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रैगिंग भविष्य निर्माण में साधक बने बाधक नहीं (एक सामयिक ज्वलंत समस्या )

chandravilla
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एक परिचित परिवार में बच्चे के १२ वीं कक्षा में टॉप करने तथा इंजीनीयरिंग की प्रवेश परीक्षा में उच्च रैंकिंग प्राप्त करने के कारण खुशी का माहौल था,परन्तु पढ़ाई-लिखाई में सदा अग्रणी रहने वाला बालक कुछ उदास था,कारण था उसके कुछ वरिष्ठ साथियों द्वारा बताये गये रैगिंग के कुछ रोंगटें खड़े कर देने वाले किस्से ,जिसके कारण उसकी चयन की सारी खुशी हवा हो गयी थी.उसकी चिंता का कारण उसके एक सहपाठी ऩे परिजनों को बताया तो बालक के साथ उसके परिजनों की चिंता भी बढ़ गयी. मैं भी बधाई देने गयी थी,उन लोगों को आश्वस्त करने का प्रयास भी किया,परन्तु सफल न हो सकी और लौट आई.

!रैगिंग का मेरा कोई व्यक्तिगत अनुभव तो नहीं है,.,परन्तु समाचारपत्रों,पत्रिकाओं ,टी.वी.तथा बच्चों से बात करने के कारण कुछ जानकारी थी थोडा बहुत पढने का प्रयास किया .सामान्य अर्थों में रैगिंग वरिष्ठ छात्रों द्वारा अपने कनिष्ठ साथियों या जूनियर्स को अपने साथ परिचित करने का एक साधन है.प्रवेश लेने के बाद उच्च शिक्षण संस्थानों में विशेष रूप से छात्रावासों में लम्बे समय तक परस्पर परिचय के नाम पर रैगिंग से सम्बन्धित गतिविधियाँ चलती हैं,और बाद में वरिष्ठ छात्रों द्वारा जूनियर्स को “वेलकम पार्टी” देने के साथ के सम्पन्न होती है

!रैगिंग के इतिहास पर यदि विचार किया जाय तो रैगिंग हेजिंग ,बुलईंग,फेगिंग,आदि विभिन्न नामों से विश्व के अनेक देशों में विद्यमान रही है.इसके सूत्रपात का इतिहास ग्रीक सभ्यता में मिलता है,जहाँ क्रीडा क्षेत्र में सर्वप्रथम नवप्रवेशियों को इस प्रक्रिया से गुजरना पड़ता था जिससे उनमें खेल भावना विकसित हो सके.तदोपरांत यह प्रक्रिया सैन्य क्षेत्र में पहुँची.और यहीं से शिक्षा के क्षेत्र में इसका प्रवेश हुआ.

!हमारे गुरुकुलों में रैगिंग के उदाहरण मिलते हैं उद्देश्य भिन्न रहा होगा परन्तु वरिष्ठ छात्रों द्वारा कनिष्ठ छात्रों के द्वारा अपना सेवासत्कार कराए जाने के कुछ उदाहरण मिलते हैं.पूर्व प्रसारित होने वाले धारावाहिक “चाणक्य ” में वरिष्ठ राजपुत्रों द्वारा एक छोटे परिवार से` सम्बन्ध रखने वाले चन्द्रगुप्त का उत्पीडन दिखाया गया और इन कृत्यों में १-२ शिक्षक भी राजपुत्रों का साथ देते हैं.

!भारत में इसका विधिवत प्रवेश तो अंग्रेजी शासन काल में सैन्य तथा पब्लिक स्कूल्स में मिलता है.इसके बाद छुटपुट घटनाएँ ही सुनने में आती थी.क्योंकि उच्च शिक्षा के विद्यार्थी कम ही होते थे.

.रेगिंग की परिभाषा जो न्यायालय द्वारा प्रदत्त है,इस प्रकार है,

Ragging is any disorderly conduct, whether by words spoken or written,aur by an act which has the effect of teasing, treating or handling with rudeness any student, indulging in rowdy or indisciplined activities

which cause or are likely to cause annoyance, hardship or psychological harm or to raise fear or apprehension there of in a fresher or a junior student and which has the effect of causing or generating a sense of shame or embarrassment so as to adversely affect the psyche of a fresher or a junior student

सैद्धांतिक रूप से यदि विचार किया जाय तो यह व्यवस्था अपने श्रेष्ठ रूप में छात्रों में सौहार्द बढ़ाने तथा अनौपचारिक बनने का बहुत अच्छा माध्यम है क्योंकि परिवार के बीच रहने वाले बच्चे ,जिनमें प्राय आत्मनिर्भरता कम तथा परिजनों पर निर्भरता अधिक होती है.नवीन माहौल में एक दूसरे के साथ दूरी मिटा कर हंसी मज़ाक में कुछ समय व्यतीत कर अपने भविष्य को स्वर्णिम बनाने के लिए आगे की पढ़ाई में जुट जाते हैं.परस्पर अनौपचारिक संबंधों के साथ यह समय बीत जाता है और नए दोस्तों के साथ नयी मंजिल प्राप्त करने का लक्ष्य रहता है.

!व्यवस्था का दूसरा पक्ष जो नवप्रवेशियों की भूख नींद उड़ाने वाला है बहुत भयावह है,जिसके कारण न जाने कितने मेधावी जिन पर परिजनों की आशाएं टिकी रहती हैं,अपने जीवन का अंत कर लेते हैं,कितने प्रवेश लेकर पूरी फीस जमाकर पढ़ाई बीच में छोड़ कर घर लौट आते हैं,कुछ अपनी परिस्थितिवश नैराश्य के गर्त में चले जाते हैं,कोई मनोवैज्ञनिक रोगों का शिकार बन जाता है,तो कुछ का पढाई से मन ही विरत हो जाता है.

! उच्च .शिक्षण संस्थाओं में तकनीकी शिक्षा संस्थानों में तथा कहीं कहीं १२वी कक्षा तक भी रैगिंग के उदाहरण मिलते हैं.सर्वाधिक भयावह रूप तो होस्टल्स में मिलता है.श्रीलंका तथा हमारे देश में रैगिंग का प्रचलन बहुत अधिक है.आंकड़ों के अनुसार श्रीलंका की स्थिति तो हमारे देश से भी अधिक चिंता जनक है.

!रैगिंग हंसी , मज़ाक, स्वस्थ मनोरंजन ,वरिष्ठ छात्रों के प्रति सम्मानजनक व्यवहार आदि से प्रारम्भ होकर अपने निम्नतम स्तर तक पहुँच चुकी है तथा यौन उत्पीडन सदृश घृणित कार्य,नशा कराया जाना,सिगरेट- शराब आदि का प्रयोग करने को बाध्य करना,रात भर सोने न देना,बाल, मूंछ-दाढी आदि मुंडवा देना,पैसे ऐंठना,माता -पिता तथा अपने परिजनों को गंदी गाली आदि देना, वस्त्र उतरवा कर चक्कर कटवाना ,एक पैर पर रात भर खड़ा रखना आदि .इतनी गतिविधियाँ मेरे संज्ञान में हैं, संभवतः और भी ऐसे कृत्य रहते होंगें जिसके कारण नव छात्रों की रूह काँप जाती है छात्र अपने बहुमूल्य जीवन का अंत कर लेते हैंरेगिंगमनोरोगों का शिकार हो जाते हैं,नशा करने लगते हैं,प्रतियोगिताओं के माध्यम से मेरिट लिस्ट में स्थान प्राप्त करने वाले छात्र पिछड़ जाते हैं पढाई में..इसके अतिरिक्त ये समस्त कार्यक्रम इतने लम्बे समय तक चलता है कि छात्रों में तनाव का वातावरण रहता है.
!समस्या के विकराल स्वरूप को देखते हुए ही अधिकांश राज्यों ऩे रैगिंग को प्रतिबंधित किया है,यहाँ तक कि एक मेडिकल छात्र काचरू की आत्महत्या के बाद तो सुप्रीम कोर्ट द्वारा भी बहुत कठोर नियम लागू किये गये .नियम निर्धारित किया गया कि रैगिंग की सूचना मिलने पर समस्त संस्थान प्रशासन को ही दोषी माना जाएगा. ,विद्यालयों की आर्थिक सहायता रोकी जायेगी संस्थान की मान्यता भी समाप्त की जा सकती है.. विभिन्न रैगिंग के दोषी छात्रों को ५ साल के लिए दंड के रूप में निष्कासित किया जाने अन्य किसी भी` संस्थान में प्रवेश पाने पर प्रतिबन्ध लगाए जाने की व्यवस्था की गयी है.

.विद्यालयों में प्रवेश के समय स्वयं विद्यार्थियों तथा माता-पिता द्वारा शपथपत्र भी भरवाए जाते हैं ,आश्चर्य तो इस बात का है कि केवल लड़कों द्वारा ही नहीं लड़कियों के कालेजों में भी रैगिंग धडल्ले से` चलती है.और इन सबसे महत्वपूर्ण विषय है कि जो छात्र इस प्रक्रिया की आलोचना करते हैं अगले वर्ष अपने जूनियर्स को प्रताड़ित करने में वो अग्रणी होते हैं.

दुर्भाग्य से राज्य उच्च न्यायालयों तथा सुप्रीम कोर्ट के कठोर रुख अपनाने पर भी रैगिंग की घटनाएँ नियंत्रण में नहीं आ रही हैं.गत वर्ष भी आई आई टी ,मेडिकल कालेज ,निजी शिक्षा संस्थानों से रैगिंग के पीड़ित छात्रों की आत्महत्या,कालेज छोड़ने के समाचार प्रकाशित हुए.

प्रश्न उत्पन्न होता है कि उच्च शिक्षा की व्यवस्था में रैगिंग को रोकने के लिए क्या उपाय किये जाएँ कि यह अभिशाप या भूत छात्रों के भविष्य निर्माण में बाधक नहीं साधक बने..

.मेरे विचार से इस संदर्भ में तकनीकी शिक्षा में प्रवेश के साथ सभी सम्बन्धित छात्रों को रैगिंग विषयक साहित्य बांटा जाय जिसमें इसके दुष्प्रभावों,तथा कठोर दंड आदि के प्रावधानों का जिक्र हो.नव प्रवेशी छात्र को पूर्ण गारंटी हो कि उसके शिकायत करने पर उसका नाम गुप्त रखा जाएगा. उनके ऊपर प्रमाण उपलब्ध करने की इतनी कड़ी बाध्यता न हो (प्रमाण कैसे जुटा सकता है,पीड़ित छात्र,जहाँ वह अकेला हो और शेष पूरी फौज सीनियर्स की) .विद्यार्थियों सीनियर्स तथा जूनियर्स एव शिक्षक पोलिस प्रशासन तथा कालेज प्रशासन के लोगों के पृथक पृथक दल बनाये जाएँ जो नियम से रात के समय विशेष रूप से चेकिंग करें.प्रथम वर्ष के छात्रों के होस्टल अनिवार्य रूप से दूर हों तथा पृथक हों.(यद्यपि कुछ स्थानों पर शिक्षण संस्थानों में ऐसी व्यवस्था है).मोबाईल्स आदि पर भी कुछ कठोर नियम अपनाए जाने जरूरी हैं. साथ ही वरिष्ठ छात्रों के लिए कुछ प्रोत्साहन प्रदान किये जाएँ.

परिवार द्वारा प्रदत्त संस्कार महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह कर सकते हैं परन्तु आज तो संस्कार उपहास का विषय बन रहे हैं.

अपनी जानकारी के अनुसार मेरे द्वारा इस समस्या के समाधान स्वरूप कुछ उपाय सुझाए गये हैं यदि ऐसे ही कुछ अन्य सुझाव मिल सकें तो संभवतः हमारे भविष्य निर्माताओं को इस कहर से मुक्ति मिल सके. रैगिंग स्वस्थ रूप में परिचय प्रगाढ़ करने का साधन बन सके.

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