवहारिक उदाहरण के साथ, तो निश्चित रूप से उनके हृदयों में ऐसे संस्कार जन्म लेंगें .
महिलाओं के अधिक योग्य होने पर उसको अपनी प्रतिष्ठा या अहम् पर चोट का प्रश्न न बनाएं .
महिला यदि कार्यरत है तो परिस्थिति के अनुसार उसको सभी कार्यों में यथेष्ठ सहयोग दें.
कन्या भ्रूण हत्या से बड़ा पाप कोई नहीं ,ये सदा गाँठ बाँध लें और समझ लें कि आपका अस्तित्व भी महिला के कारण ही है .
दहेज़ देने और लेने से घृणा करें .
अब स्वयम नारी जगत से …………..
सर्वप्रथम तो नारी अपना महत्व स्वयम समझे मेरा क्या ,मैं तो ऐसे ही काम चला लूंगी , इस धारणा को सदा सदा के लिए अपने शब्दकोश से बाहर कर दें.अपने स्वास्थ्य,मानसिक और शारीरिक दोनों पर ध्यान देना आवश्यक है.जिस प्रकार परिवार में सभी के स्वास्थय ,वस्त्रों आदि का ध्यान आप रखती हैं उसी प्रकार स्वयम का ,क्योंकि परिवार के लिए भी कुछ करना तभी संभव है जब आप पूर्ण रूपेण स्वस्थ हैं.अपनी उपेक्षा स्वयम करने पर परिवार में कोई भी आपका ध्यान नहीं रख सकता.
नारी होते हुए भी स्वयम नारी का शत्रु होना नारी के उत्थान में सबसे बड़ी बाधा है,अतः कन्या भ्रूण ह्त्या,बाल विवाह,दहेज़ आदि का सबसे पहले मन से विरोध करना जरुरी है .,
घर में आने वाली बधू को बेटी ,बहिन की तरह प्यार दुलार ,सम्मान देकर अपना बनाने का प्रयास किया जाना चाहिए .
जैसे बेटियों को शिक्षा दी जाती है परिवार में वैसे बेटों को भी समझाएं और बहिन के प्रति जिम्मेदारी का अहसास कराए.साथ ही थोड़ी बहुत गृह कार्य की भी शिक्षा जरुर दी जानी चाहिए .यदि पुरुष पत्नी का सहयोग करता है गृह कार्य में तो उसको प्रोत्साहित किया जाना चाहिए .
महिलायें अपने अधिकारों और साथ ही कर्तव्यों के प्रति जागरूक रहें
स्वयम को बाजारवाद का शिकार न होने दें महिलायें .,महिलाओं के प्रति बढ़ते यौन अपराधों का एक बहुत बड़ा कारण मेरे विचार से विज्ञापनों ,धारावाहिकों और फिल्मों में अश्लीलता और नग्नता ही है,जिसका अवसर स्वयम महिलायें देती हैं .
अतः जागिये और प्रकृति ने आपको विशेष क्षमताएं दी हैं ,उनका सदुपयोग कर अपना सम्मान हासिल करिए .
ऐसा स्वरूप न रहे नारी का ऐसी शुभकामनाएं
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