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कांवड़ यात्रा ……..महापर्व,आस्था का चरम

chandravilla
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SHIVA3

सावन का पवित्र माह.देश भर में मनाये जाने वाले पर्व गुरु पूर्णिमा से (व्यास पूर्णिमा) प्रारम्भ .और बम बम भोले की गूँज,चहुँ ओर शिवमय वातावरण .श्रावण मास का शुभारम्भ होते ही भगवान भोले जो आशुतोष अर्थात शीघ्र प्रसन्न होने वाले हैं,को प्रसन्न करने का विधान प्रारम्भ हो जाता है.घरों में भी प्राय श्रद्धालु शिवालयों में जाकर सावन मास में भगवान शिव का जलाभिषेक,दुग्धाभिषेक,करते हैं.. कोई सम्पूर्ण माह व्रत रखता है तो कोई सोमवार को, परन्तु सबसे महत्पूर्ण आयोजन है ये  कठिन यात्राएँ जिनका गंतव्य शिव से सम्बन्धित देवालय होते हैं.
कैलाश मानसरोवर ,अमरनाथ यात्रा,शिवजी के द्वादश ज्योतिर्लिंग (जो विभिन्न राज्यों में स्थित हैं) कांवड़ यात्रा.आदि ……………..कैलाश मानसरोवर की यात्रा बहुत महंगी होने के कारण तथा अति दुष्कर होने के कारण सबकी सामर्थ्य में नहीं होती.अमरनाथ यात्रा भी दूरस्थ होने के कारण इतनी सरल नहीं है,परन्तु कांवड़ यात्रा की बढ़ती लोकप्रियता ऩे सभी रिकार्ड्स तोड़ दिए हैं.इलाहबाद,,वाराणसी,बिहार नीलकंठ (हरिद्वार),पुरा महादेव (पश्चिमी उत्तरप्रदेश) हरियाणा ,राजस्थान के देवालय आदि…….. सम्पूर्ण भारत में भगवान् शिव का जलाभिषेक करने के लिए भक्त अपने कन्धों पर कांवड़ लिए हुए (कांवड़ में कंधे पर बांस तथा उसके दोनों छोरों पर गंगाजली रहती है) गोमुख (गंगोत्री) तथा अन्य समस्त स्थानों पर जहाँ भी पतित पावनी गंगा विराजमान हैं,से जल लेकर अपनी यात्रा के लिए निकल पड़ते हैं.कांवड की जानकारी उस प्रसंग से प्राप्त होती है,जबकि मात-पितृ भक्त श्रवन कुमार अपने नेत्रहीन माता-पिता को कांवड में बैठकर तीर्थयात्रा के लिए ले गया था.
उत्तर भारत में विशेष रूप से पश्चिमी उत्तरप्रदेश में गत २० वर्षों से अधिक समय से कांवड़ यात्रा एक पर्व कुम्भ मेले के समान एक महा आयोजन का रूप ले चुकी है..अपनी श्रद्धा के अनुरूप सर्वप्रथम अपनी सामर्थ्य,समय ,अपने गंतव्य की दूरी के अनुसार गंगोत्री या हरिद्वार ,ऋषिकेश से जल लेने के लिए बस,ट्रेन आदि से भक्त लोग पहुँचते हैं.हरिद्वार में सर्वाधिक अनवरत मानव प्रवाह रहता है. मानो प्रतिवर्ष सावन माह में एक कुम्भ का मेला हो  .गंगा स्नान के पश्चात जल भर कर पैदल यात्रा सम्पन्न की जाती है
kanwad starting,स्त्री,पुरुष,बच्चे ,प्रौढ़ परस्पर एक दूसरे को भोला या भोली कहकर ही सम्बोधित करते हैं.कांवड़ ले जाने के पीछे अपना संकल्प है कुछ लोग “खडी कांवड़ ” का संकल्प लेकर चलते हैं,वो जमीन पर कांवड़ नहीं रखते पूरी यात्रा में.पूर्ण रूपेण शाकाहारी भोजन,मदिरा आदि का सेवन न करना भी इनके विधान में रहता है.पैरों में पड़े छाले,सूजे हुए पैर,केसरिया बाने में सजे कांवड़ियों का अनवरत प्रवाह चलता ही रहता है   अहर्निश kanwad 3! स्थान -स्थान पर स्वयमसेवी संगठनों द्वारा  कांवड़ सेवा शिविर आयोजित किये जाते हैं,जिनमें निशुल्क भोजन,जल,चिकित्सा सेवा,स्नान विश्राम आदि की व्यवस्था रहती है.मार्ग स्थित स्कूलों,धर्मशालाओं ,मंदिरों में विश्राम करते हुए ये कांवड़ धारी ,रास्ते में स्थित शिवमंदिरों में पूजार्चना करते हुए नाचते गाते , “बम बम बोले बम ” भोले की गुंजार के साथ शिवरात्रि (श्रावण कृष्णपक्ष त्रयोदशी +चतुर्दशी) को जलाभिषेक करते हैं देश के अन्य स्थानों में किसी न किसी न किसी रूप में सम्पूर्ण श्रावण मास में ऐसे ही विशिष्ठ आयोजन रहते हैं..
श्रावण मास की शिवरात्रि के पर्व से लगभग १० -१२ दिन पूर्व से चलने वाला यह जन सैलाब आस्था,श्रद्धा विश्वास के सहारे ही अपनी कठिन थकान भरी यात्रा पूरी करता है .अपने परिवार से दूर , कभी उमस भारी भीषण गर्मी तो कभी निरंतर वर्षा के कारण जल भरे सड़कें ,गड्ढे ,भीग कर वायरल ,आई फ्लू ,पेचिश,अतिसार आदि रोगों की मार भी डिगा नहीं पाती इनको.
अंतिम दो दिन ये यात्रा अखंड चलती है जिसको डाक कांवड़ कहा जाता है.निरंतर जीप,वैन ,मिनी ट्रक ,गाड़ियाँ,स्कूटर्स,बाईक्स आदि पर सवार भक्त अपनी यात्रा अपने घर से गंतव्य स्थान की दूरी के लिए निर्धारित घंटे लेकर चलते हैं.और अपने इष्ट के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं.बहुत सी कांवड़ तो बहुत ही विशाल होती हैं जिनको कई लोग उठाकर चलते हैं.

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इतने लम्बे समय तक चलने वाले इस आयोजन के कारण आमजन को कठिनाई होनी स्वाभाविक हैं.१० -१२ दिन पूर्व दिल्ली हरिद्वार हाई वे बंद हो जाता है,बस व निजी वाहनों अथवा सड़क मार्ग से जाने वाले यात्रियों को बहुत लम्बे मार्ग से चक्कर काट कर जाना पड़ता है,सभी वाहन गाँव आदि से हो कर निकलते हैं,खराब सड़कों व लम्बे मार्ग के कारण न केवल किराये बढ़ने का कष्ट समय की बर्बादी आमजन को झेलनी पड़ती है ऐसे में यदि किसी को चिकित्सा के लिए दिल्ली आदि जाना है या किसी आवश्यक कार्यवश तो सड़क मार्ग से जाना तो एक प्रकार से असंभव सा ही रहता है…………..सब्जियों फल आदि .के दाम आसमान छूने लगते हैं.स्कूल ,कालेज आदि सब में अवकाश घोषित कर दिया जाता है.यहाँ तक कि रिक्शा तथा छोटे वाहनों को भी उन रास्तों से जाने पर प्रतिबंध रहता हैं,जहाँ से कांवड़ लिए भक्त निकलते हैं.दैनिक उपभोग की वस्तुएं न आ सकने के कारण कठिनाई झेलनी पड़ती है सम्पूर्ण जीवन ठहर सा जाता है..स्कूल कालेज जो जुलाई के प्रथम सप्ताह में प्रारम्भ होते हैं ,पुनः लगभग एक सप्ताह के लिए बंद हो जाते हैं.अतः शिक्षण कार्य ठप्प रहता है.
कांवड़ लिए भक्तों के वेश में प्राय असमाजिक तत्व भी इस यात्रा में सम्मिलित हो जाते हैं,आतंकवादी तत्वों का खतरा भी निरंतर बना रहता है असामाजिक तत्वों के मदिरापान आदि करने के कारण मार-पिटाई, लडाई -झगडे आदि हो जाते हैं,,छोटी छोटी बातों पर उग्र हो जाना,तोड़-फोड़ मचाना आदि कुछ असामाजिक तत्वों का ही काम होता है.जिसके कारण व्यवस्था संभालनी कठिन हो जाती है.
प्रश्न उत्पन्न होता है कि धार्मिक आस्था से जुड़े इस पर्व और यात्रा को मनाने के लिए क्या व्यस्थाएं की जाएँ कि कठिनाई से राहत मिले और जनजीवन भी ठप्प न हो.मेरे विचार से एक निर्धारित मार्ग कांवड़ यात्रा के लिए होना चाहिए(यद्यपि प्रतिवर्ष ऐसी घोषणा की जाती है की जाती है),केवल उसी मार्ग से  उनके जाने की यदि व्यवस्था रहेगी तो जन सामान्य को तो कठिनाई से बचाया जा सकता है,स्कूल ,कालेज बंद होने के कारण विद्यार्थियों की पढाई में व्यवधान से भी बचा जा सकता है.
स्थान स्थान पर चैकिंग की व्यवस्था से असमाजिक तथा आतंकवादी गतिविधियों से भी रक्षा हो सकती है.गत वर्ष  समाचार पत्र से पता चला था कि मेरठ के किसी व्यवसायी को २ करोड़ रु का प्रस्ताव ईरान से दिया गया है बम विस्फोट कराने के लिए.निश्चित रूप से लाखों लोगों की भावना से जुड़े इस आयोजन में बाधा डालकर रक्त रंजित होली खेलने के इन कुत्सित मंसूबों को ध्वस्त किया जाना जरूरी है.
प्रतिवर्ष भक्तों की बढ़ती भीड़ के कारण पुलिस अधिकारियों तथा कर्मचारियों की अतिरिक्त व्यवस्था होती हैधन  भी व्यय होता है,और कांवडियों के भेष में असामाजिक तत्वों का प्रवेश हो जाने से अनहोनी की आशंका बनी रहती है..बधाई के पात्र तो पुलिस कर्मचारी व अधिकारी हैं ही परन्तु सावधानी हटी और दुर्घटना घटी ,दुर्घटना भी कोई सामान्य नहीं न जाने कितनों की बलि लेने वाली.भोले नाथ रक्षा करें.बोलो बम .ईश्वर करे भगवान् भोले इन आतंकवादियों,असामाजिक तत्वों का समूल नाश कर हमारे देश को स्वस्थ,समृद्ध तथा सत्पथानुगामी बनाएं.

(इस आलेख को गत वर्ष भी प्रकाशित किया था,पश्चिमी उत्तरप्रदेश में तो सभी जन इस आयोजन से परिचित हैं,परन्तु अन्य प्रान्तों के वासियों को इसकी जानकारी नहीं है,अतः कुछ नए तथ्यों को समाविष्ट कर प्रकाशित कर रही हूँ.)

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