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आम समाचार बन चुका बलात्कार (अधिकांश दुर्भाग्य पूर्ण मामले तो समाचार भी नहीं बनते).चीख-पुकार ,हाय तौबा ,कोसना ,आसूं बहाना ,लेकिन क्या कोई हल निकल पाया ,एक ही उत्तर नहीं .नहीं नहीं ,नारी को कभी मुक्ति नहीं इस अभिशाप से.
धार्मिक -पौराणिक ग्रंथ,इतिहास और कलुषित वर्तमान साक्षी हैं कि नारी देह उत्पीडन से कभी मुक्त नहीं हो सकी.विधाता की अनुपम कृति,दैवी गुणों से सम्पन्न ,सर्वश्रेष्ठ रत्न मानी जाने वाली नारी की कैसी विडंबना है ये कि जिस पुरुष को पुत्र के रूप में जन्म देती है, ममता लुटाती है,बहिन के रूप में दिव्य स्नेह,पत्नी के रूप में पूर्णतया समर्पण ,आजीवन सेवा, और बेटी के रूप में पिता बनने का गौरव प्रदान करती है,उसी नारी के सम्मान को पददलित करता है पुरुष ,घर-बाहर, अबोध बच्ची या वृद्धा ,कार्यालय,दिन -रात ,स्टेशन,यात्रा के समय,अर्थात हर स्थान,हर समय पाशविक प्रवृत्ति .
संवेदन हीन प्रशासन,नेता ,जनमानस कोई इस संताप को नहीं समझ सकता .बलात्कार पीडिता तो आजीवन भोगती है इस संत्रास को या फिर उसका परिवार ही उस मर्मान्तक पीड़ा को समझ सकता है.
दुर्भाग्य हमारे देश का जहाँ ऐसी कुत्सित सोच वाले नेता हैं,जिनके लिए माँ-बहिनों की इज्जत की कोई कीमत नहीं और वो अनर्गल बयान देते हैं,केवल राजनैतिक चश्मे से ही देखते हैं.
क्या होगा इस विलाप से जो भयंकर पिशाच आज तक विकृत मनोवृत्ति से मुक्ति नहीं पा सके उनको कोसने से समस्या का समाधान कभी नहीं होगा .
सृष्टि के विधान के अनुसार नारी को स्वयम ही शक्ति स्वरूपा बनना होगा ,संस्कारों से भी और शारीरिक रूप से भी .
महिलाओं की आत्मनिर्भरता ,साहस और कोई ऐसा प्रशिक्षण उनको मिलना चाहिए कि छोटे खतरे का सामना वो स्वयम कर सकें ,विदेशों की भांति उनके पास मिर्च का पावडर या ऐसे कुछ अन्य आत्म रक्षा के साधन अवश्य होने चाहियें.
मातापिता को भी ऐसी परिस्थिति में लड़की को संरक्षण अवश्य प्रदान करना चाहिए.साथ ही संस्कारों की घुट्टी बचपन से पिलाई जानी चाहिए,जिससे आज जो वैचारिक पतन और एक दम माड बनने का जूनून जो लड़कियों पर हावी है,उससे वो मुक्त रह सकें.
ऐसे पुत्रों का बचाव मातापिता द्वारा किया जाना पाप हो अर्थात मातापिता भी ऐसी संतानों को सजा दिलाने में ये सोचकर सहयोग करें कि यदि पीडिता उनकी कोई अपनी होती तो वो अपराधी के साथ क्या व्यवहार करते ,साथ ही सकारात्मक संस्कार अपने आदर्श को समक्ष रखते हुए बच्चों को दिए जाएँ…
एक महत्वपूर्ण तथ्य और ऐसे अपराधी का केस कोई अधिवक्ता न लड़े ,समाज के सुधार को दृष्टिगत रखते हुए अधिवक्ताओं द्वारा इतना योगदान आधी आबादी के हितार्थ देना एक योगदान होगा.
एक महत्वपूर्ण तथ्य विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में विकास शील कहे जाने वाले और विकसित देश बनने की ओर अग्रसर भारत में आज भी खुले में शौच जाना एक कलंक है निश्चित रूप से सभ्य समाज के मस्तक पर .नई सरकार जहाँ महिलाओं को प्रधानता दे रही है,सर्वप्रथम इस समस्या की और ध्यान देना होगा ,विकास की ओर नई सरकार का महत्वपूर्ण कदम होगा .
इसके अतिरिक्त भी कठोरतम क़ानून ,त्वरित न्याय,जिसके अंतर्गत ऐसी व्यवस्था हो कि न्याय अविलम्ब हो. सशस्त्र महिला पुलिस की संख्या में वृद्धि,अपनी सेवाओं में लापरवाही बरतने वाले पुलिस कर्मियों का निलंबन ,सी सी टी वी कैमरे ,निष्पक्ष न्याय मेरे विचार से सरकारी उपाय हो सकते हैं.जब तक हमारे देश में न्यायिक प्रक्रिया इतनी सुस्त रहेगी अपराधी को कोई भी भय नहीं होगा,सर्वप्रथम तो इस मध्य वो गवाहों को खरीद कर या अन्य अनैतिक साधनों के बल पर न्याय को ही खरीद लेता है .अतः न्यायिक प्रक्रिया में अविलम्ब सुधार अपरिहार्य है., अन्यथा तो आम स्मृतियाँ धूमिल पड़ने लगती हैं और सही समय पर दंड न मिलने पर पीडिता और उसके परिवार को तो पीड़ा सालती ही है,शेष कुत्सित मानसिकता सम्पन्न अपराधियों को भी कुछ चिंता नहीं होती.दंड तो उसको मिले ही साथ ही उस भयंकर दंड का इतना प्रचार हो कि सबको पता चल सके.
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