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जीवन जरूरी है तंबाखू नहीं (विश्व तम्बाखू निषेध दिवस 31 मई पर एक आलेख)

chandravilla
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विश्व तम्बाखू निषेध दिवस 31 मई पर एक आलेख

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,”बड भाग मानुष तन पावा “.इस अनमोल जीवन को संजो कर रखने के लिए  सदा प्रयासरत होना आवश्यक है .जीवन के लिए संकट उत्पन्न करने वाले अन्य कारकों के साथ एक महत्वपूर्ण कारक है तम्बाखू का बढ़ता प्रचलन ,जिसका प्रवेश किसी न किसी रूप में हर घर में हो रहा है.(अपवाद सर्वत्र हैं )

तम्बाखू का प्रयोग कब से प्रारम्भ हुआ है,इसका प्रमाणिक  इतिहास तो उपलब्ध नहीं हो सका,परन्तु प्राप्त जानकारी के अनुसार किसी न किसी रूप में इसका प्रयोग होता रहा है,हुक्का ,बीडी,सिगरेट,सिगार,गुटखा,तम्बाखू पान में ,चूने आदि के साथ .समस्त विश्व में इसके अत्याधिक प्रयोग से मानव घातक रोगों का शिकार बन रहा है .आईये देखते हैं………

_तम्बाखू और धूम्रपान  तम्बाखू से सम्बंधित कुछ तथ्य :-

* सबसे पहले कोलंबस ने १४९२ में दक्षिण_अमेरिका के निवासियों को धूम्रपान करते देखा था.

*भारत में इसका सेवन १६ वीं शताब्दी में शुरू हुआ.

*विश्व में लगभग  ११० करोड़ लोग धूम्रपान करते हैं.

*विश्व में प्रतिवर्ष  लगभग 50000करोड़ सिगरेट और 8000 करोड़ बीडियाँ फूंकी जाती हैं.

*धूम्रपान से हर 8 सेकंड में एक व्यक्ति की म्रत्यु हो जाती है.

* 50लाख लोग हर साल अकाल काल के गाल में समा जाते हैं.

*सिग्रेट के धुएं में4000 से अधिक हानिकारक तत्व और 40  से अधिक कैंसर उत्पन्न  करने वाले पदार्थ होते हैं.

*भारत में मुहँ का कैंसर विश्व में सबसे अधिक पाया जाता है और 90% तम्बाकू चबाने से होता है.

धूम्रपान और तम्बाकू से होने वाली हानियाँ :-*हृदयाघात, उच्च रक्त चाप, कोलेस्ट्रोल का बढ़ना, तोंद निकलना, मधुमेह , गुर्दों पर दुष्प्रभाव . *स्वास रोग _ टी बी , दमा, फेफडों का कैंसर ,गले का कैंसर आदि. * पान मसाला और गुटखा खाने से मुहँ में सफ़ेद दाग, और कैंसर होने की अत्याधिक संभावना बढ़ जाती है.( आंकडें नेट से लिए गए हैं )

दुखद तो यह है कि आज भी इसका प्रयोग दिन प्रतिदिन बढ़ रहा है.निर्धन वर्ग हो या धनाढ्य बचपन भी इसकी गिरफ्त में है.इसका कारण होता है, बड़ों को,साथियों को या अपने प्रिय अभिनेता व अभिनेत्रियों को  धुआं उड़ाते  देख  शौक में इसका आनंद लेने का प्रयास और फिर आदि हो जाना. कई बार तो किशोरावस्था में साथी बच्चे जोश दिलाकर इसका  आदि बनाते है,अधजली सिगरेट बीडी से ये लत शुरू होती है  बच्चे घर से बाहर शौचालयों आदि में छुप कर इसका प्रयोग करते हैं. बुजुर्गों या अन्य परिजनों द्वारा  बच्चों से बाज़ार से सिगरेट मंगवाना भी इस शौक के प्रारम्भ के लिए उत्तरदायी होता है.छात्रावास आदि में रहने वाले बच्चे इसका सर्वाधिक शिकार होते हैं.जो तनाव को कम करने के नाम पर इससे मुक्त नहीं हो पाते.

भारत में लगभग 57 प्रतिशत पुरूष और 11 प्रतिशत महिलाएं तम्बाखू उत्पादों का सेवन करते हैं,कुछ राज्यों में तो पूरे देश की औसत से अधिक  तम्बाखू का सेवन हो रहा है.नेट के आंकड़ों के अनुसार तो  भारत में तम्बाखू से लगभग  8 हजार करोड़ से अधिक  रूपए का राजस्व प्राप्त होता है, जबकि तम्बाखू की वजह से होने वाली बीमारियों  के इलाज पर प्रतिवर्ष 30 हजार करोड़ से अधिक  रुपया  खर्च होता है। यदि तम्बाखू के सेवन और इसके उत्पादन पर नियंत्रण किया जाता है तो लोगों के स्वास्थ्य के साथ ही अर्थव्यवस्था भी सुदृढ़ होगी। ।परन्तु हमारी कल्याणकारी सरकार को राजस्व की चिंता है जबकि उससे कई गुना अधिक  स्वास्थ्य सेवाओं पर व्यय हो रहा है,परन्तु इस विषय में चिंतन करने का समय किसी के पास नहीं , तम्बाखू लाबी  का बढ़ता वर्चस्व राजस्व और जनता के स्वास्थ्य से अधिक मूल्यवान है,क्योंकि मोटी कमाई होती है. और जनता ! वो तो बेखबर है सारी चेतावनियों के बाद भी,यही कारण ही कि तम्बाखू के आदि किसी न किसी रूप में सभी हो रहे हैं. धूम्रपान की सबसे बड़ी हानि है कि अन्य लोगों के स्वास्थ्य को भी हानि पहुंचाता है,जिनके शरीर  में धुंए का प्रवेश अनचाहे होता है

सिगरेट के बाद गुटखा एक आम शत्रु है स्वास्थ्य का .

तम्बाखू के प्रयोग के संदर्भ  में भारत का स्थान विश्व में तीसरा है.नेट के आंकड़ों के अनुसार विश्व में तम्बाखू के कारण विश्व में लगभग  50 लाख  लोग काल का ग्रास बनते हैं,जिनमें 9 लाख के लगभग भारतीय हैं.सड़क चलते छोटे छोटे बच्चे,महिलाएं,वृद्ध,श्रमिक,कार्यालयों में कार्यरत कर्मचारी ,विद्यार्थी, धनी -निर्धन सभी इसकी गिरफ्त में हैं.वास्तविकता तो यह है कि मीठी फ्लेवर्ड सुपारी से शुरू होने वाली (जो कई बार माता-पिता ही बच्चों को खिलाते हैं) ये आदत धीरे धीरे बदल जाती है उस गुटखे में जिसमें तम्बाखू ,चूने,सुपारी के साथ अन्य ऐसे घातक पदार्थों का मिश्रण होता है,जो अन्य गंभीर रोगों के साथ मुख कैंसर के प्रमुख कारक हैं.

आज गुटखे की लोकप्रियता इतनी चरम पर है कि आप कहीं भी जाएँ आपको चाय ,फल या दैनिक आवश्यकता की अन्य वस्तुएं भले ही उपलब्ध न हों गुटखे के हार थोक में लटके हुए मिलेंगें.एक रुपया मूल्य से प्रारम्भ हो कर संभवतः 6-7  रुपया मूल्य तक के गुटखे बाज़ार में उपलब्ध हैं,

विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार आज विश्व में मुख कैंसर के सर्वाधिक पीड़ित भारत में हैं,इसका प्रमुख कारण है तम्बाखू का सेवन.हमारे देश में सिगरेट के माध्यम से तम्बाखू रूपी विष का सेवन करने वाले 20% ,बीडी के रूप में 40% तथा गुटखे या अन्य रूप से तम्बाखू के आदि 40% लोग हैं जो मुख कैंसर का प्रमुख जन्मदाता है.विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के ही अनुसार हमारे देश में 65% पुरुष किसी न किसी रूप में तम्बाखू के आदि हैं.महिलाओं में यह संख्या राज्यों में अलग अलग है.मुंबई में धुंए रहित तम्बाखू का सेवन करने वाली महिलाओं का प्रतिशत 57.5% है.और धूम्रपान करने वाली महिलाओं के आंकडें तो बेहद चिंताजनक हैं.काल सेंटर्स के बाहर ,पार्टीज में या कुछ अन्य सार्वजनिक स्थानों पर जहाँ युवतियों को हम धूम्रपान करते खुले आम देखते हैं,श्रमजीवी वर्ग में तो महिलाएं काम के बाद बीडी का प्रयोग करती हैं,खैनी के रूप में गुटखे के रूप भी प्रयोग किया जाता है.

हुक्का तो सबसे पुराना साधन है ही. आज हुक्का बार का प्रचलन बड़े शहरों में बढ़ रहा है जहाँ तम्बाखू के साथ अन्य जहर का सेवन भी किया जाता है हुक्के के माध्यम से.पान में भी तम्बाखू का प्रयोग आम है.अतः धनाढ्य वर्ग हो , निर्धन वर्ग या फिर मध्यम सब ही प्रभावित हैं. गुटखे का सेवन बच्चों में तो बढ़ने का प्रमुख कारण है ,परिवार वालों का डर. सिगरेट या बीडी पीने पर परिवार या अन्य लोगों का भय उन्हें गुटखे की ओर आकृष्ट करता है.फिर तो चाहे कक्षा हो ,कार्यस्थल,सार्वजनिक स्थान या फिर घर,आराम से उसका सेवन किया जा सकता है.ऐसा नहीं कि गुटखा खाने वाले धूम्रपान नहीं करते. धुआं रहित होने के कारण इसमें होने वाले हानिकारक तत्वों का ज्ञान ही नहीं हो पाता और जब तक ज्ञान होता है तब तक देर हो चुकी होती है,और कई गुटखा निर्माता तो अपने प्रोडक्ट में तम्बाखू होने की जानकारी छुपाते हैं.धीरे धीरे धूम्र रहित यह जहर अपने दुष्प्रभाव का जाल फैलता है,जिसकी शुरुआत प्राय होती है,मुख में होने वाले बड़े बड़े छालों से या किसी घाव से ,मुख नहीं खुल पाता,जीभ पर बालों उग जाते हैं, गले की गंभीर व्याधियां जकड लेती हैं और फिर प्राणघातक कैंसर के चंगुल से छूटना असंभव सा ही हो जाता है.दूरदर्शन पर जन चेतना कार्यक्रम वाले दृश्य देखकर मृत्यु का आलिंगन करने वाले या दुस्सह पीड़ा झेलने वाले युवाओं या बच्चों को देखकर हृदय द्रवित हो जाता है. किसी भी व्यक्ति के भूरे दांतों को देखकर हम उसके गुटखा शौकीन होने का अंदाजा लगा सकते हैं,जिनको कितना भी प्रयास किया जाय साफ़ कर पाना सभव नहीं हो पाता.अच्छे से अच्छे होटल ,भव्य भवनों ,यहाँ तक कि सुन्दर ऐतिहासिक भवनों ,पर्यटन स्थलों और धार्मिक स्थलों की दीवारें भी आपको गुटखे की पीक (थूकने)से चित्रकारी करी हुई मिलेंगी.. इसके अत्यधिक सेवन का एक अन्य दुष्प्रभाव होता है,पाचन तंत्र को प्रभावित करने में ,जिसके चलते भूख नहीं लगती.ह्रदय रोग,फेफड़ों के रोग,दमा,मानसिक अवसाद आदि व्याधियां अपना शिकार बनाती हैं, और निर्धन कूड़ा बीनने वाले तथा अन्य अति निर्धन श्रेणी के लोगों को यह वरदान दिखाई देता है,क्योंकि इसके सेवन से उनकी भूख घट जाती है, और उनकी प्रमुख खुराक गुटखा बीडी और कई बार घटिया देसी शराब बन जाती है ,लीवर व गुर्दे विनष्ट हो जाते हैं ,और इसी के चलते उनके जीवन की अंतिम बेला आ जाती है,जिसमें उनके पास शायद पछताने के लिए भी समय नहीं होता.यह वर्ग तो अपना उपचार आदि करवाने में भी समर्थ नहीं होता न ही उसके लिए पौष्टिक आहार उपलब्ध रहता है.

समस्या तो विकराल है ही ,समाधान पर विचार करें तो चुटकियों का काम नहीं . नुक्कड़ नाटकों के रूप में दुष्प्रभाव समझाना ,विशेष प्रदर्शनी आदि के द्वारा सघन  जन चेतना अभियान चलाकर ऐसे ही प्रचार किया जाना ,जिस प्रकार पोलियो,या परिवार नियोजन आदि के विषय में जानकारी दी  जाती है,सार्थक भूमिका का निर्वाह कर सकता है. इस संदर्भ में सबसे अधिक दायित्व है फ़िल्मी अभिनेताओं,खिलाडियों तथा  अन्य सेलिब्रिटीज का ,कि वो इन कम्पनीज के ब्रांड्स का प्रचार न करें ,अपितु स्वयं इनके दुष्प्रभावों को जनता के समक्ष प्रस्तुत करें. इसका उदाहरण फ़िल्मी कलाकार प्राय स्वयं सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान करके इन नियमों को तोड़ते हैं,उनको कठोर सजा मिले.सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान करने पर तो कठोरतम प्रतिबंध होना चाहिए और उल्लंघन करने पर सजा का प्रावधान कठोरता से लागू होना चाहिए.सुप्रीम  कोर्ट के निर्देशों के अनुरूप स्वास्थ्य विषयक चेतावनी को सिगरेट के पैकेट पर बड़े बड़े व स्पष्ट रूप से अंकित  कराना.बीडी की पैकिंग में भी परिवर्तन करवाना यद्यपि दुर्भाग्य से बीडी का सेवन करने वाले अधिकांश लोग तो पढ़ना भी नहीं जानते,परन्तु रोगों की विभीषिका  की जानकारी के रूप में चित्र छपवाए जा सकते हैं. अंततराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप सिगरेट के पैकेट्स आकर्षक न हो कर ऐसे हों जिन पर मोटे शब्दों में चेतावनी अंकित हो .

सबसे बेहतर तो यही होगा कि कम से कम बच्चों को तो पूर्ण रूप से इस जहर से दूर रखा जाय.उनको बेचने पर दुकानदारों पर प्रतिबंध कठोरता से लागू हो.पाठ्यक्रमों में ऐसे कुछ अनिवार्य रूप से पढाये जाने वाले अध्याय अवश्य हों और उनसे सम्बन्धित परीक्षा तथा कुछ प्रोजेक्ट्स आदि बनवाए जाएँ. कोर्ट की व्यवस्था के अनुसार विद्यालयों के आसपास इनकी दुकानें न हों. बच्चों को बेचने पर प्रतिबंध कड़ाई से लागू हो.कुछ गुटखे निर्माता प्रचार करते हैं कि उनके पानमसाले में तम्बाखू नहीं है,परन्तु फिर भी उनमें तम्बाखू रहता है,उनपर प्रतिबंध लगाया जाय .और पूर्ण प्रतिबंध लगाना तो सोने में सुहागे का काम करेगा.

इन सबसे महत्वपूर्ण है,माता पिता द्वारा बच्चों का ध्यान रखना.स्वयं पर नियंत्रण रखना.जब घर बैठकर माता-पिता बच्चों से सिगरेट और गुटखे खरीदने को कहेंगें  तो बच्चों को क्या कह कर रोकेंगें.अपना उदाहरण तो बच्चों के समक्ष रखना जरूरी है.प्राय जो किशोर सिगरेट या गुटखे आदि का सेवन करते हैं वो अपनी दुर्गन्ध को रोकने के लिए परफ्यूम,डीयो तथा अन्य सुगन्धित वस्तुओं का प्रयोग करते हैं,अगर कभी ऐसा लगे तो सावधान होना जरूरी है.साथ ही यदि परिवार में कोई भी सेवक आदि इसका प्रयोग करता हो तो उसको समझाना प्रभावकारी होता है. यह कोई असंभव कार्य नहीं बस दृष्टिकोण सबसे महत्वपूर्ण है,


(व्यक्तिगत मेरा अपना उदाहरण है जो प्रयास करने पर चार लोगों ने  तम्बाखू का प्रयोग  छोड़ दिया है.यद्यपि कुछ ऐसे भी हैं जिनकी सिगरेट नहीं छुडा सकी, साहस नहीं छोड़ा और प्रयासरत  हूँ)

वास्तव में तो प्रधान है  इच्छा शक्ति  जिसके बलबूते पर इसके प्रयोग को छोडना संभव है ,तो आज देरी क्यों इस तम्बाखू निषेध दिवस पर यही बीड़ा उठाइए और अपने स्वयं,अपने परिजनों,मित्रों और सेवकों आदि को प्रेरित करिये अपने मूल्यवान जीवन की रक्षा के लिए.

अतः  अपनी ,अपने परिवार की, अपनी भावी पीढ़ी की चिंता करते हुए ,समाज के प्रति अपने दायित्व को समझते हुए इन हानिकारक पदार्थों का परित्याग करिये .गुटखे का बहिष्कार करिये,कुछ सरकारों ने गुटखे पर प्रतिबंध लगाया भी है परन्तु ये प्रतिबंध तभी सफल हो सकता है जब उपभोगकर्ता इसका त्याग करें.

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