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इनको अपनापन चाहिए (मंद बुद्धि बच्चे) (अंतर्राष्ट्रीय विकलांग दिवस पर )

chandravilla
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विकलांगता शारीरिक हो या मानसिक एक विडंबना ही है,शारीरिक विकलांगता की स्थिति में कुछ सीमा तक पुनर्वास संभव है परन्तु मानसिक विकलांगता तो पीड़ित और उसके परिजनों के लिए संवेदनशील समस्या है.

मानसिक विकलांग बच्चों पर एक लेख

किसी भी परिचित के यहाँ पहुँचने पर उस परिवार का कोई बच्चा उपेक्षित दिखे तो कुछ अजीब अनुभूति होती है,,परन्तु ये कुछ अप्रत्याशित नहीं घर में किसी अविकसित मस्तिष्क ,मंदबुद्धि या मानसिक विकृति वाले बच्चे के साथ ऐसा व्यवहार प्राय परिवारों में होता है.यहाँ तक कि प्रताड़ना भी की जाती है,और यदि उसके माता-पिता नहीं है,तो स्थिति और भी गंभीर हो जाती है.अपने देश की की ही यदि बात करें तो हमारे देश में एक अनुमान के अनुसार प्रति 10 बच्चों में एक अविकसित मस्तिष्क या अपंगता से पीड़ित है.पिछले दिनों कुछ ऐसे मामले पता चले जहाँ सम्पत्ति के लोभ में ऐसे बच्चों को किसी किसी न रूप में जीवन से वछित कर दिया जाता है.मानवजीवन की ये एक जटिलतम और दुखपूर्ण समस्या है.यथार्थ तो ये है कि मानव जीवन जहाँ गुणों का भण्डार हो सकता है,वहीँ स्वार्थ का पुतला,अहंकारी आदि आदि……….
्वार्थ = स्व+अर्थ अर्थात अपने लिए .परिभाषा के रूप में देखें तो अपने सोचना,कुछ करना ,अपने लाभ के लिए चिंतनशील रहना मानवीय दृष्टि से एक स्वाभाविक या नैसर्गिक क्रिया है,परन्तु जब स्वार्थ +दुर्भावना का कुसंयोग हो और मानव अपने हित के लिए किसी भी चरम पर पहुँच जाय ,मानवता को ही विस्मृत कर बैठे तो मानव’, मानव नहीं दानव बन जाता है और फिर उसके लिए किसी रिश्ते नाते को मोल नहीं रहता .ऐसे उदाहरण अब प्राय प्रतिदिन सुनने को मिलते हैं.परन्तु मानव ये भुलादेता है कि विधाता के दिए गये किसी दंड स्वरूप ही शायद पीड़ित बच्चा या व्यक्ति एक शिक्षा है ,एक सबक है हर उस व्यक्ति के लिए जो स्वयं को स्वयंभू मान बैठता है,कहा गया है :उसकी लाठी में आवाज़ नहीं होती ;
परमात्मा
की सभी कृतियों में मानव को श्रेष्ठ माना गया है.मानव जीवन में विलक्षण विशेषताएं होना स्वाभाविक है.परिवार में शिशु के आगमन की कल्पना से प्रसन्नता का पारावार नहीं रहता , बच्चे से ,अपने अपने सम्बन्ध के अनुसार सबके ह्रदय में नयी नयी कल्पनाएँ उमंगें होती हैं.जन्म के पश्चात जहाँ परिवारों में अपनी सामर्थ्य के अनुरूप खुशियाँ मनाई जाती हैं वहां कुछ परिवारों में सम्पूर्ण उत्साह विलुप्त हो जाता है जब बच्चे में कोई गंभीर शारीरिक या मानसिक विकृति दृष्टिगोचर होती है. कुछ शारीरिक विकृति तो प्राय एक दम दिख जाती हैं,परन्तु कुछ का पता तो कुछ समय पश्चात ही चल पाता है.मानसिक विकृतियाँ तो कुछ और अन्तराल के पश्चात ही संज्ञान में आ पाती हैं,यथा अविकसित मस्तिष्क ,मंद बुद्धि या फिर विक्षिप्त .विकलांगता से प्रभावित कुछ बच्चों का तो आंशिक या पूर्ण उपचार संभव होता है,और कुछ के लिए तो चिकित्सक भी हाथ खड़े कर देते हैं,और प्रकृति की मार से पीड़ित इन बच्चों व इनके माता-पिता का अपना जीवन भी अभिशाप बन जाता है.
आजीवन प्रयत्नशील रहकर ऐसे बच्चों के उपचार में अपना तन-मन-धन सबकुछ लुटा कर भी माता-पिता यथासंभव सामान्य जीवन जीने योग्य बनाने के लिए प्रयत्नशील रहते हैं.कष्ठप्रद स्थिति तो वह होती है,जिसमें या तो उपचार संभव नहीं या माता-पिता की सामर्थ्य नहीं .शारीरिक विकलांगता प्राय कुछ मामलों में तो दूर भी हो जाती है या यथासंभव आत्मनिर्भर बनाया जा सकता है. परन्तु मानसिक विकलांगता तो और भी अधिक कष्ठ्प्रद है.विडंबना के शिकार ये बच्चे स्वयं तो अभिशप्त जीवन व्यतीत करते ही हैं,इनके माता-पिता भी आजीवन इसी चिंता में व्यथित रहते हैं,क्या होगा उनके बाद इनका.
शारीरिक विकलांगता में तो दृष्ठि हीनों के लिए,मूक वधिरों के लिए या फिर हाथ पैरों की विकलांगता से पीड़ित बच्चों के लिए व्यवस्थाएं हैं,परन्तु इन अभिशप्त बच्चों के लिए कुछ नहीं.घर से बाहर इनको कुछ सहृदय लोग दया दृष्टि से देखते हैं परन्तु अधिकांश लोग तो मज़ाक उड़ाते हैं और अवसर मिलने पर पत्थर आदि मारने से चूकते नहीं.घर में इनको बेकार समझकर उपेक्षित व्यवहार होता ही है

.मेरे अपने किसी घनिष्ठ रिश्तेदार की बेटी ऐसे ही अल्पविकसित मस्तिष्क की समस्या से पीड़ित है,शेष उसके चार बहिन भाई सामान्य है.माता-पिता ने यथासंभव उसके उपचार के भी प्रयास किये ,सरकारी सेवा में रत होने के कारण उनको चिकित्सा सुविधा उपलब्ध थी .आज उनकी बेटी लगभग 40वर्ष की है,परंतु आत्म निर्भर नहीं.सम्पत्ति में उसके लिए बड़ा भाग भी उन्होंने सुरक्षित रखा है,परन्तु उसके भविष्य के विषय में वो राहत की सांस नहीं ले पा रहे हैं और यही उनकी चिंता का कारण है.यद्यपि उनका कथन है उनकी शेष चार संतानों में जो भी उसके प्रति उत्तरदायित्व का निर्वाह उनके पश्चात करेगा,अपनी सम्पत्ति में से उसको अतिरिक्त भाग भी वो देंगें,परन्तु आश्वस्त नहीं हो पा रहे हैं,उनका कहना है,समस्या तो ऐसी स्थिति में लड़का या लडकी दोनों के साथ है,परन्तु लडकी होने के कारण उसको समाज के भेडियों से भी बचाया जाना आवश्यक है.अतः किसी केंद्र में भेजना भी इतना सरल नहीं.
मंद बुद्धि बच्चों के लिए बनाये गये केन्द्रों की यदि बात की जाय तो .सर्वप्रथम तो हमारे देश में ऐसे केंद्र बहुत अधिक नहीं जहाँ उनको स्थान मिल सके,और सरकार द्वारा स्थापित ऐसे केंद्र तो अव्यवस्था व भ्रष्टाचार के गढ़ हैं. और यदि कुछ निजीसंस्थाओं द्वारा चलाये गये संस्थान या केंद्र हैं भी तो वहां का व्यय इतने अधिक हैं कि वहां का व्यय एक सामान्य आय वाले व्यक्ति के लिए वहन करना संभव नहीं होता. ऐसे बच्चों का .शारीरिक श्रम आदि न करने के कारण उनका शरीर तो बढ़ता है पर मस्तिष्क नहीं,आयु बढ़ने के साथ उनको कई बार अन्य रोग भी परेशान करते हैं.
समस्या तो विकराल है पर समाधान नहीं सूझता.मेरे विचार से यदि समय रहते यथासंभव उपचार इन बच्चों को भी मिले तो कुछ सीमा तक उनमें सुधार लाया जा सकता है.इसी प्रकार कुछ ऐसे केंद्र जो समाजसेवा की भावना से सम्पन्न लोग चला सकें तो वहां ऐसे बच्चों में सामाजिकता के साथ सुधार भी होता है.ऐसा ही एक केंद्र है,pathway जो एक महानुभाव द्वारा एक एन,जी ओ के रूप में संचालित किये जा रहे हैं.जिनका ध्येय है ,””Every individual should be given the opportunity to utilize their potential in order to live with dignity and self-respect, regardless of mental or physical limitations”, Pathway seeks to serve the poorest of the poor by providing the best ”
2बच्चों के साथ 1975 में प्रारम्भ किया गया ये केंद्र आज लगभग 22000से भी अधिक पीड़ित जनों की सेवा कर रहा है.यहाँ पर विशेष थेरेपीज द्वारा ऐसे पीड़ितों का उपचार होता है,और उनको आत्मनिर्भर बनाने के प्रयास भी किये जाते हैं प्रशिक्षण के माध्यम से.
मात्र इतने प्रयास पर्याप्त नहीं ., ,ऐसे पीड़ितों के पुनर्वास पर विचार करना सबका ही धर्म है. साथ ही परिवार में यदि कोई सदस्य ऐसा है तो उसके प्रति संवेदनशीलता को बनाये रखना मानवता के नाते आवश्यक है. .

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