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अनोखी वसीयत (पर्यावरण दिवस 5जून पर लघु कथा)

chandravilla
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विकास की बयार में राघव प्रसाद का छोटा हराभरा गाँव परिसीमन के कारण शहरी सीमा में आ गया था. जीवन के अंतिम प्रहर की ओर अग्रसर , राघव प्रसाद प्रसन्न थे ,अपने गाँव के विकसित होने के समाचार से, परन्तु उनको चिंता थी कि हरे-भरे गाँव का पुरस्कार जीत चुका उनका गाँव अब कंक्रीट का जंगल न बन जाए

. .गाँव में बहुत अधिक जमीन –जायदाद के स्वामी राघव प्रसाद सिद्धांतो के कट्टर  थे.,चिंता का एक समाचार ये भी था कि उनकी सम्पत्ति में से एक बड़े भूखंड पर लगे बहुत सारे पेड़ ,जिनको बेच कर उनके  दोनों पुत्र वहाँ एक  शोपिंग माल बना कर और अधिक धनी होने के स्वप्न देख  रहे थे.  उन  पेड़ों को  राघव प्रसाद संतान  तुल्य ही मानते थे अतः पेड़ों को काटना ! ये पाप , उनका अंतर्मन स्वीकार नहीं का रहा था. इसका कारण था उनके संस्कारों की गहरी और मजबूत जड़ें .poudhaa

धनी परिवार के चिराग राघव का जन्मदिन प्रारम्भ से ही  बड़े धूमधाम से मनता था प्रतिवर्ष ,गरीबों को अन्न-वस्त्र वितरण , ब्राह्मणों द्वारा पूजन,यज्ञ और दान दक्षिणा देना और सामूहिक भोज .कक्षा पांच के विद्यार्थी थे, जब उनको उनके वृद्ध  गुरु जी  ने उनके जन्मदिवस पर उपहार स्वरूप एक  आम का पौधा उपहार में दिया था ,अपने गुरु जी का   का बहुत सम्मान करते थे .बालक राघव ने  गुरु जी से पूछा “मुझको इसका क्या करना है “,गुरु जी ने उनको समझाया “इसको मेरा आशीर्वाद और अपना मित्र मानो प्रतिदिन पानी स्वयम दो  और इसका पूरा ध्यान रखो ,तुम इसकी ही भांति सदा फूलो फलोगे”.
ये सूत्र राघव के जीवन का सूत्र बन गया .धीरे धीरे पौधा बड़ा हो गया और राघव के पिता ने उसको घर के पीछे जमीन में लगवा दिया. परन्तु राघव निरंतर उसका ध्यान रखते .उसको बढ़ता देख कर उनको अत्याधिक प्रसन्नता मिलती.
कुछ समय पश्चात राघव के प्रिय गुरु जी का देहांत हो गया,राघव दुखी हुए परन्तु अब एक नियम बना लिया प्रतिवर्ष जन्मदिन पर एक पेड़ लगाने का.इस प्रकार आज घर के पीछे स्थित उस भूखंड पर बहुत सारे वृक्ष थे .
राघव जी ने पुत्रों को बुलाकर बहुत समझाया कि जमीन का उपयोग इस प्रकार करो कि उसका लाभ तो मिले पर पेड़ न कटें.अनमने मन से पुत्रों ने हाँ तो कर दी पर पिता आश्वस्त नहीं हुए .इसी उधेड़ बुन में खोये सारी रात सो नहीं सके. .अंततः अपने वकील को बुला कर उन्होंने एक वसीयत तैयार की जिसके अनुसार उस बड़े भूखंड को अपने गुरु जी की स्मृति में एक सुन्दर उद्यान बना कर निगम को भेंट कर दिया,शेष सम्पत्ति पुत्रों के नाम कर दी और उद्यान की व्यवस्था की जिम्मेदारी निगम +पुत्रों को सौंप दी   .

अपने पुत्रों को उन्होंने कहा कोई पिता संतान का सौदा नहीं कर सकता अतः उन पेड़ों को कटवाने की अनुमति मैं नहीं दे सकता.तुम्हारे लिए शेष सम्पत्ति पर्याप्त है, शेष परिश्रम करो और कमाओ.मेरे प्रति तुम्हारा प्रेम और सच्ची श्रद्धांजली यही होगी कि उस उद्यान में प्रतिवर्ष मेरी पुण्य तिथि  और विशिष्ठ अवसरों पर  पेड़ लगाते रहो और उद्यान की देख-रेख करो .mn

अपनी वसीयत वकील को सौंप कर राघव जी को लगा कि अब वो शांति से अंतिम श्वास ले सकेंगें .

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