Menu
blogid : 2711 postid : 735095

सुनो ये आर्त पुकार ,(आओ धरती बचाएं) पृथ्वी दिवस पर

chandravilla
chandravilla
  • 307 Posts
  • 13083 Comments

पृथ्वी दिवस पर आप सभी को शुभकामनाएं ,साथ ही पढ़ें अपनी माता धरती माता की करुण पुकार

धरती कहे पुकार कर,

,हे निर्दयी,कृतघ्न ,स्वार्थी मानव तुझसे श्रेष्ठ तो पशु-पक्षी हैं.तू गुणहीन होने के साथ बुद्धिहीन भी है, क्योंकि जिस पृथ्वी और उसके संसाधनों के कारण तेरा अस्तित्व है उनको ही विनष्ट कर तू खिलखिला रहा है ,आनंद मना रहा है स्वयम को जगत  का सबसे बुद्धिमान मानने वाले जीव, तेरी मूढमति पर तरसआता है  मुझको .तू जिस अंधाधुन्ध  लूट खसोट की प्रवृत्ति का शिकार हो स्वयम को समृद्ध और अपने आने वाली पीढ़ियों का भविष्य स्वर्णिम बनाना चाह रहा है , उनकी राहों में ऐसे गड्ढे खोद रहा है ,जिसके लिए वो तुझको कभी क्षमा नहीं करेंगें.विकास की दौड़ में भागते हुए तू  ये भी भूल रहा है कि आगामी पीढियां तेरे प्रति कृतज्ञता का  अनुभव नहीं करेंगी अपितु तुझको कोसेंगी कि तुने उनका जीवन अन्धकारमय बना दिया ,उनको कुबेर बनाने के प्रयास में तुने उनको जीवनोपयोगी वायु,जल से वंछित कर दिया.सूर्य के  प्रचंड ताप को सहने के लिए विवश कर उनको कैंसर ,तपेदिक जैसे रोगों का शिकार बना डाला.तेरे ही कारण गडबडाया  समस्त ऋतु चक्र  न जाने कब अति वर्षा  बाढ़,सुनामी ,चक्रवात के रूप में (विभिन्न नामों से)जल थल एक बनाते हुए पल में उनको तेरी सौंपी गई धन संपदा  के साथ उनको असमय ही काल का ग्रास बना डाले .

तुझको सिखाया गया था…

क्षिति जल पावक गगन समीरा, पंच तत्व से बना शरीरा

हे मानव मेरी गोद में तूने  जन्म लिया , मेरे द्वारा प्रदत्त अन्न ,जल,फल -सब्जी और दूध से अपना शरीर पाला पोसा ,मेरे आभूषण वृक्षों ने तुझको प्राण दायिनी वायु प्रदान की, स्वयम जहरीली गासों के रूप में विषपान किया.मस्तक के रूप में मेरे पर्वतों ,उनसे निकली नदियों , फिर सागर ने  तेरे जीवन को सुगम बनाया.और तूने क्या किया ,पेड़ों को काट डाला,नदियों को प्रदूषित कर दिया ,सागर पर भी अपनी तानाशाही चलाते हुए जलचरों,वनस्पतियों, पर्वतों की शोभा को विनष्ट कर डाला .अपनी रक्षक ओजोन परत में  भी अपने लोभ से  छिद्रित कर दिया. मेरे दिव्य  गुण सहनशीलता के  कारण   मै तेरे सभी अपराधों को  क्षमा करती रही पर तेरे द्वारा उसका दुरूपयोग किया गया.
आ तुझको दिखाती हूँ कुछ दृश्य  ,  उन अत्याचारों के जो तूने मेरे ऊपर किये हैं………….                                                       (विनष्ट होते  पेड )
.

deforestation-2बंजर होती सूखी धरती

sookhaaजल के लिए तरसते लोग

ganda

29_05_2012-nadiक्या क्या देखेगा,तुने पर्वतों को नग्न कर दिया,वनीय पशुओं के आश्रय स्थल वनों को उजाड अपनी अट्टालिकाएं खड़ी कर ली .

समय समय पर मै अपने रौद्र रूप को दिखा कर तुझको चेतावनी भी दे चुकी ,विनाश झेलते हुए स्वय, को सर्वशक्तिमान मानते हुए तुने सब कुछ अनदेखा कर दिया.परस्पर दोषारोपण करते हुए अपने  अनुचित जूनून पर नियंत्रण नहीं किया .परन्तु कब तक आखिर कब तक झेलूंगी मै ये सब.

अब भी चेत मानव,  रोक दे अंधाधुंध वन विनाश.अपने बच्चों को संस्कार दे कि वो महत्व समझे वृक्षारोपण का ,उनके संरक्षण का.इन अमृत दायिनी सरिताओं पर अत्याचार रोक दे.इनके महत्व को समझ,वर्षाजल संचयन का महत्व समझ ,जल का दुरूपयोग रोक दे इसके लिए बच्चों को ही संस्कारित करना होगा कि वो इसका मूल्य समझें  , नदियों को गंदे पानी का घर बनाना बंद कर, सागर से मत खेल  ,पर्वत तेरे रक्षक हैं उनका क्षरण रोक .इस विनाशकारी पोलिथिन को सदा सदा के लिए विदा कर दे.पशु -पक्षियों के घरोंदे उजाडकर उनको जीवन से वंछित मत कर.

सदा लिया ही है  मानव तूने सभी से .  कुछ तो उपकारों का बदला चुका ,किस किस का ऋण लादे रहेगा अपने सिर पर.बचा ले अपने को अपनी भावी संतति को

saathi-300x200save-earth-300x200

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh