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कृतघ्न है हम.(दुर्गा भाभी ) अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 8 मार्च पर (पूर्व प्रकाशित )

chandravilla
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durga अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष

श्रद्धा नमन दुर्गा भाभी को

आज जबकि महिलायें कुछ सीमा तक स्वतंत्र हैं, उच्च शिक्षा ग्रहण कर रही हैं,धरती से आकाश तक हर क्षेत्र में पुरुष के कंधे से  कंधा मिलाकर आगे बढ़ रही हैं,महिलाओं की प्रगति सुखद है,परन्तु उस काल में जब देश गुलामी की जंजीरों में जकड़ा था ,देश को आज़ाद करना प्राथमिकता थी और शिक्षा अधिकांश महिलाओं के लिए नगण्य थी ऐसे समय में दुर्गा भाभी जैसी महिला का योगदान उनको पूजनीया बनाता है .

भारतीय स्वाधीनता संग्राम में महिलाओं की भागीदारी रही है,जिन्होंने तत्कालीन परिस्तिथियों से सर्वथा भिन्न अपनी अमूल्य सेवाएं समर्पित की हैं देश को स्वाधीन करने में . सभी क्रांतिकारी उनको भाभी ही पुकारते थे,परन्तु वो तो माँ थी स्नेहमयी तथा आवश्यकता पड़ने पर रणचंडी.एक आम भारतीय गृहस्थिन महिला की भांति जीवन व्यतीत करने वाली दुर्गा भाभी किस प्रकार स्वाधीनता संग्राम में सक्रिय हुईं, ये ज्ञातव्य है.

तन,मन,धन,से देश के लिए समर्पित जिन क्रांतिकारियों को हम विस्मृत सा कर चुके हैं,उनमें से एक हैं दुर्गा भाभी,जिनके पति श्री भगवती चरण वोहरा थे जिनकी भारत माँ के क्रांतिकारी सपूतों भगतसिंह,अशफाक उल्लाह खान तथा चन्द्रशेखर आज़ाद,राजगुरु से बहुत घनिष्ठता थी तथा वें हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन ग्रुप से जुड़े थे. उनको देश के लिए अपने कर्तव्य की ओर प्रेरित करने वाली उनकी पत्नी थी दुर्गावती देवी . दुर्गावती ने अपने पति को तो प्रेरित किया ही स्वयं भी इस पुनीत यज्ञ में कूद पडीं. .लखनऊ स्थित उनका निवासस्थान क्रांतिकारियों का मीटिंग स्थान था,जहाँ भावी योजनायें तैयार होती थीं तथा उनमें भी सक्रियता रहती थी देशभक्त दुर्गाभाभी की.वे क्रांतिकारियों की तन,मन,धन से सहायता करती थीं. .
स्वाधीनता संग्राम में उनका सर्व महत्वपूर्ण योगदान गिना जाता है जब उन्होंने सांडर्स को मारने के बाद भगत सिंह को लाहौर से बाहर निकला ,लाहौर स्टेशन जहाँ के चप्पे चप्पे पर पुलिस थी भगतसिंह को दबोचने के लिए ,और भगत सिंह ,राजगुरु तथा आज़ाद उस पहेरेदारी को अंगूठा दिखाते हुए शान से फर्स्ट क्लास के कम्पार्टमेंट में दुर्गा भाभी के प्लान के अनुसार उन्ही के साथ कलकत्ता पहुँच गए,यहाँ वेश बदले दुर्गाभाभी भगत सिंह की पत्नी के रूप में थीं. जबकि इतिहास के अनुसार परिंदा भी अंग्रेजों की मर्जी के बिना पर नहीं मार सकता था. यह ऐतिहासिक घटना १८ दिसंबर १९२८ की है.अंग्रेजों की नाक के नीचे उनकी सत्ता को चुनौती देते हुए सारी कार्यवाही की योजना और उसको लागू करने का साहस दिखाने वाली इस वीरांगना के योगदान को कैसे भुलाया जा सकता है.अगले लगभग चार माह बम बनाने की प्रक्रिया सीखने व असेम्बली में डालने की योजना निर्माण तथा उसके क्रियान्वयन में उनकी विशिष्ठ भूमिका रही.इन सबसे बढ़कर चुनौती था,गोरों से स्वयं व अपने साथियों को बचाकर रखना.उनकी समस्त  योजनायें सफल हुईं.

८ अप्रेल १९२९ को कलकत्ता असेम्बली में बम डाल कर भगतसिंह, ने आत्मसमर्पण कर दिया और उनको फांसी की सजा मिली.तद्पश्चात दुर्गा भाभी खुल कर मैदान में आ गयीं.अब उनकी योजना थी गवर्नर हेली को मारने की .यद्यपि हेली बच गया परन्तु उसके अंगरक्षक घायल हो गए.दुर्गा भाभी ने गाँधी जी से भी अपील की तीनों को बचाने के लिए अंग्रेजों से बात करने की.उनके पति व आज़ाद ने जेल को (जिसमें भगत सिंह थे ) उड़ाने की योजना भी बनाई बम के परीक्षण के प्रयास में ही उनके पति का प्राणांत हुआ.परन्तु यह दारुण दुःख उनको उनके कर्तव्य से न डिगा सका,और उनका संघर्ष अनवरत चलता रहा.
दुर्गा भाभी को तीन साल के कठोर कारावास की सजा हुई,परन्तु अपने अन्य साथियों को प्रेरणा देने का कार्य वो करती रहीं यद्यपि उनके क्रांतिकारी साथी एक एक कर देश के लिए अपने प्राणों का बलिदान कर रहे थे.. स्वाधीनता प्राप्ति के उपरान्त उन्होंने अपने आवास में ही निर्धन बच्चों के लिए “लखनऊ मोंटेसरी स्कूल” की स्थापना की और सक्रियता बनाये रखी. बाद में भी उन्होंने अपना आवास शहीदों पर शोध करने तथा इससे सम्बंधित अन्य कार्यों के लिए सरकार को ही दे दिया. ९२ वर्ष की अवस्था में १५ अक्टूबर१९९९ को उनका देहावसान गाज़ियाबाद में हुआ.परन्तु दुर्भाग्य हमारा कि हमारे सत्ताधारी ही उनके योगदान को भुला बैठे और यही कारण है कि आज उनका नाम भी चंद लोग ही जानते हैं.जिनके कारण हम स्वाधीन हैं आज़ाद हवा में सांस ले रहे हैं ,विकासशील और भविष्य में विकसित होने की बात करते हैं,उनका स्मरण न किया जाना ,उनके लिए किसी सत्ताधारी के द्वारा कोई प्रयास न किया जाना हमारी संवेदनहीनता व कृतघ्नता को दर्शाता है.
उन्होंने अपना नाम सार्थक किया और माँ दुर्गा की भांति अपने( देश के) शत्रुओं को धूल चटाई.उनको शत शत नमन. .

(संशोधन के साथ )

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