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विश्व जल दिवस प्रतिवर्ष २२मार्च को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मनाया जाता है.इसी दिवस पर छोटा सा प्रयास हम सभी के जागृत होने के लिए ………….
जल अकाल
संकट मेघ छाए
चेतो इंसान
धरती माता की यह दुर्दशा ! कोई आश्चर्यजनक ,अद्भुत नहीं.सांस्कृतिक ,भौगौलिक विविधताओं के देश भारत में शस्य-श्यामला धरती तथा इसके विपरीत उपरोक्त स्थिति सामान्य है.सूखे या दुर्भिक्ष के कारण भुखमरी,मृत्यु का तांडव ,कृषक भाइयों द्वारा आत्महत्याएँ आदि समाचार हम सभी सुनते हैं.विशाल क्षेत्रफल से युक्त राजस्थान के हिस्से में मात्र १% पानी बताया जाता है.पानी का मोल शायद हम सभी जानते हैं.पानी के महत्त्व को जानने के लिए एक छोटे से उदाहरण से बात प्रारम्भ करती हूँ. ! हम सभी ऩे भिश्ती का नाम सुना होगा,फिर भी संभवतः स्थानीय भाषा की विविधता के कारण समझने में कठिनाई न हो,अतः. स्पष्ट कर दूं भिश्ती एक कर्मचारी होता था जिसकी पीठ पर एक चमड़े का थैला होता है,जिसमें पानी भरा होता है.अधिक नहीं थोड़ी ही पुरानी बात है,जब कि भिश्ती लोग उस थैले के पानी से छिडकाव करते थे, छोटे बच्चे खेलते समय उसकी नक़ल भी करते थे.अब संभवतः वो परम्परा शहरों में समाप्तप्राय है.ये संदर्भ देने का कारण यह है कि मानव शरीर भी ऐसी ही पानी एक थैली है,शरीर में पानी ७५% के लगभग है ,अर्थात शरीर की जटिल संरचना में जल की भूमिका का अनुमान हम लगा सकते हैं.जीवन के लिए प्रमुख अत्यावश्यक तत्वों में वायु,जल व भोजन हैं परन्तु जल व वायु के बिना जीवन कुछ क्षण भी व्यतीत करना असंभव है
जल की जीवन में अनिवार्यता का अनुमान तो तब लगाया जाता है,जब कंठ सूख रहा हो और पानी की बूँद-बूँद के लिए हम तरस रहे हों,कंठ से नीचे पानी की बूँद पहुँचते ही जो राहत प्राप्त होती है,उसका अनुमान हम सबको है.राजस्थान में तपती बालू पर चलते समय व्यक्ति सबसे पहले पानी की व्यवस्था करके चलता है.कहा जाता है रेगिस्तान के जहाज ऊँठ के शरीर में पानी की थैली होती है,जिसके कारण वह भीषण ग्रीष्म में अपनी पीठ पर वजन लादे मंथर गति से दुष्कर और प्राण हारिणी यात्रा पर जाता है.कहानियों में विवरण आता है कि प्राचीन काल में जब रेगिस्तान में चलते चलते पानी नहीं मिल पता था तो ऊँठ को मारकर उसके तन से पानी की थैली निकाल कर काम चलाया जाता था.
.पानी के इस महत्त्व के कारण समस्त प्राचीनतम सभ्यताओं का विकास नदियों के तट पर हुआ और प्राय उन सभ्यताओं का नामकरण नदियों के नाम पर है.जल के ही माध्यम से यात्रायें,व्यापार ,भोजन ,विविध उद्योग ,विध्युत तथा सभी प्रकार का विकास संभव है,तो हमारी भौगौलिक परिस्थितियों का मूल जल है.आंकड़ों के अनुसार पृथ्वी का ७० .७८% भाग जल से आच्छादित है शेष २९.२२%भाग स्थलीय या शेष संरचनाओं से युक्त है.परन्तु क्या विडंबना है कि जल का ही सर्वाधिक अभाव है या कहा जा रहा है कि अगले विश्व युद्ध का मूल कारण जल होगा ,जल के लिए तरसेगी मानवता ,अर्थात जल का भीषण अभाव,प्रदूषित जल……….
जल के घटते स्तर का प्रमुख कारण ग्लोबल वार्मिंग को बताया जाता है,वनों का सफाया,वर्षा का अभाव या आवश्यकता से कम होना या फिर अतिवृष्टि के कारण विनाश.बढ़ती आबादी,उपलब्ध संसाधनों का अनियोजित दोहन या उपलब्ध साधनों का प्रयोग ही न होना.
सरकार द्वारा जल के समुचित प्रयोग ,संरक्षण पर योजनायें बनती हैं,पानी की तरह धन बहाया जाता है,योजनाओं के निर्माण में, परन्तु सब निरर्थक.कारण? सरकारी प्रयासों से भी अधिक हमारी स्वार्थपरता तथा देश व मानवता के प्रति अपना कर्तव्य न समझना ,असलियत हम सभी लोग प्राय एक ही मानसिकता से ग्रस्त हैं,”जब तक संकट अपने सर पर नहीं चेतने की कोई जरूरत नहीं,” समय समय पर जापान सदृश त्रासदियाँ हम देखतें हैं,परन्तु कुछ समय वो विषय जीवंत रहते हैं और फिर वही ढर्रा ………..
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