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शिक्षक ही है राष्ट्र निर्माता पर…………….

chandravilla
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शिक्षक दिवस के सुअवसर   पर  भूतपूर्व राष्ट्रपति सर्वपल्ली डॉ राधा कृष्णन जी (जिनके जन्मदिवस को शिक्षक दिवस के  रूप में मनाया जाता है ) तथा   उन सभी शिक्षकों को मेरा  सादर नमन जो राष्ट्र हित में संलग्न रहकर अपने कर्तव्य का निर्वाह कर रहे हैं.
सामान्य रूप से भी शिक्षक और गुरु में गहन अंतर है .गुरु कोई भी हो सकता है,आध्यात्मिक गुरु , जो आज सभी धर्मों में छाये हुए हैं और गुरुपद की गरिमा पर कलंक की  कालिमा पोतने में लगे हैं ( इस विषय पर चर्चा फिर कभी क्योंकि जैसा कि स्पष्ट किया है शिक्षक और गुरु में अंतर है ) इसके अतिरिक्त गुरु   किसी कला विशेष का ,किसी तकनीक का आदि आदि ,ये भी आवश्यक नहीं कि वो किताबी ज्ञान से सम्पन्न हो,जो अंतरतम को ज्ञान के प्रकाश से आलोकित कर दे बस वही गुरु है. जिस संदर्भ में शिष्यत्व ग्रहण किया है,उसकी भली भांति शिक्षा दे .

आधुनिक अर्थों में शिक्षक वह है जो विद्यार्थी को पढ़ा दे तथा अच्छे अंकों में सफलता दिलवा दे.(क्षमा करें .आज शिक्षक के इसी स्वरूप को देखा जा रहा है)

.हमारे देश में शिक्षा का स्वरूप ऐसा ही रहा हो ऐसा नहीं है, शिक्षा और शिक्षक हमारे यहाँ सदा ही सम्मान के पात्र बने रहे हैं.आज भी ऐसे शिक्षक हैं जिन्होंने अपनी मर्यादा को बनाये रखा है और वो शिक्षार्थियों  से सदा सम्मान पाते हैं. परन्तु  वर्तमान में .सबसे उपेक्षित है शिक्षा. आखिर शिक्षा और  शिक्षक की गरिमा में इतना ह्रास हमारे देश में क्यों हुआ ,इसके लिए जरा अतीत में झांकना होगा.

शिक्षा से ही राष्ट्र का निर्माण होता है,विकास होता है,हमारा देश  कभी विश्व गुरु था.सभी विद्याओं में अग्रणी , विश्व के अन्य देशों से विद्यार्थी हमारे विख्यात गुरुकुलों  तक्षशिला ,नालंदा,विक्रमशिला आदि में विद्यार्जन करने आते थे.(विभिन्न विद्याओं में अग्रणी होने की बात तो विश्व प्रसिद्ध इतिहासकार भी स्वीकार करते हैं)_ संलग्न है पाश्चात्य विचारकों के कुछ विचार ………..

हमारा देश सोने की चिड़िया था,इसका प्रमाण देने की कोई आवश्यकता नहीं होनी चाहिए क्योंकि इतिहास ही सबसे बड़ा साक्षी है ,जिसके अनुसार पहले मुस्लिमों ने,पुर्तगालियों,फ्रांसीसियों अन्य विदेशी आक्रांताओं ने किसी न किसी बहाने लूटा और अंत में अंग्रेजों ने तो यहीं अपना आधिपत्य  जमा लिया जिसके बाद उनको बाहर करने में हमारे देशभक्तों को अपने प्राणों से ही हाथ धोना पड़ा .शिक्षा के  इस दयनीय दशा में पहुँचने के कारकों पर यदि विचार किया जाय तो …….
हमारी शिक्षा व्यवस्था को प्रथम  हानि तो मुस्लिम आक्रमणकारियों  ने ही पहुंचाई जब उन्होंने हमारे गुरुकुलों को लूटा ,पुस्तकालयों को अग्नि के समर्पित कर दिया परन्तु अंग्रेज वो तो और भी धूर्त थे , ने तो हमारी उत्कृष्ट शिक्षा की जड़ों पर ही प्रहार किया जिसका प्रमाण है लार्ड मैकाले का ये कथन जो उन्होंने फरवरी 1835 में  ब्रिटिश संसद के सामने कहा था , कि, मैंने भारत के कोने-कोने की यात्रा की है और मुझे एक भी ऐसा व्यक्ति नहीं दिखाई दिया, जो भिखारी हो या चोर हो। मैंने इस देश में ऐसी संपन्नता देखी, ऐसे ऊंचे नैतिक मूल्य देखे कि मुझे नहीं लगता कि जब तक हम इस  देश की रीढ़ की हड्डी न तोड़ दें, तब तक इस देश को जीत पायेंगे और ये रीढ़ की हड्डी है, इसकी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत, इसके लिए मेरा सुझाव है कि इस देश की प्राचीन शिक्षा व्यवस्था को इसकी संस्कृति को बदल देना चाहिए। यदि भारतीय यह सोचने लग जाए कि हर वो वस्तु जो विदेशी और अंग्रेजी, उनकी अपनी वस्तु से अधिक श्रेष्ठ और महान है, तो उनका आत्म गौरव और मूल संस्कार नष्ट हो जाएंगे और तब वो वैसे बन जाएंगे जैसा हम उन्हें बनाना चाहते है – एक सच्चा गुलाम राष्ट्र । लार्ड मैकाले ने इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये अपनी शिक्षा नीति बनाई, जिसे आधुनिक भारतीय शिक्षा प्रणाली का आधार बनाया गया ताकि एक मानसिक रूप से गुलाम कौम तैयार किया जा सके, क्योंकि मानसिक गुलामी, शारीरिक गुलामी से बढ़कर होती है। मैकाले की शिक्षा नीति 1947 तक निर्बाध रूप से जारी रही, आजादी के पश्चात भी हमारे नीति निर्धारकों ने  इसमें कोई परिवर्तन  करना उचित नहीं समझा और यूं ही इसे चलने दिया।अंग्रेज अपनी इस नीति में पूर्णतया सफल रहे और हमारे देशवासियों को उन्होंने ऐसे चश्मे पहिना दिए जिनके माध्यम से आज हमें पाश्चात्य ज्ञान,पाश्चात्य विचारधारा,वेशभूषा ,रहन सहन ……..सभी कुछ सुन्दर,उपयोगी दिखता है और स्वदेशी गंवारू तथा पिछडा .
.आज हमारी शिक्षा  केवल सरकारी या प्राइवेट सेवक तैयार करती है,नैतिक मूल्यों का शिक्षा में कोई स्थान नहीं.यही कारण है कि आज के विद्यार्थी का समाज या देश से जुड़ाव नहीं है,जो चिंताएं राष्ट्र हित में होनी  चाहियें ,उनसे कोसों दूर है वह . शिक्षा पूर्ण कर कमाऊ मशीन बन कर रह जाना और ऐशो आराम के साधनों के साथ जीवन बिताना या फिर विदेश चले जाना उसका लक्ष्य होता है.जिस समाज , जिस देश से वो सब कुछ प्राप्त करता है ,उसके प्रति कोई दायित्व समझने का उसके पास अवकाश कहाँ? शिक्षक को दोषी ठहराया जाता है कि आज शिक्षक व्यवसायिक बन चुके हैं,जो एक कटु सत्य है,परन्तु इस सबके पीछे निहित है वो मानसिकता जो इस दूषित शिक्षा प्रणाली के कारण सबकी  रग रग में बस गयी है,शिक्षक भी इसी मानसिकता का शिकार है,अतः उसका उद्देश्य भी वही अर्थोपार्जन और समृद्धि की और बढ़ना है,अपने परिवार को आधुनिकतम साधनों से सम्पन्न देखना है.
यदि हम प्रारम्भ करें सरकारी स्तर से तो सर्वप्रथम शिक्षा विभाग  प्राय जिन मंत्रियों को सौंपा जाता है,उनको शिक्षा का अ ब स भी पता नहीं होता .नीति निर्माण वही घिसी पिटी ,या फिर विदेशों की नक़ल (जो हमारी आवश्यकता या परिस्थिति के अनुरूप बिल्कुल नहीं होती.) शिक्षक भी उसी वातावरण में शिक्षा प्राप्त कर शिक्षक बन जाता है तो उससे अपेक्षा करना ही  ही व्यर्थ है.निजी शिक्षण संस्थानों की आज बाढ़ आयी है जिसके कारण येन केन प्रकारेण तो शिक्षा दी  जा रही है परन्तु किस प्रकार ये सभी जानते हैं और उस पर एक पूरा आलेख भी कम है.
सरकारी स्कूलों के शिक्षक सरकारी नौकर बनने को विवश है और निजी क्षेत्र  में   वहाँ के प्रबंधन के  वेतनभोगी सेवक ,जहाँ उनसे पूर्ण वेतन पर हस्ताक्षर करा कर आधा अधूरा वेतन दिया जाता है ,विद्यालयों में प्रवेश में मोटी धनराशि ,परीक्षाओं में नक़ल कराया जाना आदि सामान्य सी प्रक्रिया है.प्राथमिक स्तर पर ही यदि विचार करें तो उपलब्ध नेट या किताबी आंकड़ों के अनुसार आज भी देश में 9503 स्कूल बिना शिक्षक के हैं,122355  से अधिक विद्यालयों में पांच कक्षाओं पर एक शिक्षक है,,लगभग 42  हजार स्कूल भवन विहीन हैं और एक लाख से अधिक स्कूलों में भवन के नाम पर एक कमरा है.सरकारी स्कूलों में  अधिकांश प्रशिक्षित अध्यापक मासिक वेतन लेते हैं और रिश्वत के माध्यम से अपनी नियुक्ति ऐसे स्थान पर करवाते हैं जहाँ कभी अचानक होने वाले निरीक्षण में न पकडे  जाएँ .कहाँ तक विचार किया जाय शिक्षकों की नियुक्ति में गडबडी ,रिश्वत खुले आम व्याप्त है,इन सब व्यवस्थाओं के चलते शिक्षक को  पूर्ण समर्पित तथा कर्तव्य निष्ठ  मान कर चलना कपोल कल्पना ही हो सकती है.यही कारण है,ट्यूशन ,परीक्षाओं में धन लेकर पास करा देना आदि प्रवृत्तियां आम है.

माध्यमिक , स्नातक या फिर स्नातकोत्तर शिक्षण संस्थानों की बात की जाय तो वही स्थिति है,लिखित परीक्षा नेट या स्लेट उत्तीर्ण  करने के पश्चात तथा सभी वांछित मानदंड पूर्ण करने पर भी  आरक्षण और भ्रष्टाचार के चलते  नौकरी मिलती नहीं और  लाखों की रिश्वत देकर यदि नौकरी मिले तो निश्चित रूप से उस शिक्षक का ध्यान केवल भ्रष्ट साधनों से धनोपार्जन में ही लग सकता है.

स्कूल कालेजों की स्थिति पर यदि दृष्टिपात किया जाय तो स्थायी शिक्षकों का अकाल है पूर्णतया ,कभी शिक्षा मित्र  के नाम पर कभी संविदा आधारित शिक्षकों को नियुक्त कर खाना पूर्ती की जाती है.दीर्घकालीन अवकाश लेकर शिक्षक अन्य स्थानों पर धनोपार्जन में लगे है.कहाँ तक स्थिति की दयनीयता पर प्रकाश डाला जाय …………

प्राथमिक शिक्षा जिसको नींव कहा जाता है आगामी जीवन रूपी भवन की सर्वाधिक हीन स्थिति में है,बी टी सी(बेसिक टीचर्स ट्रेनिंग) आदि के नाम पर  भ्रष्ट खेल आज गाँव गाँव चल रहा है.मनचाही पोस्टिंग रिश्वत देकर करना ,सम्बन्धित इंचार्ज को खरीद  शिक्षकों का स्कूल ही न जाना,यदि अचानक निरीक्षण  (गलती से) हो भी गया तो शिक्षकों द्वारा  पहले से लिखाया छुट्टी के लिए प्रार्थना पत्र उपस्थित करा देना.मिड डे मिल और अन्य सुविधाओं के नाम पर मिलने वाली धन राशि को मिल बाँट कर खा जाना आदि आदि .सम्पन्न लोगों के लिए पब्लिक स्कूल्स और कोंवेंट स्कूल्स  आदि तो बिजनेस सेंटर हैं ही .

यही कारण है कि आधुनिक शिक्षक आर्थिक लाभ के लिए तो किसी भी सीमा तक पतन की राह पर जा ही सकते हैं,चरित्र के संदर्भ में भी कहीं छात्राओं के यौन शोषण में लिप्त हैं ,तो कहीं छात्रों के साथ सिगरेट का धुआं उड़ाते देखे जा सकते हैं,कहीं मदिरा के नशे में चूर अश्लील गतिविधियों में तल्लीन.

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शिक्षक दिवस मनाना एक औपचारिकता है , अन्य दिवसों की भांति ,विशेष रूप से पब्लिक स्कूल्स में बच्चों द्वारा कुछ रंगारंग कार्यक्रम आयोजित करना, कुछ सामजिक संस्थाओं द्वारा कोई आयोजन , कुछ उपहार आदि दिए जाना.सरकारी स्तर पर भाषण ,सिफारिशी या राजनैतिक जुगाड के आधार पर राज्यपाल या राष्ट्रीय पुरस्कार दिया जाना.
हमारी संस्कृति में माता पिता तथा आचार्य को पूजनीय माना जाता है,जो एक सिद्ध सत्य है,क्योंकि राष्ट्र निर्माण में शिक्षक की भूमिका सर्वोपरि है.आज भी अपवाद स्वरूप कुछ शिक्षक सब ही स्तरों पर अपने कर्तव्यों का निर्वाह कर रहे हैं ,परन्तु तालाब को दूषित करने के लिए तो एक मछली ही पर्याप्त होती है और यहाँ तो प्राचुर्य ही ऐसे लोगों का है यदि इस कर्तव्य पथ पर चलते हुए शिक्षक अपने विद्यार्थियों को तैयार करे तो निश्चित रूप से भारतीय मनीषियों का भारत को पुनः विश्व गुरु के पद पर आरूढ़ होने का स्वप्न साकार हो सकता है .आवश्यकता है देश की परिस्थिति के अनुरूप अपनी शिक्षा प्रणाली को दुरुस्त करने की ,शिक्षा को समाज से जोड़ने की तथा शिक्षा को यथार्थ में कर्तव्य बनाने की .  शिक्षक दिवस मनाने का औचित्य तभी है,जब शिक्षा के क्षेत्र में व्याप्त अनियमितताओं को दूर कर शिक्षा सर्वसुलभ बनाई जाय केवल कागजों पर नहीं यथार्थ में .शिक्षक का आचार व्यवहार शिक्षार्थी के लिए आदर्श बन सके और इसके लिए वातावरण तैयार हो .
(अपवाद सभी क्षेत्र में हैं ऐसे में यदि किन्ही कर्तव्यनिष्ठ शिक्षक की भावनाओं को आघात पहुंचा हो तो मैं क्षमा चाहती हूँ.सभी आंकडें और चित्र नेट से साभार)

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